MFOI 2024 Road Show
  1. Home
  2. बागवानी

Litchi Farming: लीची के फल को कीट और रोग से दूर रखेंगे ये उपाय, मिलेगी बेहतरीन पैदावार

Litchi Farming: लीची का फल अपने आकर्षक रंग, स्वाद और गुणवत्ता के लिए काफी पॉपुलर है. बता दें, लीची उत्पादन में भारत का विश्व में चीन, ताइवान के बाद तीसरा स्थान है. लीची के फल पोषक तत्वों से भरपूर एवं स्फूर्तिदायक होते हैं. इसके फल में शर्करा 11%, प्रोटीन 0.7%, वसा 0.3% और अनेक विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं.

डॉ एस के सिंह
डॉ एस के सिंह
measures litchi fruit away from pests and diseases get best yield of litchi farming
लीची के फल को कीट और रोग से दूर रखेंगे ये उपाय

Litchi Farming: विश्व में लीची का फल अपने आकर्षक रंग, स्वाद और गुणवत्ता के लिए काफी पॉपुलर है. बता दें, लीची उत्पादन में भारत का विश्व में चीन, ताइवान के बाद तीसरा स्थान है. वर्ष 2020-21 के आंकड़े के अनुसार, भारत में 98 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती की जा रही है, जिससे कुल 7206 हजार मैट्रिक टन उत्पादन प्राप्त हो रहा है. जबकि बिहार में लीची की खेती 32 हजार हेक्टेयर में होती है, जिससे 300 मैट्रिक टन लीची का फल प्राप्त किया जा रहा है. बिहार में लीची की उत्पादकता 8 टन/हेक्टेयर है, जबकि राष्ट्रीय उत्पादकता 7.4 टन /हेक्टेयर है. संभावित उत्पादकता 14-15 टन / हेक्टेयर के बीच व्यापक अंतर मौजूद है. भारत के उत्तरी बिहार, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड में देहरादून एवं पिथौरागढ़, असम और झारखंड में रांची एवं पूर्वी सिंहभूम में लीची की खेती होती है. बिहार कुल लीची का 40% उत्पादन करता है और भारत में लगभग 38% क्षेत्र पर कब्जा करता है.

देश में लीची के फल 10 मई से लेकर जुलाई के अंत तक उपलब्ध रहते है. सबसे पहले लीची के फल त्रिपुरा में पक कर तैयार होते है. इसके बाद क्रमश: रांची एवं पूर्वी सिंहभूम (झारखंड), मुर्शीदाबाद (पं. बंगाल), मुजफ्फरपुर एवं समस्तीपुर (बिहार), उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र, पंजाब, उत्तरांचल के देहरादून और पिथौरागढ़ की घाटी में फल पक कर तैयार होते है. बिहार की लीची अपनी गुणवत्ता के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रसिद्ध हैं. 

लीची के फल पोषक तत्वों से भरपूर एवं स्फूर्तिदायक होते हैं. इसके फल में शर्करा 11%, प्रोटीन 0.7%, वसा 0.3% और अनेक विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. लीची के फल मुख्यत: ताजे ही खाए जाते हैं. बिहार की प्रमुख लीची की प्रजाति शाही की तुड़ाई लगभग समाप्त हो चुकी है, चाइना प्रजाति के लीची की तुड़ाई चल रही है. इस समय आवश्यकता इस बात की है की लीची उत्पादक किसान इस समय क्या करें की उन्हें अगले साल भी अच्छी उपज प्राप्त हो? अगले साल अच्छी उपज प्राप्त हो इसके लिए जो दो प्रमुख कारक है वह है पेड़ की कटाई - छटाई एवं पेड़ की उम्र के अनुसार खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग.

