महाराष्ट्र में लगातार किसानों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में आए दिन आत्महत्याओं की घटनाओं ने सरकार को हिला कर रख दिया है। इस बीच खबर है कि मार्च के मध्य तक जारी आँकड़ों के अनुसार राज्य में 221 किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। यानि कि राज्य में जनवरी से मार्च के मध्य तक रोज तीन आत्महत्याएं हुईं हैं।
यदि इस प्रकार आत्महत्याओं का सिलसिला जारी है तो यह कहने में कोई संशय नहीं रह गया है कि राज्य सरकार से किसी भी प्रकार की सहूलियत किसानों को नहीं मिल पा रही है। बीते दिनों किसानों ने इच्छा मृत्यु की मांग तक कर डाली थी। इस दौरान किसानों को कर्जमाफी की घोषणा के बाद इस योजना के सही तरीके राज्य में न लागू हो पाने के कारण व कपास की खेती करने वाले किसानों को पिंकबॉलवार्म से खराब हुई फसल का सही भरपाई न मिलने से हताश किसानों को आत्महत्या करनी पड़ रही है।
राज्य का मराठवाड़ा जिला पिछले कुछ दिनों से चर्चा में है और इसका कारण सिर्फ किसानों की बदहाली। मराठवाड़ा की ही बात करें तो सिर्फ 66 किसानों ने आत्महत्या की है। यह आंकड़ा साफ करता है कि महाराष्ट्र के सबसे पिछड़े इलाके में किसानों को कपास में कीट और कर्जमाफी की सहूलियत सरकार किसानों तक पहुंचाने में असफल हो रही है।
इस दौरान सत्ता पक्ष व विपक्ष में सवाल-जवाब हो रहा है कि आखिरकार कौन जिम्मेदार लेकिन यह सब बेनतीजा है क्योंकि किसान बदहाल परिस्थितियों में अपनी जान खोते जा रहे हैं।
सरकार द्वारा नियुक्त किए गए वसंतराओ नाइक शेती स्वालंबन मिशन के चैयरमैन किशोर तिवारी ने कपास में पिंकबॉलवार्म कीट से हुए नुकसान के लिए मुआवजा व कर्जामाफी की योजनाओं में कमी को ही आत्महत्याओं को जिम्मेदार माना है। तो वहीं दूसरी ओर नेता विपक्ष विधान परिषद धनंजय मुंडे ने सरकार को आत्महत्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराया और कहा कि मराठवाड़ा में किसानों को मुआवजा देने में सरकार असफल रही है।
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