धरती पर मौजूद कुल पानी में कितने प्रतिशत हिस्सा फ्रेशवाटर यानी मीठे जल का है, यह जानने के लिए हमें दुनिया का चक्कर लगाने की कोई जरूरत नहीं है. एक गूगल सर्च हमें तुरंत एक अंक वाला प्रतिशत बता देगा. यह आंकड़ा इतना छोटा है कि मीठे पानी की कमी खतरे की घंटी बजा रही है. इससे भी ज्यादा रोंगटे खड़े कर देने वाला तथ्य यह है कि मीठे जल की इस मामूली-सी मात्रा का भी अधिकांश हिस्सा ग्लेशियर और ध्रुवीय आइस कैप्स के रूप में है, और एक बड़ा हिस्सा जमीन के नीचे है - हमारी आंखों से दूर, और शेष जो कुछ भी है, उसे ही हम नदियों और झीलों के रूप में देखते हैं.
हालांकि प्रकृति तो विभिन्न उद्देश्यों से भूजल को हमसे छिपाए रखने का इरादा रखती है, लेकिन हमने कुछ ज्यादा ही अक्लमंदी दिखाते हुए इसे खींच निकालने के तरीके ढूंढ लिए और अंततः सतह के नीचे के पानी को खत्म कर डाला. अब हम उस समस्या से लड़ रहे हैं जो हमने खुद ही खड़ी की है.
प्रदूषण से लड़ाई
अपशिष्ट पदार्थों का समुचित ढंग से पृथक्करण (सेग्रगेशन) और प्रबंधन न होने के चलते अथाह कचरा पैदा हो रहा है. यह अंतत: जल संसाधनों में जाकर मिलता है और उन्हें इस्तेमाल के लायक नहीं छोड़ता. ये जहरीले तत्व पानी में रहते हैं या जल स्रोत की तलहटी में जमा हो जाते हैं. नतीजतन जल प्रदूषण पानी की गुणवत्ता में गिरावट का कारण बनता है, जिससे जलीय पारिस्थितिक तंत्र पर प्रतिकूल असर पड़ता है. जहरीले प्रदूषक रिसकर जमीन के नीचे जमा भूजल में भी मिलते जाते हैं. हममें से बहुत से लोगों को कभी भी पेयजल की कमी नहीं झेलनी पड़ती है, ऐसे में यह जानकर आश्चर्य होगा कि पानी की मारामारी वाले क्षेत्रों में अरबों लोग हैं जो गरीबी और भुखमरी के दुष्चक्र फंसे रहते हैं. चूंकि खाद्य सुरक्षा और गरीबी में कमी के लिए पानी एक बुनियादी जरूरत है, इसलिए समझदारी भरे ढंग से जल प्रबंधन किसी समाज के सामाजिक-आर्थिक विकास पर सकारात्मक असर डाल सकता है.
आइए, संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा उपलब्ध कराए गए कुछ आंकड़ों पर नजर डालें.
हर 10 लोगों में से चार लोग पानी की कमी से प्रभावित हैं. (डब्ल्यूएचओ)
1 अरब लोगों को सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल सेवाएं सुलभ नहीं हैं . (डब्ल्यूएचओ/यूनिसेफ 2017)
अगर कदम नहीं उठाए जाएंगे, तो दुनिया की आबादी बढ़ने के साथ-साथ ये संख्याएं भी बढ़ती जाएंगी. संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, 2030 तक अन्य 1.5 अरब लोग इस ग्रह पर रह रहे होंगे. इसलिए, सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक बदलाव के लिए एक महत्वाकांक्षी एजेंडे के तौर पर यूएन ने संवहनीय विकास लक्ष्य (एसडीजी) निर्धारित किए, जिन्हें वैश्विक लक्ष्य के रूप में भी जाना जाता है. विश्व लीडर्स ने उन्हें सितंबर 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंगीकार किया था. यह एजेंडा 2030 तक "सभी के लिए पानी और स्वच्छता की उपलब्धता और संवहनीय प्रबंधन सुनिश्चित करने" का लक्ष्य निर्धारित करता है.
तो जल संसाधनों का कुशल प्रबंधन कैसे होता है?
मैं आनंदना, कोका-कोला इंडिया फाउंडेशन द्वारा किए गए कार्यों से मिले सबक साझा करना चाहता हूं. मैं कुछ अरसे से इन कामों में जुड़ा रहा हूं और मेरे पास उन विभिन्न समुदायों के लिए जल सुरक्षा निर्मित में मदद करने का सीधा अनुभव है जिनके साथ हमने काम किया.
