चाहे देश में हुए किसान आंदोलन की बात की जाए, मुंबई में अन्नदाताओं द्वारा किये गए मार्च की बात की जाए या फिर तमिलनाडु में हुए प्रदर्शन का उदाहरण लिया जाए, देश के हर एक कोने में रहने वाले अन्नदाता की एक ही समस्या है ‘नीति-निर्माताओं का उपेक्षित व्यवहार’. देश की आर्थिक संवृद्धि सुनिश्चित करने के लिये सबसे ज़्यादा ज़रुरी यह जानना है कि आखिर क्या कारण है कि समूचे देश का पेट भरने वाला अन्नदाता ही आज अपना पेट भरने के लिये सरकार से मदद की गुहार लगा रहा है.
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अन्नदाताओं के गौरव के संरक्षण हेतु सरकार द्वारा बहुत सी योजनाएं और कार्यक्रम भी संचालित किये जा रहे हैं, बावजूद इसके इनका कोई ज़मीनी प्रभाव नज़र नहीं आ रहा है और हमारे देश के किसान बार-बार गलत धारणाओं के बीच गुमराह किए जा रहे हैं और वर्तमान समय में तो सोशल मीडिया और न्यूज़ के माध्यमों में जानकारी की बढ़ती मात्रा के साथ-साथ भ्रामक और असत्य दावों की बहुत ज्यादा मौजूदगी हो गई है. जिसको लेकर फैक्ट चेकिंग एक महत्वपूर्ण तकनीक है जिससे हम सच्चाई और गलत जानकारियों के बीच के अंतर को पहचान सकते हैं. इसी संदर्भ में कृषि जागरण द्वारा Agriculture media literacy Program शुरु किया गया है. जिसके माध्यम से कृषि क्षेत्र में चल रही fake news और miss information पर फैक्ट चेक कर सही जानकारी आप सभी तक साझा की जाएगी.
तो वहीं Media literacy Program के इस एपिसोड का topic है ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ जिसे, किसानों की समस्याओं का संज्ञान लेते हुए भारत सरकार ने साल 2016 में शुरू किया था, जिसका उद्देश्य कम पैदावार या पैदावार के नष्ट हो जाने की स्थिति में किसानों को मदद मुहैया कराना है. इस योजना के तहत स्थानीय आपदाओं की क्षति का आकलन किया जाता है और संभावित दावों का 25 प्रतिशत भुगतान तत्काल ऑनलाइन ही कर दिया जाता है. भले ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को शुरु किए हुए 7 साल हो गए हों लेकिन आज भी किसानों को इस योजना के बारे में सही जानकारी नहीं पता होगी. आज भी कई किसान इस योजना को लेकर गुमराह हो रहे होंगे.... और सबसे बड़ी बात, किसानों के बीच प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर जागरूकता की काफी कमी है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, यहां तो कई किसानों को योजना के लाभ और दावा निपटान प्रक्रिया के बारे में अच्छी जानकारी ही नहीं है, जो इसके प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डालती है.
साथ ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए आवेदन प्रक्रिया बोझिल, जटिल और नौकरशाही भी मानी जाती है, जिससे किसानों को नामांकन करने और योजना की आवश्यकताओं को समझने में कुछ कठिनाई होने लगती है. इसीलिए आवेदन प्रक्रिया के सरलीकरण में सुधार किया जाना चाहिए और देखा जाए तो पिछले कुछ दिनों में ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं जहां किसानों ने योजना के तहत प्रदान किए मुआवजे पर असंतोष व्यक्त किया है. कुछ लोगों का तर्क है कि फसल के नुकसान का आकलन हमेशा वास्तविक नुकसान को प्रतिबिंबित नहीं करता है, जिससे उन्हें उम्मीद से कम भुगतान मिलता है या फिर कभी-कभी भुगतान मिलता ही नहीं है.
