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Updated on: 5 February, 2024 12:00 AM IST
लेखक पूनम बागड़िया "पुनीत"

किस कवि की कल्पना का तुम श्रृंगार हो
बसे कण-कण में, फिर भी निराकार हो।

धरा पर फूटती धारा निश्छल,
नभ के बादलों का तुम आकार हो।

गिरती उठती जो पत्थरों से
उस धारा का सागर प्रसार हो।

छूती भूमि को दूर क्षितिज पर
उस सूर्य की लालिमा अपार हो।

बिखर गये जो रंग सतरंगी
तुम इंद्रधनुष का चमत्कार हो।

रंग डाली है तुमने दुनियां
तुम प्रकृति के चित्रकार हो।

हरित धरती के हर पत्ते पर
फैलें ओस कण का भंडार हो।

नभ में चमकते तारों का,
एकमात्र तुम ही तो सूत्रधार हो।

तुम से ही जिंदा साँसे हमारी,
तुम्ही तो जीवन आधार हो।

पूनम बागड़िया "पुनीत"

English Summary: Prakriti ka Chitrakar poem in hindi lekhak green earth harit dharti land rainbow
Published on: 05 February 2024, 06:48 IST

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