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Updated on: 23 November, 2020 12:00 AM IST

बटेर पालन करके किसान कम खर्च में अधिक लाभ पा सकते हैं. गौरतलब है कि बटेर की देश में लगातार घटती संख्या को देखते हुए इसके शिकार पर पाबंदी लगा दी गई थी. हालांकि बटेर की क्षमता को देखते हुए सरकार ने वन्यजीव के अधिनियम 1972 से इसे मुक्त कर दिया. यानी आप सरकार से लायसेंस लेकर बटेर का पालन कर सकते हैं. अगर आप मुनाफा कमाना चाहते हैं तो जापानी बटेर का पालन करें. तो आइए जानते हैं बटेर पालन की जानकारी:

जापानी बटेर की खासियत (Japanese quail's specialty)

वर्तमान में कम खर्च में अधिक आमदानी के लिए मुर्गी व्यवसाय की तरह ही बटेर पालन व्यवसाय बेहद लोकप्रिय हो रहा है. जो लोग अधिक मुनाफे के लिए बटेर पालन करना चाहते हैं तो उन्हें जापानी बटेर का पालन करना चाहिए. जापानी बटेर की प्रजाति साल में तीन से चार पीढ़ियों को जन्म दे सकती है. इस प्रजाति की मादा बटेर 45 दिनों की आयु से ही अंडे देना शुरू कर देती है. वहीं 60 वें दिन तक पूर्ण उत्पादन की स्थिति में आ जाती है. यदि मादा बटेर को अनुकूल वातावरण मिलता रहे तो यह लंबे समय तक अंडे देती रहती है. यह बटेर प्रतिवर्ष 300 अंडे दे सकती है. 

कैसे करें अंडा उत्पादन और चुजों की देखभाल? (How to take care of egg production and chickens)-

बटेर में अंडा उत्पादन क्षमता अधिक होती है. इनके चुजों की देखभाल मुर्गी के चुजों की तरह ही की जाती है. बटेर के पांच से 7 सप्ताह आयु वाले बटेर से अंडे मिलने लगते हैं. प्रजनन के लिए 3 मादा पर एक नर की व्यवस्था करना चाहिए. बटेर के अंडों का ऊष्मायन और प्रस्फुटन कृत्रिम तरीके से आसानी से किया जा सकता है. अंडों को सुरक्षित रूप से सेने के लिए तापमान और नमी का विशेष ध्यान रखा जाता है. अंडा सेने के लिए तापमान 0 से 14 दिनों के लिए 99.5 डिग्री फाॅरनहाइट और नमी 87 प्रतिशत होनी चाहिए. इसके बाद 15 से 17 दिनों तक तापमान 98.5 डिग्री फॉनहाइट और नमी 90 प्रतिशत होना चाहिए. ध्यान रहे कि 14 दिनों तक अंडे को एक निश्चित समय पर उलटना पलटना रहता है. फिर 14 दिनों के बाद अंडों को इनक्यूबेटर मशीन से हैचिंग मशीन में रखा जाता है. फिर 18 वें दिन से अंडे से चुजा निकलना शुरू हो जाता है.

चुजों का पालन पोषण कैसे करें (How to raise chickens)

बटेर के चुजों का वजन लगभग 7 ग्राम होता है. इसलिए उसकी देखभाल काफी सावधानीपूर्वक करना चाहिए. पहले सप्ताह में चुजों की मृत्युदर अधिक होती है. इसलिए शुरूआती दिनों में बटेर के चुजों पर विशेष ध्यान देना चाहिए. प्रारंभिक सप्ताह में मृत्युदर अधिक होती है. इसकी प्रमुख वजह है पानी के देने के तरीके पर हमें विशेष ध्यान देना होता है. चुजे को डायरेक्ट पानी नहीं देते हैं. एक पानी के बर्तन में कंकर पत्थर भर दें और उसके बीच में पानी भर दें. ताकि वो चोंच से पीए. इससे बच्चे भीगते नहीं है. अधिकतर मृत्यु बटेर के बच्चों के पानी में भीगने से होती है. क्योंकि भीगने से निमोनिया से ग्रस्त हो जाते हैं जिससे मृत्यु हो जाती है. बटेर के बच्चे का पांव बेहद नाजुक होता है. यदि उसका पांव फिसलने से टूट जाता है. ये दूसरी प्रमुख वजह है जिसके कारण बटेर के बच्चे मरते हैं. इससे बचाव के लिए कोरोगेटेड शीट का इस्तेमाल किया जाता है. 

