तिलहन की फसलों में सरसों (तोरिया, राया और सरसों) का भारत वर्ष में विशेष स्थान है तथा यह हरियाणा प्रदेश में रबी की मुख्य फसल है। सरसों में अनेक प्रकार के कीट समय-समय पर आक्रमण करते हैं लेकिन 4-5 कीट ही आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसलिए यह अति आवश्यक है कि इन कीटों की सही पहचान कर उचित रोकथाम की जाएं । इस लेख में सरसों के कीटों के लक्षण व उनकी रोकथाम के उपाय दियें गए है
बालों वाली सुण्डी (कातरा) : इस कीट की तितली भूरे रंग की होती है, जो पत्तियों की निचली सतह पर समूह में हल्के पीले रंग के अण्डे देती है। पूर्ण विकसित सुण्ड़ी का आकार 3-5 सैं. मी. लम्बा होता है। इसका सारा शरीर बालों से ढका होता है तथा शरीर के अगले व पिछले भाग के बाल काले होते है।
इस सुण्डी का प्रकोप अक्तूबर से दिसम्बर तक, तोरिया की फसल में अधिक होता है तथा कभी-कभी राया व सरसों की फसलें भी इसके आक्रमण की चपेट में आ जाती है । नवजात सुण्डियां आरम्भ में, 8-10 दिन तक, समूह में पत्तियों को खाकर छलनी कर देती है तथा बाद में अलग-अलग होकर पौधों की मुलायम पत्तियों, शाखाओं, तनों व फलियों की छाल आदि को खाती रहती हैं जिससे पैदावार में भारी नुकसान होता है।
नियन्त्रण : फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी में रहने वाले प्युपे को बाहर आने पर पक्षी उन्हें खा जाएं अथवा धूप से नष्ट हो जाएं ।
ऐसी पत्तियां जिन पर अण्डे समूह में होते हैं, को तोड़कर मिट्टी में दबाकर अण्डों को नष्ट कर दें। इसी तरह छोटी सुण्डियों सहित पत्तियों को तोड़कर मिट्टी में दबाकर अथवा केरोसीन या रसायन युक्त पानी में डूबोकर सुण्डियों को नष्ट कर दें।
इस कीडे़ का अधिक प्रकोप हो जाने पर 250 मि.ली. मोनोक्रोटोफास या 500 मि.मी. एण्डोसल्फान (थायोडान) 35 ई.सी. या 500 मि.ली. क्विनलफास (इकालक्स) 25 ई.सी.या 200 मि.ली. डाईक्लोरवास (नूवान) 76 ई.सी. को 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें ।
चितकबरा कीड़ा या धौलिया कीड़ा : यह कीड़ा काले रंग का होता है, जिस पर लाल, पीले, व नारंगी के धब्बे होते है। इस कीडे़ के शिशु हल्के पीले व लाल रंग के होते हैं । दोनों प्रौढ़ व शिशु इन फसलों को दो बार नुकसान पहूँचाते हैं, पहली बार फसल उगने के तुरन्त बाद सितम्बर से अक्तूबर तक तथा दूसरी बार फसल की कटाई के समय फरवरी-मार्च में । प्रौंढ़ व शिशु पौंधों के विभिन्न भागों से रस चूसते हैं जिससे पत्तियों का रंग किनारों से सफेद हो जाता है, अतः इस कीडे़ को धौलिया भी कहते हैं। फसल पकने के समय भी कीडे़ के प्रौढ़ व शिशु फलियों से रस चूसकर दानों में तेल की मात्रा को कम कर देते हैं जिससे दानों के वज़न में भी कमी आ जाती है ।
नियन्त्रण : फसल की बिजाई तब करें जब दिन का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस हो जाए ।
फसल में सिंचाई कर देने से प्रौढ़, शिशु एवम् अण्डे नष्ट हो जाते हैं ।
बीज को 5 ग्राम ईमिडाक्लेापरिड 70 डब्लयू. एस. प्रति किलोगा्रम बीज की दर से उपचारित करें।
फसल की शुरू की अवस्था में 200 मि.ली. मैलाथियान 50 ई. सी. को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
मार्च-अप्रैल में यदि जरूरत पडे़ तो 400 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़कें।
आरा मक्खी : इस कीडे़ की मक्खी का धड़ नारंगी, सिर व पैर काले तथा पंखों का रंग धुएं जैसा होता है । सुण्डियों का रंग गहरा हरा होता है जिनके ऊपरी भाग पर काले धब्बों की तीन कतारें होती है। पूर्ण विकसित सुण्डियों की लम्बाई 1.5 - 2.0 सैं.मी. तक होती है । इस कीड़े की सुण्डियां इन फसलों के उगते ही पत्तों को काट-काट कर खा जाती है। इस कीड़े का अधिक प्रकोप अक्तूबर-नवम्बर में होता है। अधिक आक्रमण के समय सुण्डियां तने की छाल तक भी खा जाती है।