1. फल देने वाले लीची के पेड़ की कटाई छटाई

जैसा कि हम सब जानते है की लीची में फल पेड़ के बाहरी हिस्सों में ही लगते, जिस पेड़ की आकृति छाते जैसी होती है उसमे अधिकतम फल लगते है. इसलिए कटाई छटाई करके पेड़ की आकृति छाते जैसा बनना चाहिए. लीची के फलों की तुड़ाई के बाद उसमें नये नए कल्ले निकलते हैं जिन पर फरवरी माह में फूल आते हैं. यदि फलों की तुड़ाई करते समय किसी तेज धारदार औजार से गुच्छे के साथ-साथ 15 -20 सें.मी. टहनियों को भी काट दिया जाय तो उन्ही डालियों से जुलाई-अगस्त  में औजपूर्ण एवं स्वस्थ कल्लों का विकास होता है, जिस पर फलन अच्छी होती है. इसके अतिरिक्त लीची के पौधों के अंदर की पतली, सूखी तथा न फल देने वाली शाखाओं को उनके निकलने के स्थान से काट देने से अन्य शाखाओं में कीड़ों एवं बीमारियों का प्रकोप कम हो जाता है. कटाई के बाद शाखाओं के कटे भाग पर कॉपर-ऑक्सीक्लोराइड लेप लगा देने से किसी भी प्रकार के संक्रमण की समस्या नहीं रहती है. काट-छांट के पश्चात पौधों की समुचित देखरेख, खाद एवं उर्वरक प्रयोग तथा पौधों के नीचे गुड़ाई करने से पौधों में अच्छे कल्लों का विकास होता है तथा उपज भी बढ़ती है.

ये भी पढ़ें: आम के फल का छोटा होना और उपज में कमी आना है इन बातों का संकेत, जानें प्रमुख कारण

2. छोटे पौधों में काट-छांट

लीची के नवजात पौधों में कांट-छांट का मुख्य उद्देश्य ढांचा निर्माण होता है. जिससे पौधे लम्बे समय तक सतत रूप से फल दे सकें. प्रारम्भ के 3-4 वर्षो तक पौधों के मुख्य तने की अवांछित शाखाओं को निकाल देने से मुख्य तनों का अच्छा विकास होता है और अंतरशस्यन में भी आसानी रहती है.जमीन से लगभग 1 मी. ऊंचाई पर चारों दिशाओं में 3-4 मुख्य शाखाएं रखने से पौधों का ढांचा मजबूत एवं फलन अच्छी होती है. समय-समय पर कैंची व सीधा ऊपर की ओर बढ़ने वाली शाखाओं को काटते रहना चाहिए.

तुड़ाई के बाद खाद और उर्वरक का प्रयोग

यदि आपका लीची का पेड़ 15 वर्ष या इससे भी ज्यादा पुराना है, तो उसमे 500-550 ग्राम डाइअमोनियम फॉस्फेट, 850 ग्राम यूरिया एवं 750 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश एवं 25 किग्रा खूब अच्छी तरह से सडी गोबर की खाद पौधे के चारों तरफ मुख्य तने से 2 मीटर दूर रिंग बना कर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.

वहीं, अगर आपका पेड़ 15 वर्ष से छोटा है, तो उपरोक्त खाद एवं उर्वरक के डोज में 15 से भाग दे दे, इसके बाद जो आएगा उसमे पेड़ की उम्र से गुणा कर दे यही उस पेड़ के लिए खाद एवं उर्वरकों का डोज होगा. जिन बगीचों में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई दे उनमें 150-200 ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति वृक्ष की दर से सितंबर माह में अन्य उर्वरकों के साथ देना लाभकारी पाया गया है.

बोर्डो पेस्ट से पेड़ों के आधार की पुताई

विभिन्न फफूंद जनित बीमारियों से लीची के पेड़ को बचाने के लिए आवश्यक है कि पेड़ के चारो तरफ, जमीन की सतह से 5 - 5.30 फीट की ऊंचाई तक बोर्डों पेस्ट से पुताई करें. बोर्डों पेस्ट से साल में दो बार प्रथम जुलाई- अगस्त एवम् दुबारा फरवरी- मार्च में पुताई कर दी जाय तो अधिकांश फफूंद जनित बीमारियों से बाग को बचा लेते है. इसका प्रयोग सभी फल के पेड़ो पर किया जाना चाहिए.

