एक मशीन है जो फसलों की कटाई करती है। यह धरती, हवा, खेतिहर मजदूरों सभी को बर्बाद कर रही है। पशुओं के मुंह से निवाला छीन रही है। खेतों की उर्वरा शक्ति नाश कर रही है। गांव वाले इसे कम्बाइन कहते हैं। धान की फसल तैयार हो चुकी है और मशीन भी एक बार फिर बर्बादी के लिए। लगता है कि सरकारों को उल्टी दिशा में चलने की आदत सी हो गई है। राज्य सरकार ने आदेश दिया है कि बालू व मौरंग का खनन मशीनों से नहीं मजदूरों से होगा। शायद सरकार ने आकलन करने में चूक कर दी है कि कौन काम मजदूरों से करवाया जाए और कौन सा मशीनों से। पूरा उत्तर भारत इस समय प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है। कोई पटाखे को दोष दे रहा है कोई वाहनों को, लेकिन सभी यह भी मान रहे हैं कि पराली यानी गेहूं, धान व अन्य फसलों के डंठल जलाने से सर्वाधिक प्रदूषण फैलता है। सर्वोच्च न्यायालय पराली जलाने पर रोक लगा चुका है।
यह समस्या कुछ सालों से ज्यादा ही बढ़ गई है। पहले यह इतनी गंभीर नहीं थी, लेकिन क्या पराली जलाने की ही समस्या है। मशीन के प्रयोग से जो दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं वे बहुत ही गंभीर है। दुर्भाग्य है कि सरकारों के पास इस तरफ देखने की फुर्सत तक नहीं है। दरअसल मशीनों के इस्तेमाल से केवल बाली ही कटती है और तना खेत में ही खड़ा रह जाता है। ऐसे में किसानों को पराली जलाने से रोका ही नहीं जा सकता। इसका एक मात्र समाधान है कि मशीनों से फसलें काटने पर रोक लगा दी जाए। मशीनों के इस्तेमाल से करोड़ों मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। धान व गेहूं की फसल कटाई के समय मजदूर मिलने मुश्किल हो जाते थे, अब मजदूरों के हाथ में काम नहीं है। मशीन बेरोजगारी की समस्या को और भी विकराल कर रही है। धान की कटाई शुरू हो चुकी है। मशीन से बाली-बाली काटने के बाद किसान पराली में आग लगा देंगे। ऐसे में गांव, जो साफ हवा के लिए जाने जाते हैं, सांस लेना तक दुश्वार हो जाएगा।
इटौंजा की बाजार में चिंतित बैठे किसान दीनानाथ कहते हैं कि मशीनै गांवन का बर्बाद किए डाल रही हैं। ऐसी मशीनै काउनी काम की जो आदमिन आउर जानवरन दोनों का बर्बाद कर रही हैं। मशीनों से फसल कटाई से पशुओं के लिए चारे की समस्या भी पैदा हो गई है। जिस पौधे से चारा बनता था वह अब जलाया जा रहा है। चारे की कमी के कारण पशुओं को छुट्टा छोड़ दिया जाता है। वहीं, पराली जलाने से खेतों की उर्वरा शक्ति भी नष्ट हो रही है। कानपुर के घाटमपुर निवासी किसान रामेश्वर सिंह बताते हैं कि मशीन का प्रयोग धरती, अम्बर, हवा, पशु व मनुष्यों सबके लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। आश्चर्य है कि सरकारों ने अब तक इस पर ध्यान देने की जहमत नहीं उठाई है।
(ये लेखक के अपने विचार है..)
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