राधा मोहन सिंह ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य के तहत, जलवायु परिवर्तन की रोकथाम और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में महिलाओं के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता वह कृषि में बहु आयामीय भूमिका निभाती हैं. माननीय मंत्री महोदय ने आगे कहा कि कृषि सेक्टर के भीतर दैनिक दिहाड़ी मजदूर सामाजिक आर्थिक स्थिति और क्षेत्रीय कारकों के आधार पर कार्य कर रहे हैं, अपने खेतों में काम कर रहे हैं और साथ ही कृषि उत्पादन के विभिन्न पहलुओं के प्रबंधन में भी कार्य कर रहे हैं जिनमें महिलाएं मजदूरी सुपरविजन और कटाई उपरांत ऑपरेशनों में भागीदारी करके महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.
खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, भारतीय कृषि में महिलाओं का योगदान लगभग 32 प्रतिशत है जबकि कुछ राज्यों (यथा पर्वतों, पूर्वोत्तर तथा केरल) में कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान पुरूषों के मुकाबले कहीं अधिक है. 48 प्रतिशत महिलाएं कृषि संबंधी रोजगार में शामिल हैं जबकि 7.5 करोड महिलाएं दूध उत्पादन और पशुधन प्रबंधन में उल्लेखनीय भूमिका निभा रही हैं.
माननीय मंत्री महोदय ने कहा कि कृषि एवं सम्बद्ध गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी को मजबूती प्रदान करने और भूमि, ऋण तथा अन्य सुविधाओं तक उनकी पहुंच में सुधार लाने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति के तहत घरेलू एवं कृषि भूमि दोनों के लिए संयुक्त लीज जैसे नीतिगत प्रावधान किए गए हैं.
मंत्रालय का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि महिलाएं कृषि उत्पादन और उत्पादकता में प्रभावी रूप से अपना योगदान करें और बेहतर आजीविका अवसर पाएं. इसलिए, महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में समुचित संरचनात्मक, कार्यपरक तथा संस्थागत उपायों को प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि महिलाओं की क्षमताओं का निर्माण किया जा सके और निवेश प्रौद्योगिकी और अन्य कृषि संसाधनों तक उनकी पहुंच को बढ़ाया जा सके और इस संबंध में अनेक पहल की गई हैं.
कृषि में महिलाओं की भूमिका को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1996 में, मंत्रालय द्वारा भुवनेश्वर, ओडि़शा में भाकृअनुप – केन्द्रीय कृषिरत महिला संस्थान की स्थापना की गई थी. यह संस्थान कृषि में महिलाओं से जुडे विभिन्न पहलुओं पर कार्य करता है.
इसके अलावा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 100 से भी अधिक संस्थानों द्वारा महिलाओं की मेहनत में कमी लाने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए तकनीकें विकसित की गई हैं. देश में कुल 680 कृषि विज्ञान केन्द्र कार्यरत हैं और प्रत्येक कृषि विज्ञान केन्द्र में एक गृह विज्ञान विंग की सुविधा उपलब्ध है. वर्ष 2016-17 में, महिलाओं से जुड़ी 21 तकनीकों का मूल्यांकन किया गया और 2.56 लाख महिलाओं को कृषि संबंधी विषयों यथा सिलाई, निर्माण, मूल्य वर्धन, ग्रामीण हस्तकला, पशु पालन, मधुमक्खी पालन, पोल्ट्री पालन एवं मछली पालन आदि में प्रशिक्षित किया गया.
इसके साथ ही, विभिन्न योजनाओं/कार्यक्रमों और विकास संबंधी गतिविधियों के तहत महिलाओं के लिए कम से कम 30 प्रतिशत राशि को अंकित अथवा निर्धारित किया जा रहा है. महिलाओं तक विभिन्न लाभ उन्मुख कार्यक्रमों/योजनाओं को पहुंचाना सुनिश्चित करने के लिए, महिला स्वयं सहायता समूहों के गठन पर बल दिया जाता है और उन्हें क्षमता निर्माण जैसी गतिविधियों के माध्यम से सूक्ष्म क्रेडिट के साथ जोड़ा जाता है. साथ ही सूचना तक उनकी पहुंच सुनिश्चित की जाती है और महिलाओं को योजना बनाने से लेकर निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. मंत्रालय द्वारा प्रो-महिला और महिला स्पोर्टिंग उपाय भी किए जा रहे हैं.
कृष्णा राज, माननीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री एवं श्रीमती अर्चना चिटनिस, माननीय कृषि एवं बाल विकास मंत्री, मध्य प्रदेश सरकार ने भी कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई.
डॉ. त्रिलोचन महापात्र, सचिव, डेयर एवं महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कहा कि कृषि में महिलाओं की भूमिका सराहनीय है.
डॉ. ए.के. सिंह, उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) एवं डॉ. वी.पी. चहल, सहायक महानिदेशक (कृषि विस्तार), भाकृअनुप भी कार्यक्रम में उपस्थित थे.
चंद्र मोहन, कृषि जागरण
Share your comments