बोर्डों पेस्ट बनाने के लिए आवश्यक सामान

कॉपर सल्फेट, बिना बुझा चुना (कैल्शियम ऑक्साइड), जूट बैग, मलमल कपड़े की छलनी या बारीक छलनी, मिट्टी/प्लास्टिक/लकड़ी की टंकी और लकड़ी की छड़ी|

  1. कॉपर सल्फेट 1 किलो ग्राम
  2. बिना बुझा चूना -1 किलो
  3. पानी 10 लीटर

बनाने की विधि

पानी की आधी मात्रा यानी 5 लीटर पानी में 1 किलोग्राम कॉपर सल्फेट को मिलाए इसके बाद बचे 5 लीटर पानी से 1 किलोग्राम चूने को बूझाएं अब शेष पानी में इसे मिलाने के बाद इन दोनों का घोल बनाए.  इस दौरान लकड़ी की छड़ी से लगातार हिलाते रहेI इस प्रकार से 10 लीटर बोर्डो पेस्ट तैयार हो जाएगा. यदि 20 लीटर बोर्डो पेस्ट बनाना है तो सभी उपरोक्त चीजों की मात्रा को दुगुना कर दे, 30 लीटर बनाना है तीन गुना कर दे .इसी प्रकार आपको जितना बोर्डो पेस्ट बनाना है उपरोक्त मात्रा की गणना करके बनाए.

ध्यान रखने योग्य बातें

किसानो को बोर्डो पेस्ट का घोल तैयार करने के तुरंत बाद ही इसका उपयोग बगीचे में कर लेना चाहिए. बोर्डो पेस्ट का घोल तैयार करते समय किसानो लोहें या गैल्वेनाइज्ड बर्तन को काम में नहीं लेना चाहिए. यह ध्यान रखना हो की वे बोर्डो पेस्ट को किसी अन्य रसायन या पेस्टिसाइड के साथ में इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

लीची में लगनेवाले प्रमुख कीड़ों का प्रबंधन कैसे करें?

1.लीची की मकड़ी (लीची माइट)

जुलाई महीने में 15 दिनों के अंतराल पर क्लोरफेनपीर 10 ईसी @ 3 मिलीलीटर / लीटर) या प्रोपारगिट 57 ईसी @ 3 मिलीलीटर प्रति लीटर के दो छिड़काव करना चाहिए. अक्टूबर महीने में नए संक्रमित टहनियों की कटनी छंटनी करके क्लोरफेनपीर 10 ईसी (3 मिलीलीटर / लीटर) या प्रोपारगिट 57 ईसी (3 मिलीलीटर / लीटर) का छिड़काव करने से लीची माईट की उग्रता में भारी कमी आती है.

2.टहनी छेदक (शूट बोरर)

सायपरमेथ्रिन @1.0 मि.ली./ली. घोल का कोपलों के आने के समय 7 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव करना चाहिए.

3.छिलका खाने वाले पिल्लू (बार्क इटिंग कैटरपिलर)

तनों में छेदक अपने बचाव के लिए टहनियों के ऊपर अपनी विष्टा की सहायता से जाला बनाते हैं. इनके प्रकोप से टहनियां कमजोर हो जाती हैं और कभी भी टूटकर गिर सकती है. इसका रोकथाम भी जीवित छिद्रों में पेट्रोल या नुवान या फार्मलीन से भीगी रुई ठूंसकर चिकनी मिट्टी से बंद करके किया जा सकता है. इन कीड़ों से बचाव के लिए बगीचे को साफ़ रखना श्रेयस्कर पाया गया है.

English Summary: measures litchi fruit away from pests and diseases get best yield of litchi farming Published on: 27 June 2024, 12:54 IST

Like this article?

Hey! I am डॉ एस के सिंह. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News