देश में कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन 2 लगा हुआ है. इस बार भी लॉकडाउन में कृषि कार्य करने की छूट किसानों के साथ-साथ उससे जुड़े लोगों को मिली है. बता दें, उत्तर प्रदेश में किसानों के लिए अपनी फसल (गेहूं) को समर्थन मूल्य पर बेचने की अंतिम तारीख 15 जून निर्धारित की गई है. इस बार किसानों को अपनी फसल को समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए ऑनलइन आवेदन करवाना अनिवार्य कर दिया गया है. अगर एक बार किसान का आवेदन ऑनलाइन स्वीकार्य कर लिया जाता है तो उस किसान को क्रय केंद्र द्वारा टोकन दिया जाता है जिसके बाद किसान अपनी उपज को समर्थन मूल्य पर बेच पाता है.
बता दें कि किसान को समर्थन मूल्य पर फसल बिक्री के लिए ऑनलाइन आवेदन करते समय निम्नलिखित दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है. जमीन का खसरा-खतौनी, आधार कार्ड और बैंक खाताकॉपी आदि. इस बार यह आवेदन ओटीपी आधारित किया गया है. एक बार आवेदन करने के बाद किसान केवल 100 क्विंटल गेहूं बेच सकता है. यदि किसान 100 क्विंटल से ज्यादा गेहूं बेचना चाहता है तो उसे अपने जिले के एसडीएम से ऑनलाइन अनुमति लेनी पड़ेगी.
बता दें कि इस बार ऑनलाइन में सबसे बड़ी समस्या यह आ रही है कि देश के ज्यादातर किसान ऑनलाइन आवेदन करना नहीं जानते या यूं कह ले कि वे तकनीकी रूप से उतने जागरुक नहीं है जितना सरकार उन्हें समझती है.
गौरतलब है कि देश की कुल जनसंख्या का 70 प्रतिशत किसान हैं यानी 100 में से 70 लोग किसान परिवार से हैं लेकिन इनमें केवल 5-6 किसान (कुल किसान संख्या का 10 प्रतिशत) ऐसे हैं जिनके पास दो एकड़ से ज्यादा की जमीन हैं. शेष बचे किसानों के पास इससे कम जमीन है. बता दें कि इनमें से केवल 15 प्रतिशत किसान ही ऑनलाइन आवेदन स्वयं करना जानते हैं. क्या इसका मतलब ये मान लिया जाए कि सरकार इन किसानों की फसल समर्थन मूल्य पर खरीदना नहीं चाहती?
नोएडा के किसान अजीत सिंह बताते हैं, “इस लॉकडाउन में फसल बेचना इतना कठिन काम हो गया है कि यदि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने की कोशिश भी करें तो लॉकडाउन में सभी साइबर कैफे बंद हैं. फोन से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करना आता नहीं है.” ऐसे ही किसानों इस बार सरकार का कहना है कि सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य अच्छा तय किया है लेकिन उन्हें ऑनलाइन आवेदन करना नहीं आता है. इस कारण उनके पास एक ही रस्ता बचता है कि वे अपनी उपज व्यापारी के पास ही कम कीमत में बेचें. इस कारण से व्यापारी दो से लेकर ढाई सौ रुपये कम पर खरीदने को कह रहें हैं. इस स्थिति में किसान आखिर करें भी तो क्या करें?
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