1. Home
  2. सम्पादकीय

नजरिया : कृषि विकास की रणनीतियां और उनकी कमियां

किसान एवं ग्रामीण जनता का विकास देश की आर्थिक योजना तथा विकास प्रक्रिया का प्राथमिक विषय है केन्द्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ग्रामीण एक कृषि विकास रणनीतियों का नया रूप दिया जा रहा है। किसान व ग्रामीण विकास नीति में एक व्यापक बदलाव आ रहा है। उसी कड़ी में उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा प्रमुख योजनाएं चलाई जा रही है।

 

किसान बन्धुओं के सामने दो विकट समस्यायें है कि उक्त सभी व्यवसाओं की तकनीकी जानकारियाँ उन्हें कहाँ से मिले तथा इन्हें अपनाने के लिये धन कहाँ से प्राप्त हो धन के अभाव में किसान भाई इन कृषि आधारित व्यवसाओं को नहीं अपना पाते। इन व्यवसाओं को अपनाने में एक और मुश्किल का सामना किसानों को करना पड़ता है और वह है विपणन की समस्या क्योंकि सभी कृषि उत्पादों का उत्पादन तो गाँव में होता है परन्तु इसकी मांग शहरों में होती है दूसरा ये पदार्थ शीघ्र खराब हो जाते है और कोल्ड स्टोरेज की सुविधा के बिना इनका भण्डारण अधिक समय तक नहीं किया जा सकता.

किसान एवं ग्रामीण जनता का विकास देश की आर्थिक योजना तथा विकास प्रक्रिया का प्राथमिक विषय है केन्द्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ग्रामीण एक कृषि विकास रणनीतियों का नया रूप दिया जा रहा है। किसान व ग्रामीण विकास नीति में एक व्यापक बदलाव आ रहा है। उसी कड़ी में उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा प्रमुख योजनाएं चलाई जा रही है।

मुख्यमंत्री ग्रामोद्योग रोजगार योजना:-

यह योजना उ.प्र. खादी ग्रामोद्योग बोर्ड द्वारा संचालित की जा रही है। इस योजना से लाभ ग्रामीण शीक्षित, बेरोजगार, कारीगर व स्वतः रोजगार में रूची रखने वाले पुरूष व महिलाओं को स्वावलम्बी बनाना। इस योजना का पात्रता 18 से 50 वर्ष की आयु वाले शिक्षित बेरोजगार एस.जी.एस.वाई. तथा शासन की अन्य योजनाओं के अन्तर्गत प्रशिक्षित अभ्यार्थी व स्वतः रोजगार में रूचि रखने वाले पुरूष व महिलाओं ऋण सीमा इस योजना के अन्तर्गत सभी पात्र उद्यमियों को सावधि ऋण, कार्यशील पूंजी सम्मिलित करते हुए रू.  10, 00,000/- तक व्याज उत्पादन देय होगा व्याज उत्पादन सामान्य लाभार्थियों हेतु 4% से अधिक शेष व्याज उत्पादन के रूप में उपलब्ध करायी जायेगी एवं आरक्षित वर्ग के लाभार्थियों एस.सी., एस.टी.ओ.वी.सी. अल्प संख्यक महिलाओं व भूतपूर्व सैनिक को जिला योजना के अन्तर्गत व्याज की पूर्ण धनराशि व्याज उपादान के रूप में उपलब्ध करायी जायेगी इस योजना का आवेदन जिला उद्योग केन्द्र उ.प्र. खादी ग्रामोद्योग बोर्ड में किया जाता है।