सहयोग की शक्ति
हमारे पास अब तक का सबसे महत्वपूर्ण सबक है- सहयोग की शक्ति का असरदार तरीके से इस्तेमाल करना. अकेली संस्था या संगठन में समाज के लिए कुछ सकारात्मक करने का सही इरादा तो हो सकता है, लेकिन अपने मिशन को पूरा करने में मदद के लिए उन्हें विशेषज्ञों, जमीनी संगठनों और नागरिक समुदाय के सहयोग और सहारे की जरूरत होती है. बाय-इन और समर्थन अलग-अलग हितधारकों से आने चाहिए और सामूहिक रूप से उनका भरोसा उन जल समाधानों पर होना चाहिए, जिन्हें वे अमल में लाने की कोशिश कर रहे होते हैं. उदाहरण के लिए, आनंदना पूरे भारत में जल संकट से ग्रस्त क्षेत्रों में पानी की दिक्कत कम करने में मदद के लिए गैर सरकारी संगठनों, शासकीय निकायों और अन्य संस्थानों के साथ मिलकर काम करता है. करीब एक दशक में इसने 13+ अरब लीटर पानी फिर से भरने की क्षमता वाले ऐसी 200+ से ज्यादा जल पुनःपूर्ति संरचनाएं सफलतापूर्वक स्थापित की हैं. इनका 600 + गांवों में 8,00,000 से ज्यादा ग्रामीणों को लाभ मिल रहा है.
अन्य सबक
सूखे के दौर के लिए बारिश के दिनों में पानी जमा करना हमारा दूसरा सबक है. आखिर क्यों मानसून के दौरान इतने शहरों और कस्बों में सड़कों पर पानी भर जाता है और फिर हम ही सूखे मौसम में पानी के टैंकर खरीदते हैं? क्योंकि हम मानसून के दौरान मिले अतिरिक्त पानी के जरिए अपनी जमीन को प्रभावी ढंग से रिचार्ज नहीं कर रहे हैं. यही पानी तो सूखे के समय काम आता है. हमने वर्षा जल संचयन की इस बुनियादी समझ को अपनी जल परियोजनाओं में अपनाया और बारिश के पानी को यूं ही बहकर बर्बाद हो जाने से रोकने के लिए चेक डैम, बांध, तालाब आदि बनाए. इससे मिट्टी का कटाव कम होता है और भूमि में नमी संरक्षित होती है.
तीसरी सीख यह जानना और समझना है कि हमारी पानी संबंधी चिंताओं का कोई स्थायी हल नहीं है. यहां याद रखने लायक बात संवहनीयता यानी सस्टेनबिलिटी है. क्या एक दशक तक जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण करना आनंदना के लिए पर्याप्त रहा है? क्या हम पानी की समस्या का स्थायी समाधान कर पाए हैं? मैं कहता हूं कि अभी भी कार्य प्रगति पर है. पानी बचाना एक बार का काम नहीं है, यह तो रोज की बात है.
निर्माण के बाद भी जल संरचनाओं को निरंतर देखरेख और रखरखाव की दरकार होगी. उन्हें लापरवाही भरी इंसानी गतिविधियों से बचाया जाना चाहिए जिनके चलते पानी में रासायनिक प्रदूषकों और कचरे के मिलने का खतरा पैदा हो सकता है. इससे पानी उपयोग के लायक नहीं रह जाता.
पानी की उपलब्धता का हमारे अस्तित्व और समग्र कल्याण पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. इसमें संवहनीय सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ ऊर्जा और खाद्य उत्पादन भी शामिल है. आइए उस वक्त के बारे में सोचें जब हम बहुत लंबे समय तक पानी के बिना रहने के कारण गर्मी, प्यास और बेचैनी महसूस कर रहे थे. अब कल्पना कीजिए कि यह चरम स्थिति स्थायी वास्तविकता बन रही है. अब आगे बढ़कर इस दिशा में काम करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.
लेखक : इश्तियाक अमजद
( कोका-कोला भारत और दक्षिण पश्चिम एशिया में पब्लिक अफेयर्स, कम्युनिकेशंस और सस्टेनबिलिटी विभाग के वाइस प्रेसिडेंट )
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