करी पत्ता को मीठा नीम के नाम से भी जाना जाता है. भोजन बनाने में उपयोग होता है. मसाला और औषधीय दोनों फसलों के रूप में खेती की जाती है. करी पत्ता जहां खाने को स्वादिष्ट बनाता है वहीं इसमें कई प्रकार के औषधीय गुण भी होते हैं. यदि किसान सही तरीके से करी पत्ता की खेती करे तो अच्छी कमाई हो सकती है. एक एकड़ में करी पत्ता की खेती की जाए तो किसान इसे बेचकर करीब एक लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं. आइए जानते हैं खेती का सही तरीका
जलवायु
करी पत्ते के पौधे की बढ़वार गर्मी और नमी से भरपूर जलवायु में सबसे अच्छी होती है. इसे भरपूर धूप वाले तापमान की जरूरत होती है. सर्दियों में न्यूनतम 10 डिग्री और गर्मियों में अधिकतम 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर शानदार विकास होता है. करी पत्ते के पौधों को समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊँचाई पर भी उगाया जा सकता है.
भूमि का चयन
करी पत्ता की खेती के लिए उचित जल निकास वाली उपजाऊ जमीन होनी चाहिए. अधिक जलभराव वाली चिकनी काली मिट्टी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है. इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6-7 के बीच होना चाहिए.
खेती का उचित समय
बीजों की रोपाई सर्दी के मौसम को छोड़कर कभी भी की जा सकती है. अधिकतर इसे मार्च के महीने में लगाना अच्छा होता है. मार्च के महीनें में लगाने के बाद सितंबर से अक्टूबर माह तक कटाई कर सकते हैं
खेत की तैयारी
खेत की दो से तीन जुताई करके पाटा चला देना चाहिए ताकि भूमि सब जगह से समान रूप से समतल हो जाए. फिर खेत में तीन से चार मीटर की दूरी रखते हुए गड्ढे तैयार कर लेने चाहिए. गड्ढ़ों में सड़ी हुई गोबर की खाद और जैविक उर्वरक की उचित मात्रा मिट्टी में मिलाकर डाल देनी चाहिए. अब गड्ढों की हल्की सिंचाई करनी चाहिए.
बीज या पौधे की रोपाई
यदि बीज से इसकी बुवाई कर रहे हैं तो एक एकड़ में करीब 70 किलो बीज की जरूरत पड़ेगी. इसके बीजों को खेत में बनाए गड्डों में लगाए. इसके बीजों को गड्डों में लगाने से पहले इन्हें गोमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए. अब उपचारित किए बीजों को गड्ढ़ों में तीन से चार सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए.
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सिंचाई
बीज बोने के बाद गड्डों में नमी बनाए रखने के लिए दो से तीन दिन के अंतराल में सिंचाई करें. जब बीज ठीक तरीके से अंकुरित हो जाए तब गर्मियों में सप्ताह में एक बार पौधे को पानी दें. वहीं बारिश के मौसम में जरूरत पर पानी देना चाहिए. जबकि सर्दियों में बहुत कम पानी की जरूरत होती है.
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