बटेर की प्रमुख नस्लें (Major breeds of quail)

बटेर को उनके पंखों के रंगों के आधार पर विभिन्न किस्मों में बांटा जा सकता है. जैसे फराओ, टाक्सिडो, इंग्लिह सफेदे, ब्रिटिश रेंज और मांचुरियन गोल्ड, केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई कैरी उत्तम प्रजाति. जिसे ब्राॅयलर बटेर के नाम से जाना जाता है. कैरी उज्जवल जो सफेद छाती वाले बटेर होते हैं. इसके अलावा कैरी श्वेता यानि सफेद पंख वाले बटेर, कैरी पर्ल यानि सफेद अंडा देने वाली बटेर. 

बटेर पालन की पद्धति (Method of Quail farming)

जमीन पर चूजों का पालन डीप लिटर पद्धति या बैटरी ब्रूडर में किया जाता है. इसके लिए बैटरी ब्रूडर काफी उपयोगी होता है. पहले 35 से 37 डिग्री तापक्रम होना चाहिए. इसके धीरे-धीरे घटाके 20 से 21 सेंटीग्रेड तक लाया जा सकता है. लेकिन तब जब चुजे तीन से चार सप्ताह के हो जाए. बटेर पालन के लिए वैज्ञानिक तौर तरीकों को अपनाना चाहिए. इससे न तो अधिक लागत लगती है न ही व्यापार में घाटे की संभावना रहती है. बटेर के चुजों को तीन से चार सप्ताह बाद विशेष तापमान की आवश्यकता नहीं रहती है इसलिए इन्हें बैटरी ब्रूडर से निकालकर रखरखाव घर में रख देना चाहिए. बैटरी ब्रूडर में प्रति चुजा 150 से 180 वर्ग से.मी. एवं डीप लीटर विधि में 200 से 250 सें.मी. जगह होने के साथ ही 12 घंटे पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था भी होनी चाहिए. चार सप्ताह की उम्र के बाद चुजों की चोच को थोड़ा ऊपर से काट देना चाहिए. जिससे कैन बालिस्म रोग से चुजों को बचाया जा सकता है. वहीं वयस्क बटेरों यानि पांच सप्ताह की आयु के बाद बटेरों को पिंजरों या फर्श पर रखा जा सकता है. बटेर को भी मुर्गी घर जैसा बनाकर रखा जा सकता है. 2.5 से 3 वर्ग फीट स्थान में 8 से 12 बटेर रखे जा सकते हैं. लेकिन अंडा देने वाले बटेर को यदि बेटरी विधि से पालना है तो प्रत्येक पिंजरा इतना बड़ा होना चाहिए कि उसमें एक नर और एक मादा बटेर रखी जा सकें. इससे निषेचित अंडे प्राप्त होते है. देखा जाए तो बैटरी विधि बटेर पालन के लिए सबसे उपयुक्त है. आठ सप्ताह के बाद मादा बटेर 50 प्रतिशत अंडा उत्पादन देने लगती है. 10 सप्ताह बाद अंडा उत्पादन अधिकतम सीमा पर होता है तथा 26 सप्ताह बाद अंडा उत्पादन कम होने लगता है. एक तरफ जहां मुर्गिया 75 प्रतिशत अंडे सुबह के समय देती है वहीं बटेर 75 अंडे शाम 3 बजे से 6 बजे तक देती है.

बटेर का आहार (Quail diet)

बटेर के आहार के लिए कोई व्यवस्था नहीं करना पड़ती है. बटेरों के लिए आहार प्रबंधन करना बिल्कुल मुर्गियों की तरह ही है. 10 से 12 सप्ताह में बटेर की शारीरिक बढ़वार पूरी हो जाती है. शुरूआती तीन सप्ताह में बढ़वार अधिकतम होती है. इसलिए बटेरों के आहार में 27 प्रतिशत प्रोटीन और 28 किलो कैलोरी ऊर्जा प्रतिकिलो दाने में देना चाहिए. फिर से 3 से 6 सप्ताह के आहार में 24 प्रतिशत प्रोटीन 29 तीस किलो कैलोरी ऊर्जा प्रति किलो आहार में होनी चाहिए. एक वयस्क बटेर प्रतिदिन 14 से 20 ग्राम खाना खाता है. नए चुजों और अंडे देने वाली बटेर के लिए बाज़ार से अच्छी कंपनी का आहार खरीदना चाहिए.

English Summary: japanese quail farming in india
Published on: 23 November 2020, 06:44 IST

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