तो वहीं यह भी माना जाता है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना मुख्य रूप से ऋणी किसानों को लक्षित करती है जिनकी संस्थागत ऋण तक पहुंच है. हालांकि, कृषक समुदाय के एक महत्वपूर्ण हिस्से में गैर-कर्जदार किसान भी शामिल हैं जो इस योजना से लाभान्वित नहीं हो सकते हैं. इन किसानों को भी शामिल करने के लिए कवरेज का विस्तार करने के प्रयास किए जाने चाहिए. वहीं प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर किसानों में कई तरह की गलत जानकारियां या धारणाएं काफी प्रचलित हैं. ये गलत जानकारियां अक्सर गलतफहमी या गलत सूचनाओं से बनाई जाती हैं. जिसमें सबसे पहली गलत धारणा यह है कि आती है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों को पूर्ण प्रीमियम छूट या मुफ्त बीमा कवरेज प्रदान करती है. जिसे हम प्रीमियम छूट कहते हैं, जो कि बिल्कुल भी सत्य नहीं है. सरकार भले ही प्रीमियम के बोझ को कम करने के लिए सब्सिडी प्रदान करती हो, फिर भी किसानों को प्रीमियम राशि का एक निश्चित प्रतिशत भुगतान जो है करना ही पड़ता है.
आसानी से क्लेम का सेटलमेंट करना
कुछ किसानों का मानना है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत क्लेम सेटलमेंट प्रोसेस जल्दी हो जाता है और ये पूरी तरह झंझट मुक्त है. लेकिन ऐसा नहीं क्योंकि ये दावा किया गया है कि निपटान प्रक्रिया में उचित मूल्यांकन, सत्यापन स्त्रोत और दस्तावेज़ीकरण करवाना ही पड़ता है, जिसमें काफी समय लग सकता है और दावों का समय पर निपटान, योजना का एक लक्ष्य भी है, लेकिन यह तत्काल या प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं के बिना होने की गारंटी नहीं देता.
यूनिवर्सल कवरेज
ये भी एक गलत धारणा के अंतर्गत आता है कि सभी किसानों को स्वचालित रूप से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत कवरेज प्राप्त होता है. वास्तव में, किसानों को लाभ लेने के लिए सक्रिय रूप से नामांकन करना होता है और आवश्यक प्रीमियम का भुगतान भी करना होता है. क्युंकि यह योजना स्वैच्छिक है, ये सभी किसानों के लिए compulsory नहीं है, किसान अपनी मर्जी से इस योजना का लाभ उठा सकते हैं बस किसानों को कवरेज के पात्र होने के लिए सक्रिय रूप से भाग लेने की आवश्यकता होती है. तो वहीं इसमें एक और मिथक है.
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सभी नुकसानों के लिए मुआवजा
इसमें कहा जाता है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसानों के सभी प्रकार के नुकसानों की भरपाई करता है, जिसमें बाजार में उतार-चढ़ाव या फसल की कम कीमतों के कारण होने वाले नुकसान या फिर आग लगने से अगर फसल खराब हो जाए या फिर किसी जानवर के फसल खा जाने से भी नुकसान होता है तो भी मुआवजा दिया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं होता है, यह योजना विशेष रूप से प्राकृतिक आपदाओं और विशिष्ट जोखिमों के कारण फसल के नुकसान के लिए कवरेज प्रदान करने पर केंद्रित है. यह बाजार की कीमतों या अन्य आर्थिक कारणों से संबंधित नुकसान को कवर नहीं करता है. हां अगर आपकी फसल natural तरीके से खराब हुई है जैसे बारिश या आंधी तुफान तो आप इस योजना का लाभ उठा सकते हैं.
सभी फसलों के लिए कवरेज
जितना हमने Analysis किया उसमें ये सामने आया कि कुछ किसान ये मानते हैं कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना सभी प्रकार की फसलों के लिए कवरेज प्रदान करती है. जबकि ऐसा नहीं होता, इस योजना में फसलों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है, जिसमें खाद्य फसलें अनाज, बाजरा, दालें, तिलहन, बागवानी फसलें और वाणिज्यिक फसलें ही शामिल हैं. ये योजना सभी फसलों पर मुआवजा प्रदान नहीं करती है. क्योंकि कुछ सीमाएँ और बहिष्करण हैं. ऐसे में किसानों को योजना के तहत कवरेज के लिए पात्र विशिष्ट फसल प्रकारों और किस्मों की जांच करने की आवश्यकता है.
