धनिया एक मसाला है. यह गहरे हरे रंग का होता है. धनिया के बीज एवं पत्तियां खाद्य पदार्थों को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के लिए उपयोग की जाती हैं. यह पूरे भारत और एशिया के कुछ देशों में खाने में जायका बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है. इसका इस्तेमाल प्राचीन काल से किया जा रहा है. इसको औषधी के तौर पर भी उपयोग किया जाता है. भारत के मध्य प्रदेश राज्य में इसकी सबसे ज्यादा खेती की जाती है. इसे चाइनीज़ पार्सले के नाम से भी जाना जाता है. धनिया की खेती करना बहुत ही आसान होता है और इसे किसी विशेष तापमान या जलवायु की जरुरत नहीं होती है. तो आइये जानते हैं
धनिया की खेती का तरीका...
जलवायु
धनिया की खेती के लिए शुष्क व ठंड मौसम उचित माना जाता है. बीजों को अंकुरित होने के लिए 25 से 30 डिग्री का तापमान अच्छा होता है. धनिया एक शीतोष्ण जलवायु की फसल है. धनिया को ठंड से नुकसान होने का खतरा रहता है. धनिया की अच्छी पैदावार के लिए बीज की अच्छी गुणवत्ता, अच्छी तेज धूप ऊंचहन भूमि की जरुरत होती है.
भूमि
धनिया की अच्छी फसल के लिये जल निकास वाली अच्छी दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. धनिया को क्षारीय या लवणीय मिट्टी में उगाने की बिल्कुल ही प्रयास ना करें. मिट्टी का पी.एच. 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए. खेत की जुताई के बाद इस पर पलेवा देकर बड़े ढेले को नष्ट कर दें.
बुवाई
धनिया की बुवाई रबी के मौसम में की जाती है. इसके बुआई का उपयुक्त समय अक्टूबर से नवम्बर महीने के बीच होता है. बुवाई के दौरान अपने इलाके का तापमान जरुर जांच लें. अगर ज्यादा ठंड हो तो बुवाई ऐसे समय में बिल्कुल ही ना करें.
खाद
धनिया की बुआई से पहले मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं जिंक सल्फेट की अच्छी मात्रा जुताई के समय मिट्टी में मिला दें. खाद और बीज को मिलाकर कभी खेती नहीं करनी चाहिए. खाद को पहले मिट्टी में मिलाने के बाद ही बीजों की बुआई करें. इससे धनिया की पैदावार अच्छी होती है.
कटाई
जब धनिया के दाने कठोर होने लगें और पत्तियां पीली पड़ने लगें, तब इसकी कटाई शुरु कर देनी चाहिए. कटाई में विलंब करने से धनिया के दानों का रंग खराब होने लगता है. आपको बता दें कि बाजार में अच्छी दिखने वाली हरी डोड़ी वाली धनिया की मांग अधिक होती है,
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भण्डारण
वैज्ञानिक तकनीकि से खेती करने पर प्रति एकड़ 15 से 20 क्विंटल बीज की पैदावार होती है.भण्डारण के दौरान धनिया के बीजों में हल्की नमी रखनी चाहिए और इसको जूट के बोरों में भरकर ठण्डे और सूखे स्थान पर रखें. भण्डारित किए गए बीजों को 6 से 8 महीने के भीतर ही बेच दें अन्यथा इनकी सुगन्ध कम होने लगती है.
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