कम लागत में अच्छा मुनाफा देने वाली आयुर्वेदिक दवाओं की खेती किसानों के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद साबित हो रही है। उत्तर प्रदेश के बराबंकी क्षेत्र के दर्जनों किसान आयुर्वेदिक खेती की कैटेगरी में एलोवेरा की खेती में भाग्य अजमा रहे है। क्षेत्र के किसानों को उम्मीद है कि कम लागत और आवारा जानवरों से सुरक्षित यह खेती उनके लिए काफी लाभकारी साबित सिद्ध होगी। 'कृषि मित्र फर्टिलाइजर' के नाम से एक कृषि संस्था किसानों को राजस्थान से लाए गए पौध उपलब्ध करवा रही है, जिससे कई किसान पौध लेकर अपने खेतों में एलोवेरा की खेती कर रहे है। ये पूर्णयता जैविक खेती होती है। इसमें रोपाई के बाद चार वर्ष तक सात फसलें मिलती है।
कम लागत
डॉ रमेश बताते हैं कि एलोवेरा की फसल उगाने में प्रति एकड़ पंद्रह हजार रूपये की लागत आती है। एक एकड़ में प्रति फसल लगभग चार सौ क्विंटल एलोवेरा का उत्पादन होता है, जो खेतों से ही ढाई सौ रूपये प्रति क्विंटल बिक जाता है। संस्था के विशेषज्ञ समय-समय पर एलोवेरा की खेती का निरीक्षण करते हैं और साथ ही किसानों का मार्गदर्शन करके उनका पूरी तरह से सहयोग भी करते हैं। उनका कहना है कि एक बार एलोवेरा को यदि रोपित कर दिया जाए तो चार वर्ष तक बराबर सात फसलें मिलती है। चूंकि इसकी खेती पूरी तरह से जौविक होती है इसीलिए सिंचाई के अलावा इस पर कुछ और खर्च नहीं होता है। इस खेती को करने से किसानों को काफी फायदा होता है।
आवरा जानवरों से सुरक्षित फसल
किसानों का कहना है कि एलोवेरा की खेती को जानवर नष्ट नहीं करते और न ही वह इसको खाते हैं जिससे की खेतों की निगरानी करने का कोई झंझट नहीं होता है। एक बार खेत में इसकी पौध को रोपित कर दिया जाए तो फिर आसानी से किसान इसका एक लंबे समय तक फायदा ले सकते हैं। इसकी उपज पहले से ही तय होती है इसीलिए बाजार की तेजी और मंदी के जोखिम का खतरा भी नहीं होता है।
फायदेमंद है एलोवेरा
एलोवेरा त्वचा से जुड़ी कई तरह की बिमारियों के लिए काफी अधिक फायदेमंद होता है। एलोवेरा त्वचा की खुश्की को दूर करने वाले साबुन बनाने और कई बीमारियों की आयुर्वेदिक औषधि के रुप में काम आता है। स्थानीय स्तर पर इसकी तैयार फसल की खरीद पौध देने वाली एजेंसी ही कर लेती है।
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण
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