बिहार के गोपालगंज जिले के बरौली के दयानंद ने विदेश की नौकरी छोड़ खेती को अपनाया दयानंद कभी विदेश में नौकरी कर लाखों की कमाई किया। लेकिन सात समंदर पार की धरती उन्हें रास नहीं आयी और अपनी जन्मभूमि पर आकर खेती को अपना कैरियर बनाया। आज सब्जी की खेती कर दयानंद न सिर्फ अपनी जिदंगी संवार रहे हैं बल्कि सालाना तीन लाख से अधिक का आय कर बच्चों को मुकाम पर पहुंचाने के लिए प्रयासरत हैं। प्रखंड की महम्मदपुर निलामी पंचायत के पिपरा गांव निवासी दयानंद साह ने वर्ष 2007 से 2012 तक सऊदी अरब में नौकरी की। पांच वर्ष तक विदेश में नौकरी करने के बाद इनका वि देश से मोह भंग हो गया और वे घर लौट आये। ये गांव और घर पर रह कर ही पैसा कमाना चाहते थे। इसी चाहत में उनके कदम खेतों की ओर बढ़ गये। वर्ष 2013 में प्रयोग के तौर पर दयानंद ने एक एकड़ खेत में बैगन तथा गोभी की खेती शुरू की और उसे अच्छी आमदनी हुई। मुनाफे का सौदा देख दयानंद का हौसला बढ़ा और उसने अगले वर्ष खेती का रकबा दोगुना कर दिया। इस बार तीन एकड़ जमीन में दयानंद बैगन, गोभी, आलू, मिर्चा की खेती की है. प्रति एक दिन के अंतराल पर एक क्विंटल बैगन इनके खेतों से निकलता है जिनसे बाहर के व्यापारी खेत से ही उठा कर ले जाते हैं। प्रत्येक दो दिन पर इनकी आय एक हजार से पंद्रह सौ रु पये है। इन्होंने बताया कि कुल खेती करने में वे डेढ़ लाख खर्च कि ये हैं और इस बार आमदनी खर्चे छांट कर चार लाख होने की उम्मीद है। बेटे को पायलट बनाने का दयानंद का है सपना दयानंद को दो वर्ष का एक पुत्र है, जिसे अच्छी शिक्षा देकर पायलट बनाना उसका सपना है। दयानंद ने बताया कि विदेश की नौकरी से खेती अच्छी है। कोई भी युवा खेती कर अपनी जिंदगी न सिर्फ संवार सकता है बल्किअच्छा मुकाम भी पा सकता है। जरूरत है दृढ़ इच्छा शिक्त की। सरकार को भी सब्जी की खेती के लि ए युवाओं को जागृत करते हुए अनुदान देना चाहिए।
दूसरी ओर बिहार के सीतामढ़ी जिले में मौसम की बेरूखी तो कभी बाढ़ की कहर से तबाह किसान जहां खेती से नाता तोड़ रहे हैं। वहीं, डुमरा प्रखंड के नारायणपुर गांव निवासी रामलक्षण कुमार (35) अपनी मेहनत की बदौलत खेती कर आर्थिक समृद्धि की ओर बढ़ रहे है। खेती हीं उनकी जीवन का सहारा है। रामलक्षण महज तीन एकड़ जमीन में गेहूं, तेलहन के अलावा सब्जी की खेती कर अच्छी आमदनी कर रहे हैं. उसी कमाई से उन्होंने अपनी एकलौती पुत्री को मैट्रिक पास करा कर शादी की। वहीं, दोनों पुत्र दीपक व ऋ षि केश को क्र मश: मैट्रिक व इंटर में पढ़ा रहे हैं, जिसे पढ़ा कर सरकारी नौकरी कराना चाहते हैं। इसके लिए खेतों में जी तोड़ मेहनत करते है। उनकी तरक्की व उनके खेत में लहलहाते आलू व गेहूं की फसल देख हर कोई उनसे खेती की टिप्स लेने पहुंचते है. रामलक्षण कुमार आलू के खेत में निकौनी कर रहे थे। आज से दस साल पूर्व उनके पिता खेती करते थे। तब कि सी तरह घर की खर्च चलता था. उनके निधन के बाद खेती नहीं होने से घर की माली हालत और खबरा हो गया। तब रामलक्षण खुद से खेती करने का मन बना फसल उगाने लगे. कुछ दिन तक थोड़ी परेशानी हुई, लेकिन बाद में सब ठीक हो गया। 11 कट्टा में आलू की खेती कर रखे है. इसके अलावा पांच कट्टा में फूलगोभी, बंधागोभी, पांच कट्टा में चेच के दो एकड़ में गेहूं, मक्का व तिलहन की खेती कर रखे है। वहीं, कुछ जमीन अगात सब्जी का पौधा लगाने के लि ए तैयार कि ये है। मजदूर नहीं मि लने के कारण अपने से हीं खेतों में अधि क मेहनत करनी पड़ती है. इसलि ए काम को आसान करने के लिए बारी-बारी से सब्जी की खेती करते है। इससे दो फायदा होता है. एक तो सब्जी तोड़ने व बाजार तक ले जाने में आसानी होती है. वहीं, अधिक मजदूरों की आवश्य ता भी नहीं पड़ती है। साथ हीं समय पर सभी फसल की सिंचाई करने के साथ हीं कीटनाशक का प्रयोग करने में आसान हो जाता है। इससे फसल नष्ट होने की संभावना कम हो जाता है.
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