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स्वचालित नामांकन
एक गलत धारणा है कि सभी किसान बिना किसी कार्रवाई के स्वचालित रूप से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में नामांकित हो जाते हैं. मतलब अगर कोई राज्य प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के under में आता है तो उस राज्य के किसान खुद को अपने आप ही इस योजना के लाभांवित पात्र मान लेते हैं वास्तव में, ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता है. किसानों को योजना का लाभ लेने के लिए खुद को सक्रिय रूप से पहले नामांकित करना होता है और प्रीमियम का भुगतान भी करना होता है और अक्सर नामांकन प्रक्रिया एक राज्य से दूसरे राज्य में अलग-अलग भी हो सकती है, इसीलिए किसानों को खुद योजना के लिए पंजीकरण करने में सक्रिय होने की आवश्यकता है.
सभी दावों के लिए Guaranteed मुआवज़ा मिलना
ये भी एक गलत धारणा है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किए गए सभी दावों के परिणामस्वरूप Guaranteed मुआवज़ा मिलेगा ही मिलेगा. ऐसा बिल्कुल नहीं होता है, बल्कि दावा तो यह किया गया है कि निपटान प्रक्रिया में योजना के दिशानिर्देशों का उचित मूल्यांकन किया जाता है, सत्यापन किया जाता है और पालन किया जाता है. यदि दावा किसी मानदंडों को पूरा नहीं करता है या दस्तावेज़ीकरण में विसंगतियां हैं कुछ गलतीयां हैं, तो दावे की अस्वीकृति हो सकती है या आपका क्लेम reject हो सकता है या फिर आप कम मुआवजे की राशि के पात्र भी हो सकते हैं.
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फसल खराब होने के बाद तत्काल नामांकन
कुछ किसानों का मानना है कि उनकी फसल खराब होने या नष्ट हो जाने के बाद वे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में नामांकन करा सकते हैं. जबकि ऐसा नहीं होता है इस योजना के लिए किसानों को बीमित फसल के मौसम की शुरुआत से पहले ही नामांकन और प्रीमियम का भुगतान करना होता है. क्योंकि आम तौर पर फसल क्षति के बाद नामांकन की अनुमति नहीं है, और ऐसे मामलों में किसान कवरेज के लिए पात्र भी नहीं माने जाते हैं.
सभी किसानों के लिए कवरेज
कुछ किसानों को यह भ्रम होता है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना सभी किसानों को कवरेज प्रदान करती है, भले ही उनकी भूमि का आकार या आय स्तर कुछ भी हो. जबकि ऐसा नहीं होता प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का उद्देश्य बड़ी संख्या में किसानों को कवरेज प्रदान करना भले ही है, लेकिन भूमि के आकार और अन्य कारकों के आधार पर कुछ पात्रता और मानदंड हैं और विशिष्ट मानदंड एक राज्य से दूसरे राज्य में अलग-अलग हो सकते हैं. इसीलिए आपको यह जानना बेहद जरुरी है कि आपके राज्य में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत भुगतान लेने का आय स्तर कितना है.
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तो ये थी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से जुड़ी कुछ गलत धारणांए या कुछ misinformation जो किसानों के बीच बेहद प्रचलित हैं जिसे दूर करना बेहद जरुरी है और ऐसे में किसानों को इस योजना की कवरेज, पात्रता मानदंड, दावा निपटान प्रक्रिया और सीमाओं के बारे में सटीक जानकारी होना बहुत जरुरी हो गया है, क्योंकि बेहतर जागरूकता, शिक्षा, किसानों को सटीक निर्णय लेने और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लाभों को अधिकतम करने में मदद करती है.
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किसानों के बीच कृषि क्षेत्र विषय से संबिंधित भ्रांतियां और गलत व्याख्याएं प्रचलित होना काफी सामान्य है. इन भ्रांतियों को दूर करने की आवश्यकता है ताकि किसानों को इस सरकारी योजना के लाभ का सही रूप से उपयोग करने का अवसर प्राप्त हो सके.
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