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विश्व के प्रमुख कृषि आधारित देशों में से एक भारत में हरित क्रांति के बाद से आज तक उपज में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गयी हैं. इससे पूर्व भारत अपनी खाद्य आवश्यकता की पूर्ति के लिए विदेशों पर निर्भर था. जबकि आज भारत में फसलों का उत्पादन इतना बढ़ चुका है कि देश न सिर्फ अपनी घरेलू खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं करने में सक्षम है, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर वह अन्य देशों को भी अनाज उपलब्ध कराता रहता है. इन सारी उपलब्धियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान कम होता जा रहा है. जिसका कारण है भारत की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा काफी कम है. उत्पादकता में कमी की रोकथाम कई नई तकनीकों और कृषि यंत्रों द्वाका की जा सकती है. ऐसी ही एक जीरो टिलेज पद्धति भी है. आज जानते हैं किसानों के लिए क्यों लाभदायक है ये पद्धति.
भारत में उत्पादन के आंकड़े:
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार,अगर हम केवल धान का उदाहरण लें तो भारत में धान की औसत उत्पादकता 2.4 टन/हेक्टेयर है. जबकि चीन व ब्राजील जैसे देशो में यह उत्पादन दर 4.7 टन/हेक्टेयर हैं. इसी कारण भारत में कृषकों की वार्षिक आय अन्य देशों के की अपेक्षा काफी कम है. खेती में किसानों का मुनाफा बढ़ाना मोदी सरकार की प्रमुखता में शामिल है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं भी कई बार किसानों की आय को दोगुना करने की बात कर चुके हैं.
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क्या है जीरो टिलेज कृषि पद्धति?
आज हम एक ऐसी कृषि पद्धति के बारे मे बताने जा रहे हैं जिससे प्रति हेक्टेयर कृषि लागत को कम करके किसानों के लाभ में वृद्धि की जा सकती है. इसके अलावा कृषि भूमि की दशा में भी सुधार किया जा सकता है. हम बात कर रहे हैं जीरो टिलेज कृषि पद्धति की। जहाँ परंपरागत कृषि पद्धति मे एक फसल उगाने के बाद तथा दूसरी फसल बोने से पहले, खेत की जुताई की जाती है, वहीं जीरो टिलेज पद्धति में एक फसल के बाद दूसरी फसल के बीज को सीधे सीड ड्रिल के माध्यम से खेतों में बो दिया जाता है. इस पद्धति के जन्म दाता-एडवर्ड फाल्कनर हैं.
भारत में जीरो टिलेज पद्धति:
भारत में भी ये पद्धति धीरे-धीरे लोकप्रिय होती जा रही हैं. विशेषकर गंगा के मैदानी इलाकों में,जहां धान के बाद गेहूँ उगाया जाता है. आमतौर पर धान के बाद गेहूँ के लिए खेत तैयार में 10-12 दिन का समय लग जाता है. इससे गेहूँ की फसल के पिछड़ जाने का भी भय रहता है. इसके अतिरिक्त इसी बीच वर्षा हो जाने पर खेती और पिछड़ सकती है. जीरो टिलेज के माध्यम से खेत खाली होते ही, सीड् ड्रिलर के द्वारा सीधे बुवाई करके काफी समय बचाया जा सकता है. जिससे प्रति हेक्टेयर जुताई का खर्च जो कि 2500-3000रुपए /हेक्टेयर हैं, इसे भी बचाया जा सकता है.
मृदा संरक्षण तथा उन्नयन में जीरो टिलेज का योगदान -
मृदा के सबसे ऊपरी संस्तर में स्थित 1सेमी मोटी पर्त ही फसलों के लिए सबसे ज्यादा लाभदायक है. बार-बार जुताई-गुड़ाई से इस सतह का क्षरण होने लगता है, तथा मृदा उर्वरता में कमी आने लगती है. जिसकी पूर्ति के लिए किसान भाइयों को अधिक रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करना पड़ता है, जिससे लागत में वृद्धि होती हैं. इसके अलावा मृदा में उपस्थित लाभदायक सूक्ष्म जीव तथा केंचुआ व सर्प जैसे लाभदायक जीव भी नष्ट हो जाते हैं. जीरो टिलेज अपना कर भूमि के कणीय विन्यास को भी सुधारा जा सकता है, जिससे भूमि की जलधारण क्षमता बढ़ जाती है. सिंचाई की आवश्यकता कम होने से भी किसानों को बचत होती है. आज लागत में वृद्धि के कारण कृषकों की आय कम हो रही है, तथा भूमि के अविवेकपूर्ण प्रयोग से खेत कमजोर होते जा रहे हैं. ऐसी परिस्थितियों में हम जीरो टिलेज का उपयोग करके न सिर्फ अधिक लाभ कमा सकते हैं ,बल्कि भूमि का संरक्षण भी कर सकते हैं.
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