ब्रोकोली की खेती ठीक फूलगोभी की तरह की जाती है. इसके बीज व पौधे देखने में लगभग फूल गोभी की तरह ही होते हैं. ब्रोकोली का खाने वाला भाग छोटी छोटी बहुत सारी हरे फूल कलिकाओं का गुच्छा होता है, जो फूल खिलने से पहले पौधों से काट लिया जाता है और यह खाने के काम आता है. फूल गोभी में जहां एक पौधे से एक फूल मिलता है वहां ब्रोकोली के पौधे से एक मुख्य गुच्छा काटने के बाद भी , पौधे से कुछ शाखायें निकलती हैं तथा इन शाखाओं से बाद में ब्रोकोली के छोटे गुच्छे बेचने अथवा खाने के लिये प्राप्त हो जाते है.
ब्रोकली फूल गोभी की तरह ही होती है लेकिन इसका रंग हरा होता है इसलिए इसे हरी गोभी भी कहते है उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में जाड़े के दिनों में इन सब्जियों की खेती बड़ी सुगमता पूर्वक की जा सकती है जबकि हिमाचल प्रदेश , उत्तरांचल और जम्मू कश्मीर में में इनके बीज भी बनाए जा सकते है.
आगे आने वाले समय में सब्जियों का उत्पादन तथा निर्यात दोनों ही बढ़ने की काफ़ी संभावनाएँ हैं. जहाँ हम जानी पहचानी काफ़ी तरह की सब्जियाँ अपने देश में उगा रहे हैं वहां अभी भी कुछ ऐसी सब्जियाँ हैं जो आर्थिक व पौष्टिकता की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं. इस तरह की सब्जियों में ब्रोकोली का नाम बहुत महत्वपूर्ण है.
इसकी खेती पिछले कई वर्षों में धीरे-धीरे बडे शहरों के आस-पास कुछ किसान करने लगे हैं. बडे महानगरों में इस सब्जी की मांग भी अब बढने लगी है. पाँच सितारा होटल तथा पर्यटक स्थानों पर इस सब्जी की मांग बहुत है तथा जो किसान इसकी खेती करके इसको सही बाजार में बेचते हैं उनको इसकी खेती से बहुत अधिक लाभ मिलता है क्योंकि इसके भाव कई बार 30 से 50 रूपये प्रति किग्रा तक मिल जाते हैं.
यहां ये बताना उचित रहेगा कि ब्रोकोली की खेती करने से पहले इसको बेचने का किसान जरूर प्रबंध कर लें क्योकि यह अभी महानगरों, बड़े होटल तथा पर्यटक स्थानों तक ही सीमित है. साधारण अथवा मध्यम या छोटे बाजारों में अभी तक ब्रोकोली की मांग नहीं है क्योंकि अभी तक लोग इसके बारे में कम या बिल्कुल नहीं जानते. ब्रोकोली की सफल खेती के लिये नीचे दी गई जानकारी लाभदायक होगी.
ब्रोकोली की बाज़ार मांग
पांच सितारा होटल तथा पर्यटक स्थानों पर इस सब्जी की मांग बहुत है तथाजो किसान इसकी खेती करके इसको सही बाजार में बेचते हैं उनको इसकी खेती से बहुत अधिक लाभ मिलता है क्योंकि इसके भाव कई बार 30 से 50 रुपये प्रति कि.ग्रा. तक या इससे भी उपर मिल जाते हैं. यहां ये बताना उचित रहेगा कि ब्रोकोली की खेती करने से पहले इसको बेचने का किसान जरूर प्रबंध कर लें क्योकि यह अभी महानगरों, बड़े होटल तथा पर्यटक स्थानों तक ही सीमित है. साधारण, मध्यम या छोटे बाजारों में अभी तक ब्रोकोली की मांग नहीं है.
खेत की तैयारी
ब्रोकोली को उत्तर भारत के मैदानी भागों में जाड़े के मौसम में अर्थात् सितम्बर मध्य के बाद से फरवरी तक उगाया जा सकता है. इस फसल की खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन सफल खेती के लिये बलुई दोमट मिट्टी बहुत उपयुक्त है. सितम्बर मध्य से नवम्बर के शुरू तक पौधा तैयार की जा सकती है बीज बोने के लगभग 4 से 5 सप्ताह में इसकी पौध खेत में रोपाई करने योग्य हो जाती हैं इसकी नर्सरी ठीक फूलगोभी की नर्सरी की तरह तैयार की जाती है. ब्रोकोली की लगभग सभी किस्में विदेशी हैं.
