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Updated on: 5 February, 2024 12:00 AM IST
कृषि विज्ञान केंद्र

महान विचारक, मोहन सिंह मेहता, की सोच का विशेष अंकुरण
मैं, कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि शोध व कृषि के मध्य  खड़ा  हूँ
मैं, अनुसंधान संस्थान भी हूँ, मैं, खेत-खलिहान ,सलाहकार  भी  हूँ
खेती संबंधी हर  समस्या को सूंघ, उसका  हल सार्वजनिक  करता हूँ

मैं, चलता-फिरता-बतियाता-बुलाता, किसानों का बंधा  विश्वास  हूँ
ज्ञान का लबा-लब कुआ  हूँ, ज्ञान  के  प्यासों  को  खोजता  फिरता  हूँ
खोजने,मिलने की आवश्यकता नहीं, मैं नारद मुनि स्वयं पहुंच जाता हूँ
 कठिन, कठोर, कलिस्ठ, अव्यवहारिक अनुसंधानों  को तरसा करता हूँ
आंकलन कर, आर्थिक बना, इन्हें स्थानीय हालात के अनुरूप, डालता  हूँ
भूमी-पौध विकास, पौध  व्याधि बचाव, डेयरी, वानकी, मूल्य- संवर्धन
सम्बन्धी  हल देना व  कृषकों  के  दिल  जीतना  ही, मेरा  ध्येय  है
संस्थानों– प्रयोगशालाओं  व खेत- खलिहानों के बीच  खाई नापता हूँ
भर  इन गहराईयों  को, घटा  दूरी,  बिन पानी, नाव चलता हूँ

मैं, कृषि के उचित आदानों को, उचित  स्थानों तक ले जाता  हूँ
हर  आवश्यक  आदान  को उचित  समय  व  कृषक तक पहुँचता हूँ
हर हाल में, लाध कमर पर, तकनीकियों को बीहड़ तक ले जाता हूँ
अनवरत होती वर्षा, दलदल, सूखा, हर चुनौती बीच पहुंच जाता हूँ
बैठ किसानों बीच, मन की रूडीवादी, हठ्धर्मिता की जड़ हिलाता हूँ  
द्रुत गति से नवचार पहुंचा,समस्याओं का हल वरीयता से निकलता हूँ                                         
खाद्यानों की उपलब्धता से, मिले अमन-चेन सहनशीलता को परखें
कृषि उत्पाद की निर्भरता से,  प्रजातंत्र की गहराई  को भी परखें
मेरा समर्पण देखो, गाँव देखो, किसान  कामदार की  मुस्कान  देखो
मेरा  परिवार फैला इतना, अनुसन्धान  शिक्षा केंद्र कोई फैला नहीं

मैं भारत के हर जनपद, उप- जनपद में  सेवा करने  पहुँच  चुका हूँ
बड़ता परिवार पारितोष है, किसानो का आशीर्वाद है, सही आकलन है
कृषि ओस्धाल्य हूँ, संकट मोचन हूँ, उन्नती की राह हूँ, मैं के वी के हूँ
भूमंडलीय ऊष्मा, बिगड़ते वातावरण का रक्क्षा कव्च हूँ,मैं के  वी  के हूँ
मेरे कार्य छेत्र में हरियाली का राज है, दोपहर नहीं संध्या का शासन है

डी कुमारकाजरी

English Summary: Krishi Vigyan Kendra farmers trust soil-plant development KVK poem in hindi Farming poem
Published on: 05 February 2024, 02:50 IST

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