सघन मिनी डेरी परियोजना:-

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अन्तर्गत सघन मिनी डेरी परियोजना को संशोधित रूप में चलाये जाने के निर्देश प्रमुख सचिव दुग्ध विकास विभाग उ0प्र0 शासन द्वारा दिये गये। जिसके आधार पर दुधारू पशुओं के वित्त पोषण हेतु बैंक द्वारा चलायी जा रही है। इसका उद्देश्य दुग्ध समितियों के माध्यम से उनके सदस्यों पशु पालकों कृषकों को दुग्ध उत्पादन बढ़ाने एवं उन्हें गाँव में ही व्यवसाय उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वित्तीय सहायता उपलब्ध के कराना है। इसका पात्रता किसान पशु पालक या दुग्ध उ0स0 सहकारी समिति का सदस्य जो बैंक किसी वित्तीय संस्था का बकायेदार न हो तथा बैंक के सेवा क्षेत्र का निवासी हो।

इसकी इकाई लागत दो पशु, चार पशु, छः पशु, आठ पशु, दस दुधारू पशुओं की इकाई हेतु इकाई लागत दो पशु रू.  75,900/- ार पशु रू. 1, 51,800/- छः पशु रू. 2,27,700/- आठ पशु रू.  3,03,800/- दस पशु रू. 3,79,500/- निर्धारित की गयी है। इस योजना में अंशदान इकाई लागत का 33% अनुसूचित जाति के लिये एवं लागत का 25% अन्य वर्ग हेतु अंशदान इकाई लागत का 10% है। अधिकतम बैंक ऋण दो पशुओं के लिये अ.ज. जनजाति के लिये रू. 46,230/- अन्य वर्ग के लिये रू. 51,750/- व्याज दर 13.50% अदायगी 60 मासिक किस्तों में इस योजना का आवेदन दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति के माध्यम से परियोजना प्रबन्धक जिला दुग्ध संघ के पास।

स्पेशल कम्पोनेटप्लान (एस.बसी.पी.):-

यह योजना अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिये है। इन वर्ग के व्यक्तियों के विकास के लिये चलाई जा रही है। इसके अन्तर्गत स्वतः रोजगार के लिये व्यवसाय पशु पालन कुटीर उद्योग आदि सभी तरह की परियोजना के लिये वित्त पोषण किया जाता है। इसका पात्रता बैंक सेवा क्षेत्र के अनुसूचित जाति/ जनजाति वर्ग के सभी व्यस्क व्यक्ति अनुदान/मार्जिन मनि इस योजना के अन्तर्गत लाभार्थियों को इकाई लागत 50% अनुदान एवं मार्जिन मनी के रूप में उपलब्ध कराया जाता है। इस योजना का ऋण सीमा इकाई लागत का 50% ऋण के रूप में इसकी अदायगी परियोजना के अनुरूप सामान्यतया 60 मासिक किस्तों के इसका आवेदन खण्ड विकास कार्यालय में किया जाता है।

बैंक में खातों पर व्याज कैसे लगता है:-

बैंक में ऋण खातों में व्याज की गणना दैनिक अवशेष के आधार पर की जाती है। आप जो धनराशि बैंक से लाते है उस पर उसी दिन के व्याज लगना आरम्भ हो जाता है। जब कोई धन राशि आप जमा करते है तो उसी दिन से उस राशि पर व्याज लगना बन्द हो जाता है। बैंक में बचत खातों पर व्याज छमाही आधार पर प्रत्येक वर्ष फरवरी एवं अगस्त में लगाया जाता है। खातों में व्याज की गणना खाते में दैनिक अवशेष के आधार पर की जाती है। व्याज न निकालने पर व्याज पर भी व्याज की गणना की जाती है। मियादी जमा पर व्याज की गणना त्रैमासिक आधार पर की जाती है और इसमें भी व्याज न निकालने पर बचत खाते की भाँति व्याज पर व्याज की गणना की जाती है। ऋण खातों में समय से ऋण अदा न करने पर ऋण राशि पर दण्ड व्याज भी लगाया जाता है।