ब्रोकोली से स्वास्थ्य लाभ
यह कई पोषक तत्वों से भरपूर है. यह कई बीमारियों से बचाने के साथ ब्रेस्ट कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर के भी खतरे को कम करती है. अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत और वजन कम करने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए ब्रोकोली अच्छा विकल्प है. ऐसा माना जाता है कि ब्रोकोली भूमध्यसागरीय उपज है. ब्रोकोली लैटिन शब्द 'ब्रैक्यिम' से बना है जिसका मतलब है शाखा. इसमें शक्तिशाली फाइटोकेमिकल (प्लांट-केमिकल) पाए जाते हैं, जो कैंसर जैसी घातक बीमारी से लडऩे में मदद करते हैं.
ब्रोकोली खाने के कई न्यूट्रिशनल फायदे होते हैं. ब्रोकोली को पका कर या फिर कच्चा भी खाया जा सकता है, लेकिन अगर आप इसे उबाल कर खाएंगे तो आपको ज्यादा फायदा होगा. इस हरी सब्जी में लोहा, प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, क्रोमियम, विटामिन ए और सी पाया जाता है, जो सब्जी को पौष्टिक बनाता है. इसके अलावा इसमें फाइटोकेमिकल्स और एंटी-ऑक्सीडेंट भी होता है, जो बीमारी और बॉडी इंफेक्शन से लडऩे में सहायक होता है.
ब्रोकोली विटामिन सी से भरी हुई है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली के समुचित कार्य को बनाए रखने के लिए एक महान पोषक तत्व मानी जाती है. ब्रोकोली क्रोमियम का बहुत अच्छी स्रोत है, जो मधुमेह पर नियंत्रण और शरीर में इंसुलिन के उत्पादन को नियंत्रित करती है. ब्रोकोली में बीटा-कैरोटीन होता है जो आंखों में मोतियाबिंद और मस्कुलर डीजेनरेशन होने से रोकती है. यह माना जाता है कि ब्रोकोली में यौगिक सल्फोरापेन होता है जो यूवी रेडियेशन के कारण होने वाले प्रभाव से त्वचा को नुकसान पहुंचाने और सूजन को कम करने में सहायक होती है.
ब्रोकोली में कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम और जिंक होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है. यह बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिये बहुत अच्छी मानी जाती है क्योंकि इनमें ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है. ब्रोकोली शरीर को एनीमिया और एल्जाइमर से बचाती है क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा आइरन और फोलेट पाया जाता है. ब्रोकोली को नियमित खाने से गर्भवती महिलाओं को मदद मिलती है. इसमें फाइटोकेमिकल्स होने के कारण, यह एंटी कैंसर न्यूट्रिशनल वेजिटेबल है. ब्रोकोली में कैरोटीनॉयड ल्यूटिन होता है जो हृदय की धमनियों को मोटा होने से रोकता है, जिससे हार्ट अटैक और अन्य हार्ट सबंधी बीमारियों का रिस्क टलता है. ब्रोकली खाने से न केवल स्वास्थ्य और पोषण मिलता है, बल्कि इसमें लो कैलोरी होने की वजह से वजन भी कम होता है.
ब्रोकोली की खास जानकारी
ब्रोकोली हृदय के लिए फायदेमंद है, यह बात बहुत पहले से कही जाती रही है. लेकिन अब ब्रिटिश वैज्ञानिक यह भी बता रहे हैं कि ब्रोकोली किस तरह फायदेमंद है. शोधकर्ताओं को ब्रोकोली व अन्य हरी पत्तेदार सब्जियों में एक ऐसे रसायन के साक्ष्य मिले हैं जो धमनियों में रुकावट के खिलाफ शरीर के प्राकृतिक सुरक्षातंत्र को मजबूत बनाता है.
दरअसल माना जाता है कि हरे रंग व गोभी के आकार की ब्रोकोली देखने में जितनी सुंदर है, उतनी ही सेहत के लिए गुणकारी. कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि ब्रोकोली की खेती के लिए ठंडी और आद्र्र जलवायु की आवश्यकता होती है. यदि दिन अपेक्षाकृत छोटे हों, तो फूल की बढ़ोतरी अधिक होती है. फूल तैयार होने के समय तापमान अधिक होने से फूल छितरे, पत्तेदार और पीले रंग के हो जाते है. जाहिर है कि उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में जाड़े के दिनों में इस सब्जी की खेती सुगमतापूर्वक की जा सकती है.