नियन्त्रण : गर्मियों में खेत की गहरी जोताई करें ।
सुण्डियों को पकड़ कर नष्ट कर दें ।
फसल की सिंचाई करने से कीड़े की सुण्डियां डूब कर मर जाती है।
फसल में इस कीड़े का प्रकोप होने पर मैलाथियान 50 ई.सी. की 200 मि.ली. मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें ।
चेपा (माहू/अल) : यह कीड़ी हल्के हरे-पीले रंग का 1.0 से 1.5 मि.ली. लम्बा होता है। इसके प्रौढ़ एवं शिशु पत्तियों की निचली सतह और फूलों की टहनियों पर समूह में पाये जाते है। इसका प्रकोप दिसम्बर मास के अंतिम सप्ताह में (जब फसल पर फूल बनने शुरू होते हैं) होता है व मार्च तक बना रहता है। प्रौढ़ व शिशु पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसकर नुकसान पहँुचाते है। लगातार आक्रमण रहने पर पौधों के विभिन्न भाग चिपचिपे हो जाते हैं, जिन पर काला कवक लग जाता है। परिणामस्वरूप पौधों की भोजन बनाने की ताकत कम हो जाती है जिससे पैदावार में कमी हो जाती है। कीट ग्रस्त पौधे की वृðि रूक जाती है जिसके कारण कभी-कभी तो फलियां भी नहीं लगती और यदि लगती हैं तो उनमें दाने पिचके एवम् छोटे हो जाती हैं।
नियन्त्रण
समय पर बिजाई की गई फसल (10-25 अक्तूबर तक) पर इस कीट का प्रकोप कम होता है।
राया जाति की किस्मों पर चेपे का प्रकोप कम होता है।
दिसम्बर के अन्तिम या जनवरी के प्रथम सप्ताह में जहां इस कीट के समूह दिखाई दें उन टहनियों के प्रभावित हिस्सों को कीट सहित तोड़कर नष्ट कर दें।
जब खेत में कीटों का आक्रमण 20 प्रतिशत पौधों पर हो जाये या औसतन 13-14 कीट प्रति पौधा हो जाए तो निम्नलिखित कीटनाशियों में से किसी एक का प्रयोग करें।
आक्सीडिमेटान मिथाईल (मैटासिस्टाक्स) 25 ई.सी. या डाइमैथोएट (रोगोर) 30 ई.सी. की 250, 350 व 400 मि.ली. मात्रा को क्रमशः 250, 350 व 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ कीट ग्रस्त फसलों पर पहला, दूसरा तथा तीसरा छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करें। अगर कीड़ों का आक्रमण कम हो तो छिडकावों की संख्या कम की जा सकती है। छिड़काव साँय के समय करें, जब फसल पर मधुमक्खियां कम होती है। मोटर चालित पम्प में कीटनाशक दवाई की मात्रा ऊपरलिखित होगी लेकिन पानी की मात्रा 20 से 40 लीटर प्रति एकड़ हो जायेगी ।
साग के लिए ऊगाई गई फसल पर 250 से 500 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 250 से 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें । यदि आवष्यकता हो तो दूसरा छिड़काव 7 से 10 दिन के अन्तराल पर करें।
सुरंग बनाने वाला कीड़ा : इस कीडे़ की मक्खियां भूरे रंग तथा आकार में 1.5-2.0 मि.ली. होती है। सुण्डियों का रंग पीला व लम्बाई 1.0-1.5 मि.ली. होती है। जनवरी से मार्च के महीनों में सुण्डियां पत्तियों के अन्दर टेढ़ी-मेढ़ी सुरंगे बनाकर हरे पदार्थ को खा जाती है जिससे पत्तियों की भोजन बनाने की क्रिया कम हो जाती है व फसल की पैदावार पर बुरा असर पड़ता है।
नियन्त्रण
कीटग्रस्त पत्तिया को तोड़कर नष्ट करें या मिट्टी में दबा दे ताकि और मक्खियां न बन सकें ।
इस कीड़े का आक्रमण चेपा के साथ ही होता है इसलिए चेपे के नियन्त्रण के लिए अपनाए जाने वाले कीटनाशियों के प्रयोग से इस कीट का आक्रमण भी रूक जाता है।
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