महिलाओं को हमेशा से इस समाज में दबाने की कोशिश की जाती रही है ओर उनके साथ भेदभाव होता है. लेकिन कही न कही महिलाये अपने आप को साबित कर ही देती है की वो भी किसी से कम नहीं है. यदि देखा जाए तो इस समय महिलाये हर एक क्षेत्र में पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर चल रही है. खेती को कठिन कार्य माना जाता है लेकिन पुराने समय से महिलाएं खेती में बराबर की मेहनत करती आयी है. इसलिए उनको कमतर नहीं आंक सकते. अब जमाना बदल रहा है खेती में महिलाएं पुरुषों से आगे निकल रही हैं.
महाराष्ट्र राज्य की एक ऐसी ही महिला है जिन्होंने अपने आपको साबित किया की वह पुरुषों से कम नहीं है. हम बात कर रहे हैं वनिता बालभीम मनशेट्टी की जिन्होंने आज से ४ साल पहले १ एकड़ में खेती का फॉर्मूला अपनाया. इससे वो एक आत्मनिर्भर किसान बन गयी. वनिता महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के चिवड़ी गावोकी रहने वाली है जिनकी चार बेटियां हैं. उनके पति भी खेती में उनका साथ देते हैं. वो वनिता का हमेशा से साथ देते आये हैं. उनको अपनी पत्नी की इस उपलब्धि पर गर्व है.
वनिता ने जैविक खेती के साथ शुरुआत की. असल में वनिता स्वयं शिक्षण प्रयोग ओर विज्ञान केंद्र के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लग गयी थी इसी दौरान उनको इस फॉर्मूले के विषय में पता लगा. स्वयं शिक्षण प्रयोग के सदस्य वनिता को स्व उद्यम की कार्यशाला में ले गए जहा जैविक खेती के विषय में जानकारी दी गयी. वह उनको पता चला की एक एकड़ में लगभग 100 फसलें उगाई गयी थी. छोटे से खेत में इतनी फसलें देखकर वो चकित रह गयी. उसी समय उन्होंने फैसला किया की भी अपने खेत में इतनी फसलें उगाकर रहेगी.दृढ निश्चय के साथ उन्होंने कड़ी मेहनत करना शुरू कर दिया ओर ठान लिया की वो ऐसा करके ही मानेगी.
चूँकि वनिता के पति मधुमेह ओर बीपी की समस्या से पीड़ित है इसलिए उन्होंने फैसला लिया कि वह अब खेती करेगी ताकि परिवार को भरपेट और पौष्टिक भोजन मिल सके। वह जानती थी कि खेती में इस्तेमाल होने वाली रासायनिक खाद और कीटनाशक ही विभिन्न रोगों का कारण है। वह अपने बच्चों को पौष्टिक भोजन कराएगी.उन्होंने जैविक खेती की शुरुआत की जिसमें जमीं कम होने की वजह से उन्होंने कुछ दो एकड़ भूमि बटाई पर ले ली. उनके पास 3 एकड़ भूमि हो गयी. शुरुआत में अनाज, दालें ओर सब्जिया बोना शुरू किया.उन्होंने एक एकड़ में खेती की शुरुआत की. उसके बाद दो एकड़ भूमि में पति के सात खेती करना शुरू किया. इस तरह उन्होंने एक साल में 15 उगाई. इसमें अनाज, दालें हरी सब्जिया शामिल थी.
वनिता ने अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत दो फसली मौसम में अच्छी कमाई कर ली. उनके अनुसार वह अपने घर के जरुरत के अनुरूप अनाज और सब्जियां रख लेती है और बाकी को बाजार में बेच देती है . इस हिसाब से उनको 50 से 60 हजार रूपये तक की बचत हो जाती है. इससे उनके घर में जैविक खाना भी मिल जाता है और कमाई भी हो जाती है. वनिता कहती है कि जो फसल वह लगाती है उसका 25 प्रतिशत घर में इस्तेमाल हो जाता बाकी को वह बाजार में बेच देती है.
फसलों को उगाने के लिए जैविक खाद का इस्तेमाल
इन फसलों को उगाने के लिए वह गाये के गोबर से बानी जैविक खाद का ही इस्तेमाल करती है. फसल कि बुआई लागत लगभग 10 से 12 हजार के बीच में आ जाती है. इस तरीके से खेती करना वनिता को अच्छा लगता है. वह कहती है कि मेरे पति मेरी कामयाबी से काफी खुश हैं और हमारे घर में कमाई के साधन भी बढ़ गए हैं. जिससे कि हमें बच्चो के भविष्य को सवारने में आसानी होगी. वह कहती है अब मै खुद ही खेती करती हूँ. मेरे इस तरीके से खेती करने से और भी महिलायें प्रभावित हुई हैं. हमें इसकी बदौलत गावों में और अधिक सम्मान मिला.
कृषि में महिलाओं को आगे आने कि जरुरत
यदि कृषि में महिलाओं को बढ़ावा दिया जाए ऐसी और भी कहानिया हमारे सामने आ सकती है. हमारे देश में कही न कही महिलाओं को खेती कि आधुनिक तकनीकों के प्रति जागरूक करने कि आवश्यकता है. इसके लिए कुछ और कदम उठाये जाए.
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