जलवायु : ब्रोकली के लिए ठंडी और आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है यदि दिन अपेक्षाकृत छोटे हों तो फूल की बढ़ोत्तरी अधिक होती है फूल तैयार होने के समय तापमान अधिक होने से फूल छितरेदार, पत्तेदार और पीले हो जाते हैं .
मिट्टी : इस फ़सल की खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन सफ़ल खेती के लिये बलुई दोमट मिट्टी बहुत उपयुक्त है.जिसमे पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद हो इसकी खेती के लिए अच्छी होती है हल्की रचना वाली भूमि में पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद डालकर इसकी खेती की जा सकती है.
प्रजातियाँ : ब्रोकली की किस्मे मुख्यतया तीन प्रकार की होती है श्वेत , हरी व बैंगनी .
इनमे हरे रंग की गंठी हुई शीर्ष वाली किस्मे अधिक पसंद की जाती है इनमे नाइन स्टार , पेरिनियल, इटैलियन ग्रीन स्प्राउटिंग,या केलेब्रस,बाथम 29 और ग्रीन हेड प्रमुख किस्मे है .
संकर किस्मों में : पाईरेट पेक में,प्रिमिय क्राप,क्लीपर, क्रुसेर, स्टिक व ग्रीन सर्फ़ मुख्य है .
ब्रोकोली की लगभग सभी क़िस्में विदेशी हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-प्रीमियम क्रॉप, टोपर, ग्रीन कोमट, क्राईटेरीयन आदि. कई बीज कम्पनियाँ अब ब्रोकोली के संकर बीज भी बेच रहीं हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने हाल ही में पूसा ब्रोकोली 1 क़िस्म की खेती के लिये सिफ़ारिश की है तथा इसके बीज थोड़ी मात्रा में पूसा संस्थान क्षेत्रीय केन्द्र, कटराइन कुल्लू घाटी , हिमाचल प्रदेश से प्राप्त किये जा सकते हैं.
अभी हाल भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान क्षेत्रीय केंद्र कटराई द्वारा ब्रोकली की के.टी.एस.9 किस्म विकसित की गई है इसके पौधे मध्यम उचाई के ,पत्तियां गहरी हरी ,शीर्ष सख्त और छोटे तने वाला होता है . भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने हाल ही में पूसा ब्रोकोली 1 क़िस्म की खेती के लिये सिफ़ारिश की है तथा इसके बीज थोड़ी मात्रा में पूसा संस्थान क्षेत्रीय केन्द्र, कटराइन कुल्लू घाटी , हिमाचल प्रदेश से प्राप्त किये जा सकते हैं.
लगाने का समय : उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में ब्रोकोली उगाने का उपयुक्त समय ठण्ड का मौसम होता है इसके बीज के अंकुरण तथा पौधों को अच्छी वृद्धि के लिए तापमान 20 -25 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए इसकी नर्सरी तैयार करने का समय अक्टूम्बर का दूसरा पखवाडा होता है पर्वतीय क्षेत्रों में क़म उचाई वाले क्षेत्रों में सितम्बर- अक्टूम्बर , मध्यम उचाई वाले क्षेत्रों में अगस्त सितम्बर , और अधिक़ उचाई वाले क्षेत्रों में मार्च- अप्रैल में तैयार की जाती है .
बीज दर : गोभी की भांति ब्रोकली के बीज बहुत छोटे होते है. एक हेक्टेअर की पौध तैयार करने के लिये लगभग 375 से 400 ग्राम बीज पर्याप्त होता है .
नर्सरी तैयार करना : ब्रोकोली की पत्ता गोभी की तरह पहले नर्सरी तैयार करते है और बाद में रोपण किया जाता है कम संख्या में पौधे उगाने के लिए 3 फिट लम्बी और 1 फिट चौड़ी तथा जमीन की सतह से 1.5 से. मी. ऊँची क्यारी में बीज की बुवाई की जाती है क्यारी की अच्छी प्रकार से तैयारी करके एवं सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर बीज को पंक्तियों में 4-5 से.मी. की दूरी पर 2.5 से.मी. की गहराई पर बुवाई करते है बुवाई के बाद क्यारी को घास - फूस की महीन पर्त से ढक देते है तथा समय-समय पर सिचाई करते रहते है जैसे ही पौधा निकलना शुरू होता है ऊपर से घास - फूस को हटा दिया जाता है नर्सरी में पौधों को कीटों से बचाव के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र का प्रयोग करें .
रोपाई : नर्सरी में जब पौधे 8-10 या 4 सप्ताह के हो जायें तो उनको तैयार खेत में कतार से कतार , पक्ति से पंक्ति में 15 से 60 से. मी. का अन्तर रखकर तथा पौधे से पौधे के बीच 45 सें०मी० का फ़सला देकर रोपाई कर दें . रोपाई करते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए तथा रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें .
