नीम का पेड़ अपने आप में औषधियों का भंडार है. यही कारण है कि आयुर्वेद में भी इसको लेकर बहुत सी बाते कही गई है. इसके प्रयोग से कई तरह की ऐसी बीमारियां भी ठीक हो जाती है, जिसके उपचार में बहुत पैसा लगाना पड़ता है.नीम की पत्तियां भले ही खाने में कड़वी लगती हो, लेकिन इसमें कई तरह के एंटी बायोटिक गुण, एंटी एंगल और एंटी पैरासीटिक तत्व पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए लाभकारी है. ऐसे में आप भी अपने घर-आंगन में इसका पौधा लगाकर लंबे समय तक बीमारियों से दूर रह सकते हैं.
जैविक कीटनाशक (Organic pesticides)
नीम को जैविक कीटनाशक माना जाता है, इसलिए बड़े स्तर पर कीटों को मारने एवं फसलों को सुरक्षित रखने के लिए किसान भाई इसका उपयोग करते आ रहे हैं.
स्किन के लिए लाभकारी (Beneficial for skin)
अगर आप बूढ़े दिखने लगे हैं, तो आपको नीम का उपयोग करना चाहिए. नीम को त्वचा और सेहत का सबसे अच्छा दोस्त माना गया है. इसकी पत्तियों में कई एंटी ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, इसलिए स्किन से जुड़े उत्पादों में इसका उपयोग होता है. त्वचा संबंधी रोगों को रोकने के लिए मेडिकल जगत में इसकी भारी मांग है. चलिए आज हम आपको इसकी खेती के बारे में बताते हैं.
जमीन की जोताई (Plowing of land)
नीम की खेती लगभग किसी भी तरह की मिट्टी पर हो सकती है. इसकी खेती से पहले जोताई का काम अच्छे से हो जाना चाहिए. बिजाई से पहले मिट्टी को भूरभूरा बना लें. बिजाई मॉनसून के समय में ही करनी चाहिए, पौधों के चयन में छः महीने पुराने पनीरी को तरजीह देनी चाहिए.
फासला (Distance)
बीजों के मध्य 15-20 सैं.मी. का फासला रखना चाहिए. सिंचाई का काम पहले दो साल तक समय-समय पर होते रहना चाहिए. वहीं प्रत्येक गोडाई के बाद भी सिंचाई करनी चाहिए.
फल (Fruit)
इसके फल 3-5 साल बाद फल बनने शुरू हो जाते हैं. पैदावार की बात करें तो इसकी पैदावार औसत 30-100 किलो प्रति वृक्ष हो जाती है. कटाई के बाद भराई के लिए बीजों को छांव में सुखाना बेहतर है. फफूंदी से बचाने के लिए इसे पटसन की बोरी में भरना चाहिए.
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