मेरे गांव जितना सुंदर कोई गांव न होगा
कोई नहीं है इसका मोल कोई भाव न होगा
सुघर सलोने बच्चे सारे करते हैं अटखेलियां
जहां सुनाते अक्सर बूढ़े, कहानी और पहेलियां
ताल तलैया बाग बगीचे, पोखर खेत खलिहान हैं
कहीं सुनाता मंत्र और घंटी, और कहीं अजान है
शहद से मीठी बोली सबकी, कहीं ऐसा स्वभाव न होगा
मेरे गांव जितना सुंदर कोई गांव न होगा
मिलना जुलना प्यार से रहना, ही इसकी पहचान है
दूर्गापूजा, दंगल, मेला, रामलीला ही शान है
कालेज बैंक बाजार है सब कुछ, विकसित गांव है मेरा
सभी जातियां रहती हिलमिल, ना तेरा ना मेरा
देश की आबादी का बड़ा हिस्सा गावों में रहता है, लेकिन आज के दौर में लोग बेतहासा गांव से शहरों की तरफ भागे चले आ रहे हैं. रोज़मर्रा की ज़रूरतों ने लोगों को इस कदर मजबूर किया है कि शहरों की तरफ आती रेलगाड़ियां ठसाठस भरी दिखाई देती हैं. लेकिन जब भी बात जीवन और खुशहाली की होती है, तो लोग गांवों को ही याद करते हैं. आइए पढ़ते हैं गावों पर कुछ बेहतरीन शेर-
नैनों में था रास्ता, हृदय में था गांव
हुई न पूरी यात्रा, छलनी हो गए पांव-निदा फ़ाज़ली
मां ने अपने दर्द भरे खत में लिखा
सड़कें पक्की हैं अब तो गांव आया कर
- अज्ञात
ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते
ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते हमको
गांव के लोग हैं हम शहर में कम आते हैं
-बेदिल हैदरी
जो मेरे गांव के खेतों में भूख उगने लगी
मेरे किसानों ने शहरों में नौकरी कर ली
-आरिफ़ शफ़ीक़
....उसने खरीद लिया है करोड़ों का घर
सुना है उसने खरीद लिया है करोड़ों का घर शहर में
मगर आंगन दिखाने आज भी वो बच्चों को गांव लाता है
-अज्ञात
शहर की इस भीड़ में चल तो रहा हूं
ज़ेहन में पर गांव का नक़्शा रखा है
- ताहिर अज़ीम
खींच लाता है गांव...
खींच लाता है गांव में बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद,
लस्सी, गुड़ के साथ बाजरे की रोटी का स्वाद
- डॉ सुलक्षणा अहलावत
शहरों में कहां मिलता है वो सुकून जो गांव में था,
जो मां की गोदी और नीम पीपल की छांव में था
-डॉ सुलक्षणा अहलावत
ऐ शहर के वाशिंदों !
आप आएं तो कभी गांव की चौपालों में
मैं रहूं या न रहूं, भूख मेजबां होगी
-अदम गोंडवी
यूं खुद की लाश अपने कांधे पर उठाये हैं
ऐ शहर के वाशिंदों ! हम गाँव से आये हैं
-अदम गोंडवी