जब लिखता हूँ वंदे मातरम् शब्द सबल बन जाते हैं
भव्य भवानी भारत भू के भाव प्रबल बन जाते हैं
शौणित रक्त शिराओं में ये खून खोलने लगता है
राष्ट्र भक्ति में रोम रोम हर अंग डालने लगता है
शब्द-शब्द के उच्चारण का स्वर सौरभ महकाता है
जब सैनानी सरहद चढ़ कर राष्ट्र गीत ये गाता है
गाता है जब सत्यमेव जयते की जय-जय गाता है
लाल किले का स्वाभिमान से सर ऊंचा उठ जाता है
शष्य श्यामला सोम्य धरा पर तीन रंग लहराते हैं
अमर शहीदों की यादों के दीपक खुद जल जाते है
लिखता हूँ मैं वीर शिवाजी झांसी वाली रानी को
नरमुन्डो का ढेर लगाती रणचंडी महारानी को
सावरकर सरदार भगत सिंह बिस्मिल की कुर्बानी को
जिसने डायर को मारा वो उधम सिंह बलिदानी को
गांधी सुभाष टैगोर तिलक शेखर की अमर कहानी को
नत मस्तक हो लिखता हूँ मै करगिल के सैनानी को।।
आज हुई खतरे में एकता है इससे कोई अंजान नहीं
धर्म जैहादी बन कर लड़ना वीरों की पहचान नहीं
सुनो देश की युवा शक्ति न समय गंवाओ बातों में
पहचानो उन दुश्मन को जो विष घोले जज़्बातों में
धूल चटा दो गिद्धों को जो घर में घुस प्रतिघात करें
जुबाँ काट लो गद्दारों की जो देश द्रोह की बात करें
भारत माता के दुश्मन से प्रीत नहीं हो सकती है
युद्ध घोष के बिना हमारी जीत नहीं हो सकती है
युद्ध ठान कर सरहद पर अब आगे कदम बढ़ाना है
दहशत गर्दी इस दानव को अब तो सबक सिखाना है
तुम्हे जगाने के खातिर मैं वंदे मातरम् लिखता हूँ
अलख जगाने के खातिर वंदे मातरम् लिखता हूँ
कंचन की केसर घाटी में वन्दे मातरम् लिखता हूँ
हल्दीघाटी की माटी मे वन्दे मातरम् लिखता हूँ
भारत भू की भव्य धरापर वंदे मातरम् लिखता हूँ
विश्व वंदिता हिंद धरा पर वन्दे मातरम् लिखता हूँ
जब लिखता हूँ वन्दे मातरम् कर्म सकल बन जाते हैं
वन्दे मातरम् के वंदन से जन्म सफल बन जाते है।।
लेखक: प्रमोद सनाढ़्य "प्रमोद" नाथ