किसान भाई नाबार्ड बैंक के बारे में जाने:-

नाबार्ड का पूरा नाम राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण बैंक है। भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिये इसका स्थापना 1982 में की गई थी। इसका मुख्य कार्य कृषि एवं ग्रामीण विकास से सम्बन्धित भारत सरकार के नीतिगत निर्णयों का क्रियान्वन करता है। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों एवं सहकारी बैंकों को पुनर्वित्त के रूप में सहायता प्रदान करना उनके संचालन पर नियंत्रण करना स्टाफ सदस्यों के क्षमता विकास के सहयोग करना है।

नाबार्ड बैंक द्वारा कृषकों के लाभ के लिये निम्न महत्वपूर्ण योजनाए चलाई जा रही है जो इस प्रकार है-

1- डेयरी उद्यमिता विकास योजना इसके अन्तर्गत 30% तक अनुदान दिया जाता है।

2- ग्रामीण भण्डारण योजना इसके अन्तर्गत 25% एवं अधिकतम रूपये 37 लाख 50 हजार तक अनुदान देय है।

3- स्वयं सहायता समूहों के गठन/लिंकेज हेतु अगैर सरकारी संस्थाओं व बैंकों प्रोत्साहन योजना।

4- संयुक्त देयता समूहों के गठन/लिंकेज हेतु गैर सरकारी संस्थाओं व बैंकों को प्रोत्साहन योजना।

5- कृषक क्लबों के गठन एवं रख-रखाव व मीट विद एक्सपर्ट हेतु प्रोत्साहन योजना।

6- भारत सरकार द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड के अन्तर्गत वितरित ऋणों में व्याज सबवेन्शन अनुदान की योजना।

7- महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु महिला विकास प्रकोष्ठ की स्थापना व परियोजनाओं के संचालन हेतु प्रोत्साहन योजना।

8- वित्तीय समावेशन कार्यक्रम के अन्तर्गत बी0सी0 के माध्यम से सेवाएं पहुँचाने तथा वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम हेतु बैंकों को वित्तीय समावेशन कोष एवं वित्तीय समावेशन तकनीकी कोष से वित्तीय सहायता।

9- एग्रीक्लीनिक व एग्रीबिजनेश का स्थापना हेतु युवकों को प्रशिक्षण हेतु सहायता एवं परियोजना स्थापित करने हेतु अनुदान इत्यादि करना।

10- जवाहर लाल नेहरू सोलर मिशन के अन्तर्गत भारत सरकारी द्वारा चलाई जा रही सौर ऊर्जा उपकरणों के वित्त पोषण सम्बन्धी योजना से अनुदान दिया जाता है।

किसान बन्धुओं से भेदभाव क्यो:-

1- खेती करने में दिन पर दिन खर्च बढ़ता जा रहा है उनकी फसल का वाजिब दाम न ही मिल पाता है।

2- सरकारी आंकड़ों के मुताबिक विते 16 सालों में किसानों पर खेती का कर्ज 9 गुना से भी ज्यादा बढ़ा है।

3- हमारे प्रधानमंत्री ने कहा था अमीर-गरीब के लिए एक सी नीति एक सा बरताव होना चाहिए लेकिन यह जमीनी हकीकत नहीं है। गुजरात में कार बनाने के कारखाने व पंजाब में पैट्रों कारखाने को सिर्फ 1 फीस दी व्याज पर अरबों रूपया कर्ज व 15 साल के लिए कर छुट की सहूलियते मिलती है और किसानों से 4 फीसदी व्याज लिया जाता है। अगर समय से किसान कर्ज नहीं चुका पाता है तो 7 से 8 प्रतिशत व्याज देना पड़ता है।

4- प्रायः किसानों भाइयों के साथ लगा रहता है कभी अधिक वर्षा से फसल बरबाद हो जाता है और कभी सुखा फसल बरबाद हो जाती है कभी इतना अधिक पैदावार हो जाता है कि उनका भाव नहीं रहता जैसे कि आलू के पैदवार देखने को मिला और भी है।

