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Updated on: 19 June, 2021 12:00 AM IST
कालमेघ की खेती मुनाफे का एक अच्छा सौदा

औषधीय गुणों से भरपूर कालमेघ की खेती (Kalmegh Farming) किसानों के लिए बेहद फायदेमंद हो सकती है. इसका उपयोग आयुर्वेदिक, हौम्योपेथिक दवाइयों के निर्माण में किया जाता है. वैसे तो यह देश के वनीय क्षेत्रों में पाया जाता है, लेकिन इसके पौधे लगाकर किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. भारत में कालमेघ की खेती मध्य प्रदेश, असम, तमिलनाडु, जम्मू कश्मीर, उड़ीसा तथा केरल प्रांत में होती है. तो आइए जानते हैं कालमेघ की खेती की पूरी जानकारी-

कालमेघ के औषधीय गुण (Medicinal properties of Kalmegh)

यह एक औषधीय पौधा है और कई बीमारियों के उपचार में बेहद फायदेमंद होता है. डायबिटीज का ईलाज भी इससे किया जा सकता है. इसके अलावा कालमेघ का उपयोग लीवर संबंधित बीमारियों के उपचार में किया जाता है. यह मलेरिया, ज्वर, दुर्बलता, कफ तथा कब्ज में लाभकारी है.

कालमेघ की खेती के लिए जलवायु तथा भूमि (Climate and land for cultivation of Kalmegh)

कालमेघ की खेती के लिए ऐसी जलवायु उपयुक्त मानी जाती है जो न अधिक गर्म हो और न ही अधिक ठंडी. इसके अच्छे विकास के लिए सूर्य का प्रकाश होना चाहिए. दक्षिण भारत के प्रांत में सितंबर महीने में इसके फूल अच्छा विकास करते हैं. वहीं दिसबंर महीने में इसमें फलियां लगती है. इसकी खेती के लिए दोमट, बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. यह छायादार भूमियों में भी उग सकता है.

कालमेघ की खेती के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for Kalmegh cultivation)

कालमेघ की खेती के लिए सबसे पहले गर्मी के दिनों में प्लाऊ से एक गहरी जुताई की जाती है. इसके बाद हैरो या कल्टीवेटर से दो तीन जुताई कर लेते हैं. फिर मिट्टी को भुरभुरा और समतल बनाने के लिए पाटा लगाकर जुताई की जाती है.

कालमेघ की खेती के लिए नर्सरी (Nursery for cultivation of Kalmegh)

मई महीने में इसकी नर्सरी तैयार की जाती है. यदि आप एक हेक्टेयर में कालमेघ की खेती करना चाहते हैं तो इसके के लिए 10X2 मीटर नाप की तीन क्यारियां तैयार की जाती है. क्यारियों के निर्माण के बाद इसमें गोबर की सड़ी खाद डालें. इसके बाद बिजाई करके हल्की मिट्टी ढंक दें. फिर हल्की सिंचाई कर दें. 6 से 7 दिनों में बीजों में अंकुरण हो जाता है. एक महीने के बाद इसके पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

कालमेघ की खेती के लिए रोपाई (Planting for Kalmegh cultivation)

कालमेघ के पौधों की रोपाई जून-जुलाई माह में की जाती है. इसके पौधों की रोपाई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 30 से 60 सेंटीमीटर, पौधे से पौधे की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर रखना चाहिए. पौधों की रोपाई के एक दिन पहले सिंचाई कर देना चाहिए.  रोपाई दोपहर के बाद ही करना चाहिए. पौधों की रोपाई के बाद हल्की सिंचाई कर देना चाहिए.

कालमेघ की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizer for Kalmegh Cultivation)

कम पोषक तत्वों की मिट्टी में भी कालमेघ का पौधा ग्रोथ कर लेता है. इसकी अच्छी पैदावार के लिए प्रति हेक्टेयर 10 से 15 टन सड़ी गोबर खाद अंतिम जुताई के समय डाल देना चाहिए. वहीं प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन 80 किलोग्राम तथा फास्फोरस 40 किलोग्राम दिया जाता है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा रोपाई के समय और आधी मात्रा खड़ी फसल में देना चाहिए. वहीं कम पोटाश वाली भूमि में 30 किलोग्राम पोटाश देना चाहिए.

कालमेघ की खेती के लिए सिंचाई, निराई तथा गुड़ाई (Irrigation, weeding and hoeing for cultivation of Kalmegh)

वर्षाकाल में कालमेघ की खेती की जाती है. ऐसे में वर्षा का पानी इसकी खेती के लिए पर्याप्त होता है. हालांकि नर्सरी में 2 से 3 सिंचाई की जरूरत पड़ती है. दिसंबर महीने में इसके पौधों में फलियां बनती है इसलिए सिंचाई न करें. वहीं पौधे के अच्छे विकास के लिए एक दो निराई गुड़ाई करें.

कालमेघ की खेती के लिए कटाई (Harvesting for Kalmegh Cultivation)

फसल की कटाई 90 से 100 दिन के बाद सिंतबर महीने में करना चाहिए. इसकी एकवर्षीय या दोवर्षीय फसल ली जा सकती है. दो वर्षीय फसल के लिए पहली कटाई अगस्त और दूसरी कटाई नवंबर-दिसंबर महीने में करना चाहिए.

 

कालमेघ की खेती के लिए पैदावार और कमाई (Yield and Earning for Kalmegh Cultivation)

एक हेक्टेयर में कालमेघ की खेती करने पर 3.5 से 4 टन सूखी शाखों का उत्पादन होता है. इसकी खेती में प्रति हेक्टेयर 25 हजार रूपये का खर्च आता है. वहीं फसल से 75 हजार रूपये की आय होती है. इस तरह खर्च काटकर प्रति हेक्टेयर 50 हजार रूपये का शुद्ध मुनाफा हो जाता है.

English Summary: how to cultivate medicinal plant Kalmegh
Published on: 19 June 2021, 05:07 IST

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