देश-विदेश में छोटी जरूरतों के साथ ही बड़े उद्योगों तक रबड़ की खपत बढ़ती ही जा रही है. भारत को रबड़ का चौथा बड़ा उत्पादक देश कहा जाता है, लेकिन देश में खपत बढ़ने पर रबड़ का आयात होता है, हालांकि उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें भी मिलकर कई योजनाओं पर काम कर रही हैं ताकि रबड़ के उत्पादन को लेकर भारत आत्मनिर्भर बन सके. बता दें कि रबड़ एक सुन्दर और सदाबहार पौधा है, जिसकी खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. रबड़ की खेती करने वाले किसानों को केंद्र सरकार और विश्व बैंक से भी आर्थिक सहायता मिलती है. एक रिसर्च के मुताबिक दुनिया के कुल रबड़ उत्पादन का 78% रबड़ का इस्तेमाल टायर और ट्यूब बनाने में होता है. रबड़ का इस्तेमाल कर सोल, टायर, रेफ्रिजरेटर, इंजन की सील के अलावा कंडोम, गेंद, इलेक्ट्रिक उपकरणों के साथ ही इलास्टिक बैंड जैसी चीजें बनाई जाती हैं. ऐसे में रबड़ की मांग बहुत ज्यादा होती है. इसलिए इसकी खेती में भी बहुत फायदा है.
खेती के लिए उपयुक्त जलवायु- भारत में रबड़ का उत्पादन दक्षिणी भारत में विशेषकर केरल, कर्नाटक के अलावा तमिलनाडु में होता है. इसके पौधों को न्यूनतम 200 सेमी बारिश की जरूरत होती है. पौधे उष्ण आद्र जलवायु में तेजी से विकास करते हैं और 21- 35 डिग्री का तापमान पौधों के लिए अच्छा होता है. साथ ही रबड़ की खेती के लिए सूर्य का प्रकाश जरूरी होता है.
मिट्टी का चयन- खेती के लिए लेटेराइट युक्त गहरी लाल दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. मिट्टी का PH मान 4.5-6.0 के बीच होना चाहिए.
खेती का समय- रबड़ के पौधों का रोपण जून से जुलाई के महीने में होता है. इसके पौधे को समय-समय पर पर्याप्त मिश्रित उर्वरक की जरूरत होती है.
खेत की तैयारी- रबड़ के पौधों की रोपाई गड्ढों में की जाती है इसलिए गड्ढों को तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करें फिर मिट्टी को भुरभुरी कर पाटा लगाएं जिससे खेत समतल हो जाए फिर समतल खेत में 3 मीटर की दूरी रखते हुए एक फीट चौड़े और एक फीट गहरे गड्ढे तैयार करें. सभी गड्ढ़ों को कतारों में तैयार करना चाहिए, फिर गड्ढों को तैयार करते समय रासायनिक, जैविक खाद को मिट्टी में मिलाकर गड्ढों में भरना चाहिए.
रोपाई- पौधरोपण के वक्त मिट्टी परिक्षण के अनुसार कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर जैविक खाद और रासायनिक उर्वरक जैसे पोटाश, नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की उचित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए. पौधरोपण के तत्काल बाद सिंचाई करना चाहिए. बाद में भूमि में नमी बनाने के लिए समय-समय पर जरूरत के हिसाब से सिंचाई करना चाहिए, खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए खेत में पौधों के आसपास निराई-गुड़ाई को समय-समय पर करना चाहिए.
सिंचाई- रबड़ का पौधा सूखेपन की वजह से कमजोर होता है. इसलिए यह सूखा बर्दाश्त नहीं कर पाता, तभी नमी बनाने के लिए सिंचाई की ज्यादा जरुरत होती है. पौधों को बार-बार पानी देना होता है.
रबड़ की टैपिंग- रबड़ के पेड़ से निकलने वाला लेटेक्स दूध की तरह तरल होता है जो टैपिंग विधि से रबड़ की छाल की कटिंग कर प्राप्त किया जा सकता है. टैपिंग विधि के मुताबिक रबड़ की छाल में गहरा कट लगाया जाता है. कटिंग के निचले छोर पर जिंक या फिर लोहे की टोंट लगाई जाती है, रबड़ से लेटेक्स बहकर नारियल के खपरे या फिर बाल्टियों में इकट्ठा होने लगता है.
ये भी पढ़ेंः सालों-साल कमाई कराएगी रबड़ की खेती, एक बार लगाने पर 40 साल तक उत्पादन देता है रबड़ का पेड़
रबड़ का उत्पादन- रबड़ का पेड़ 5 साल का होने पर उत्पादन देना शुरू कर देता है और 40 सालों तक रबड़ की पैदावार देता है. एक एकड़ के खेत में 150 पौधे लगा सकते है, जिसमें प्रत्येक पेड़ से एक साल में 2.75 किलो का उत्पादन मिलता है. बड़ी-बड़ी कंपनियां रबड़ खरीदती हैं. जिससे रबड़ को बेचने में किसी तरह की समस्या नहीं होती, किसान रबड़ उत्पादन के हिसाब से बढ़िया कमाई कर सकते हैं.
Share your comments