5- अति वर्षा ओले आधी से पिछले साल रवी कि फसल बरबाद हो गई लेकिन 70% किसानों भाइयों का उसका मुआयजा नहीं मिला यह कटु सत्य है। भले ही केन्द्र सरकार और राज्य सरकार अपनी पिठ थपथपाती है। हकिकत में किसानों मुआयजा वंचित रहना पड़ा और इस साल खरीफ कि फसल सुखे भेंट चढ़ गई सरकार कहती कि सुखे का मुआयजा दूँगा या सरकार पैसे भेज दी है लेकिन अधिकतर किसानों का कहना है कि अति वर्षा ओले के पैसे तो मिले नहीं अब सूखे कि बात कर रहे हैं। उ0प्र0 बलिया जिला तहसील बाँसडीह ग्राम टडवाँ किसानों का कहना है। हम लोगों को एक नया पैसा नहीं मिल उसी तहसील के राजपुर गाँव के किसानों वहीं मिला है जबकि उस गाँव में भी अधिक ओले, वर्षा से 50% अधिक नुकसान हुआ था।

6- किसान परिवारों की औसत ग्रामीण आमदनी 2115 रूपये हैं रोजाना ढाई हजार किसान खेती बारी से तौबा कर रहे हैं। देश की दो तिहाई आबादी गरीबी मुखगरी की शिकार है ताजा पड़ताल बताती है कि जो किसान अन्न उगाकर पूरे देश का पेट भरने की गारंटी देते हैं। उनमें से आज 60 फीसदी भुखमरी की कगार पर पहुँच चुके है। यह हालात भयावह है। किसानों के उनकी उपज की वाजिब कीमत दी जाने के नाम पर सरकार जिस न्यूनतम समर्थन मूल्य को देने का ऐलान करती है उसकी हकीकत किसानों दिल दुखाने वाली है। सरकारी मुलाजिमों का न्यूनतम वेतन तय है। इसी प्रकार किसानों की कम से कम आमदनी भी तय होनी चाहिए ताकि उन्हें कम कर्ज लेना पड़े एक किसान की कमाई एक मनरेगा के मजदूरों से भी कम है जबकि एक मनरेगा के मजदूर एक माह का 6 हजार रूपया है।

7- किसान बकाएदार हो तो कुर्की हो जाती है तहसील में बंद होने की नौबत आ जाती है। खेती के कर्ज का बड़ा हिसा खेती आधारित उद्योगों की आड़ में धन्नासेठ हड़प जाते है और चीनी मिल मालिकों जैसे बहुत से कारखानेदार बैंक अफसरों से सांठ-गांठ करके मोटा एग्रीकल्चर लोन लेने में कामयाब हो जाते हैं।

8- खेती के लिये कर्ज देने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड की है हर साल सरकार द्वारा ऐलान होता है किसान क्रेडिट कार्ड पर इतना लोन का रूपया किसानों देने के लिये लक्षय रखा गया है और कृषि कार्य के इतना धन देने का लक्ष्य है लेकिन नाबार्ड बैंक को इसका भी तो अपनी सालना रिपोर्ट में व आनलाइन करना चाहिए कि खेती के कुल बाँटे कर्ज में से कितना रकम छोटे किसानों को मीला व कितनी रकम खेती पर आधारित करखानों चलने वालों को दी गई।

9- कर्ज देने व वसूलने में बरती जाने वाली खामियां भी दूर की जानी चाहिए मसलन कोई बैंकों में खेती के कर्ज की रकम का आखिरी इस्तेमाल परखने का कोई इंतजाम ही नहीं है।

बैंकों में कैसे कर्ज मिलता है जग जाहिर है इसका लिपा पोती नहीं करना चाहता हूँ।

किसान जो रोएगा,

तो देश भूखा सोएगा..!

 

English Summary: Approach: policies of agricultural development and its drawbacks Published on: 11 October 2017, 05:00 IST

Like this article?

Hey! I am . Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News