आईआरआरई द्वारा नास्क (NASC) कॉम्लेक्स में “खाद्य प्रणाली और खाद्य सुरक्षा” मुद्दे पर पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया. इस चर्चा में विस्तार से बताया गया कि किस तरह से सभी मनुष्यों को न्यूट्रिशनल हेल्थ, इकोसिस्टम, क्लाइमेट चेंज आदि कारक प्रभावित करते हैं. चर्चा में इस बात पर जोर दिया गया कि खाने की गुणवत्ता को सुधारने के लिए एग्रीकल्चरल पॉलिसी में बदलाव जरूरी है.
सतत पोषणीय खाद्य प्रणाली की जरूरत
चर्चा में एफएसएसआई के सीईओ पवन अग्रवाल ने कहा कि सांस्कृतिक और भूगौलिक विविधताओं के कारण हमारे यहां कई तरह के भोजन खाये जाते हैं. स्वाद को लेकर भी तरह तरह के प्रयोग जारी हैं, लेकिन ये दुर्भाग्य है कि हम लगातार न्यूट्रिशन, प्रोटीन्स विटामिन्स जैसे कारकों को नजरअंदाज कर रहे हैं. इसलिए आज ऐसे फ़ूड चैन की जरूरत है जो वातावरण, धरती और मानव स्वास्थ की जरूरतों को पूरा करते हुए सभी के लिए लाभकारी हो.
उन्होनें कहा कि “फ़ूड चैन में खाद्य पदार्थों का स्वास्थवर्धक होना पहला और सबसे महत्वपूर्ण चरण होना चाहिए. इसी तरह खाद्य श्रृंखला में न्यूट्रिशन की बात फ़ूड प्रोडक्शन से पहले होनी चाहिए. लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारे यहां ऐसा नहीं है.”
स्वास्थवर्धक भोजन के लिए जरूरी है जागरूकता
वहीं आइआएफपीआरआई सीनियर रिसर्च फेलो डॉ. पर्णिमा मेनोन ने कहा कि फ़ूड चैन वैल्यू का मतलब सिर्फ डिमांड और सप्लाई क्रिएट करना नहीं बल्कि स्वास्थवर्धक खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देना भी है. इसके लिए जरूरी है कि ग्राउंड लेवल से स्वास्थवर्धक खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ाई जाए. इसके बारे में इनफार्मेशन और एजुकेशन लेवल पर कार्य करने की जरूरत है. बिना जागरूकता के ये संभव नहीं है.
दो चरणों में आयोजित हुई चर्चा
बता दें कि इस चर्चा को दो चरणों अलग-अलग पैनल्स में आयोजित किया गया था. पहले पैनल का टॉपिक भारत में न्यूट्रिशन चैलेंज था, तो वहीं दूसरे पैनल का टॉपिक फ़ूड वैल्यू चैन में सस्टेनेबल एग्रीकल्चरल वैल्यू को शामिल करना था.
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