खाद और उर्वरक : रोपाई की अंतिम बार तैयारी करते समय प्रति 10 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में 50 किलो ग्राम गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद कम्पोस्ट खाद इसके अतिरिक्त 1 किलोग्राम नीम खली 1 किलोग्राम अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर क्यारी में रोपाई से पूर्व समान मात्रा में बिखेर लें इसके बाद क्यारी की जुताई करके बीज की रोपाई करें .
आर्गनिक खाद: पौधों की अच्छी बढ़वार और अच्छे शीर्ष प्राप्त करने के लिए क्यारी की अंतिम बार तैयारी करते समय प्रति 10 वाग मीटर क्षेत्रफल में 50 किलो ग्राम गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद , कम्पोस्ट खाद इसके अतिरिक्त आर्गनिक खाद 1 किलो ग्राम भू-पावर, 1 किलो ग्राम माइक्रो फर्टी सिटी कम्पोस्ट, 1 किलो ग्राम माइक्रोनीम, 1 किलो ग्राम सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट, और अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर क्यारी में बुवाई से पूर्व समान मात्रा में बिखेर लें इसके बाद क्यारी की जुताई करके बीज की बुवाई करें . और फसल जब 20-25 दिन की हो जाए तब सुपर गोल्ड मैग्नीशियम और माइक्रो झाइम का छिडकाव करें .
रासायनिक खाद की दशा में : खाद की मात्रा प्रति हेक्टेअर . खाद मिट्टी परीक्षण के आधार पर दे.
गोबर की सड़ी खाद : 50-60 टन
नाइट्रोजन : 100-120 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेअर
फॉसफोरस : 45-50 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेअर
गोबर तथा फ़ॉस्फ़रस खादों की मात्रा को खेत की तैयारी में रोपाई से पहले मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला दें. नाइट्रोजन की खाद को 2 या 3 भागों में बांटकर रोपाई के क्रमशः 25 ,45 तथा 60 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं. नाइट्रोजन की खाद दूसरी बार लगाने के बाद, पौधों पर परत की मिट्टी चढाना लाभदायक रहता है .
निराई-गुड़ाई व सिंचाई : मिट्टी मौसम तथा पौधों की बढ़वार को ध्यान में रखकर,इस फ़सल में लगभग 10-15 दिन के अन्तर पर हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है.
खरपतवार : ब्रोकोली की जड़ एवं पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए के लिए क्यारी में से खरपतवार को बराबर निकालते रहना चाहिए गुड़ाई करने से पौधों की बढ़वार तेज होती है गुड़ाई के उपरांत पौधे के पास मिटटी चढ़ा देने से पौधे पानी देने पर गिरते नहीं है .
कीड़े व बीमारियाँ : काला सडन, तेला, तना सडन, मृदु रोमिल रोग यह प्रमुख बीमारियाँ हैं.
रोकथाम : इसकी रोकथाम के लिए 5ली. देशी गाय के मठ्ठे में 2 किलो नीम की पट्टी 100 ग्राम तम्बाकू की पट्टी 1 किलो धतूरे की पट्टी को 2 ली. पानी के साथ उबालें जब पानी 1 ली . बचे तो ठंडा करके छान के मठ्ठे में मिला ले 140 ली पानी के साथ (यह पूरे घोल का अनुपात है आप लोग एकड़ में जितना पानी लगे उस अनुपात में मिलाएं) मिश्रण तैयार कर पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें .
कटाई व उपज: फ़सल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य गुच्छा बनकर तैयार हो जाये शीर्ष रोपण के 65-70 दिन बाद तैयार हो जाते हैतो इसको तेज़ चाकू या दरांती से कटाई कर लें. ध्यान रखें कि कटाई के साथ गुच्छा खूब गुंथा हुआ हो तथा उसमें कोई कली खिलने न पाएँ. ब्रोकोली को अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी वह ढीली होकर बिखर जायेगी तथा उसकी कली खिलकर पीला रंग दिखाने लगेगी ऐसी अवस्था में कटाई किये गये गुच्छे बाजार में बहुत कम दाम पर बिक सकेंगे. मुख्य गच्छा काटने के बाद, ब्रोकोली के छोटे गुच्छे ब्रिकी के लिये प्राप्त होगें. ब्रोकोली की अच्छी फ़सल से ल्रगभग 12 से 15 टन पैदावार प्रति हेक्टेअर मिल जाती है.