धीरेन्द्र देसाई गुजरात के भरूच जिले के पनेथा नामक छोटे से गांव के रहने वाले एक सफल किसान है, जो केले की खेती/ Banana Farming कर हर साल लाखों की कमाई कर रहे हैं. उन्होंने 1991 में केले की खेती से कृषि कार्यों को करना शुरू किया. वह अच्छी फसल के लिए टिशू कल्चर, ड्रिप सिंचाई और एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन जैसी उन्नत तकनीकों से खेती करते हैं. उनके द्वारा किए गए कृषि क्षेत्र में उन्नत तकनीकों को अपनाने के चलते धीरेन्द्र सिंह का नाम मैजिक बुक ऑफ रिकॉर्ड्स/ Magic Book of Records में भी दर्ज किया गया है.
बता दें कि गुजरात के किसान धीरेन्द्र देसाई को कृषि क्षेत्र में कई सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है. ऐसे में आइए इसके द्वारा किए जा रहे केले की खेत की तकनीक और उनके संघर्ष की कहानी के बारे में कृषि जागरण के इस लेख में विस्तार से जानते हैं...
गांव के लिए नया कुछ करने का फैसला
किसान धीरेन्द्र देसाई ने बताया कि मेरा स्कूल 7 किलोमीटर दूर था और किसी भी तरह की परिवहन सुविधा भी नहीं थी. अगर मैं ऐसे ही चलता रहता तो मेरी पूरी ज़िंदगी सिर्फ़ इधर-उधर जाने में ही बर्बाद हो जाती. इसलिए, मैंने गांव के लिए कुछ नया करने का फैसला लिया और अपने परिवार के साथ खेती-बाड़ी में जुड़ गया. उन्होंने बताया कि साल 1991 में केले की खेती से अपनी कृषि यात्रा शुरू की. इसके अलावा उन्होंने रेवा बागायत मंडल किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) की स्थापना की. धीरेनभाई ने बताया, "मैं एफपीओ में एक पर्यवेक्षक के रूप में शामिल हुआ था, लेकिन समय के साथ, में मुख्य लेखाकार और फिर संगठन का निदेशक बन गया."
धीरेन्द्र सिर्फ केले की G9 किस्म की करते हैं खेती
धीरेन्द्र की सफलता का श्रेय मुख्य रूप से आधुनिक तकनीक को अपनाने की उनकी इच्छा को जाता है. उन्होंने टिशू कल्चर, ड्रिप सिंचाई और एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाया, जिसमें अकार्बनिक और जैविक पोषक तत्वों का संतुलित 70:30 अनुपात का उपयोग किया गया. वह केले के फूलों को हटाने का भी अभ्यास करते हैं, यह एक ऐसी विधि है जो फंगस और कीटों के हमलों के जोखिम को कम करती है, जिससे उच्च गुणवत्ता वाली उपज सुनिश्चित होती है. इस संदर्भ में उन्होंने कृषि जागरण की टीम को बताया कि "सबसे पहले, मैं थ्रिप्स और कीटों को हटाने के लिए एक इंजेक्शन देता हूं, फिर मैं फूलों को हटाता हूं, जो आवश्यक है, क्योंकि अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो सूखा हुआ फूल बह जाएगा और केले पर निशान बन जाएगा. फिर हम गुणवत्ता के लिए छिड़काव का उपयोग करते हैं और फिर बैगिंग और कटाई करते हैं. इस तकनीक ने केले की गुणवत्ता में काफी सुधार किया है."
किसान धीरेन्द्र अपने खेत में सिर्फ केले की G9 किस्म की खेती/ Cultivation of G9 variety of banana करते हैं. केले की यह उन्नत किस्म केले कि अन्य किस्मों के मुकाबले अधिक उपज देती है. इस किस्म का प्रति पौधा 225-250 फल देता है. धीरेन्द्र भारत के एकमात्र ऐसे किसान हैं जिन्होंने 26 महीनों में ही केले की तीन फसल प्राप्त की है. इससे उन्हें प्रति हेक्टेयर 16.70 लाख रुपये तक की शुद्ध आय हुई है. उनके केले को मध्य पूर्व क्षेत्र में एक अलग ही पहचान मिली है. इसी के चलते उन्होंने अपने गाँव में केले के चिप्स बनाने की इकाई स्थापित की, जिससे स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा हुए. पनेथा जैसे अधिशेष क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता ने केले की खेती को एक लाभदायक उद्यम बना दिया है.
गुजरात में केले की खेती में ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल करने वाले पहले किसान
किसान धीरेंद्र ने बताया कि साल 2013-14 में पहली बार पांच देशों में केले का निर्यात किया, जो उनके क्षेत्र के किसी किसान द्वारा किया गया पहला अंतरराष्ट्रीय निर्यात था. उन्होंने दुबई, अबू धाबी, ओमान और सऊदी अरब में केले का निर्यात किया और आज भी वह अपने केले की उपज को विदेशों को बाजार में बेचते हैं. उन्होंने बताया कि वह गुजरात में केले की खेती के लिए ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल करने वाले पहले सफल किसान है. उनकी सफलता की कहानी ने गुजरात भर के हजारों किसानों को प्रेरित किया है. धीरेंद्र भारत भर के किसानों को ऑनलाइन परामर्श भी देते हैं, अपनी विशेषज्ञता साझा करते हैं और छोटे और सीमांत किसानों को खेती-किसानी से जुड़ी हर एक तरह की मदद करने का प्रयास भी करते रहते हैं.
किसान धीरेंद्र को मिले कई पुरस्कार
गुजरात के धीरेन्द्र देसाई किसान को ' स्वर्गीय गौरी हाई-टेक केला पुरस्कार-2013 ' निर्यात पुरस्कार, जलगांव के जैन इरिगेशन ने उन्हें 51,000 रुपये का पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. इसके अलावा, उन्हें अमित रत्न पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ आत्मा किसान पुरस्कार, उत्कृष्टता पुरस्कार, श्री सरदार पटेल कृषि अनुसंधान पुरस्कार, राष्ट्रीय AIFA पुरस्कार और सतत कृषि पुरस्कार 2024 सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं.
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