किसानों के लिए औषधीय फसल/Medicinal Crop आज के समय में काफी मुनाफे का सौदा साबित होती जा रही है. इसी क्रम में आज हम आपके लिए एक ऐसी औषधीय फसल की जानकारी लेकर आए है, जो किसानों की आय बढ़ाने में काफी मददगार है. जिस फसल की हम बात कर रहे हैं, वह लंबी मिर्च है, जिसका वैज्ञानिक नाम पाइपर लोंगम है. यह एक पतली और रेंगने वाली झाड़ी है जिसके पत्ते पान के पत्तों जैसे होते हैं. यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पनपती है, जहां इसकी औषधीय गुणों और पाक उपयोगों के लिए इसकी खेती की जाती है.
वही, हिंदी में इस फसल को पिपला, कन्नड़ में हिप्पली और संस्कृत में पिप्पली के नाम से जाना जाता है. यह पौधा अपनी कांटों और जड़ों के लिए मूल्यवान है, जिनका उपयोग औषधीय लाभों के कारण विभिन्न हर्बल तैयारियों में किया जाता है. यह मिर्च मुख्य रूप से जंगली पौधों से उत्पन्न होती है. इसकी खेती खासी पहाड़ियों, पश्चिम बंगाल की निचली पहाड़ियों, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों में होती है. इसके अतिरिक्त, यह आंध्र प्रदेश और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के जंगलों में भी उगाई जाती है.
पिप्पली के औषधीय उपयोग
श्वसन स्वास्थ्य: यह अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और खांसी जैसी स्थितियों के प्रबंधन में प्रभावी है. पिप्पली कंजेशन को कम करने, श्वसन पथ से कफ को साफ करने और सर्दी के लक्षणों से राहत दिलाने में मदद करती है.
पाचन सहायक: इस जड़ी-बूटी में कई गुण होते हैं, जो गैस और सूजन को कम करते हैं. यह पेट के लिए भी लाभकारी है, पाचन को बढ़ावा देता है और भूख बढ़ाता है.
रेचक: पिप्पली मल त्याग में सहायता करती है, तथा कब्ज से राहत दिलाती है.
पिप्पली से बने हर्बल उत्पाद
पिप्पली चूर्ण: यह पिप्पली का चूर्ण है जिसका उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक में बड़े पैमाने पर किया जाता है. यह श्वसन और पाचन संबंधी बीमारियों के इलाज में अपनी क्षमता के लिए जाना जाता है.
पिप्पली काढ़ा: पिप्पली को पानी में उबालकर बनाया गया तरल पदार्थ है. इसका उपयोग औषधीय गुणों के लिए किया जाता है, खासकर पुरानी श्वसन संबंधी बीमारियों के इलाज आदि.
खेती की पद्धतियां
जलवायु: लॉन्ग पेपर भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता वाले क्षेत्रों में पनपता है. यह गर्म और नम जलवायु को सहन कर सकता है, जिससे यह आंशिक छाया के साथ उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों में खेती के लिए उपयुक्त है.
मिट्टी की आवश्यकताएं: लंबी मिर्च की खेती के लिए आदर्श मिट्टी दोमट या लैटेराइट मिट्टी होती है जो कार्बनिक पदार्थों से समृद्ध होती है और जिसमें जल धारण करने की अच्छी क्षमता होती है.
प्रवर्धन: लंबी मिर्च का प्रवर्धन जलयुक्त कटिंग या सकर्स के माध्यम से किया जाता है. इन्हें मानसून के मौसम की शुरुआत के दौरान गड्ढों में लगाया जाता है.
अंतराल और रोपण: आमतौर पर पौधों के बीच 60 x 60 सेमी की दूरी पर रोपण किया जाता है. इससे बेल की पर्याप्त वृद्धि और विकास होता है.
खाद: किसान मिट्टी को समृद्ध बनाने और स्वस्थ विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 20 टन फार्म यार्ड खाद (एफवाईएम) डालते हैं.
कटाई और उपज: स्पाइक्स को रोपण के लगभग 6 महीने बाद काटा जाता है, जब वे काले रंग के होने लगते हैं. जड़ों को उनके औषधीय गुणों के लिए भी काटा जाता है. औसतन, एक हेक्टेयर में उगाई गई लंबी मिर्च से लगभग 500 किलोग्राम जड़ें प्राप्त होती हैं.