कोरोना काल के दौरान लोगों ने यह अनुभव किया है कि भारतीय चिकित्सा पद्धति आज भी दुनिया में विलक्षण एवं सर्वाधिक स्वीकार्य है. इसी चिकित्सा पद्धति का एक भाग है -आयुर्वेद. यह विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है. इस पद्धति का एक महत्वपूर्ण भाग औषधीय पौधों का प्रयोग है.
यूं तो आयुर्वेद का महत्व सब जानते हैं, लेकिन कोरोना काल (Covid Period) से औषधीय पौधों की मांग बहुत बढ़ी है और इन पौधों के जरिए हमारे किसान भाइयों ने बहुत लाभ भी कमाया है.
औषधीय पौधों के बाजार का हुआ है विस्तार
आज देश में कई नामी कंपनियां हैं, जो औषधीय पौधों से बने उत्पादों को बाजार में बेच रही हैं, इसलिए औषधीय पौधों की मांग लगातार बनी हुई है. हमारे किसान भाई यदि परंपरागत खेती के साथ-साथ औषधीय पौधों की खेती पर भी ध्यान दें, तो अच्छा लाभ कमा सकते हैं. आज सरकार भी औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहित कर रही है.
परंपरागत फसलों की तुलना में औषधीय फसलों के उत्पादन में किसान ज्यादा आमदनी कर सकते हैं. औषधीय फसलों की बात की जाए, तो हम सर्पगंधा, अश्वगंधा, कालमेघ, शतावरी, तुलसी, एलोवेरा,,लेमनग्रास, अकरकरा और सहजन को शामिल कर सकते हैं. आज हम तीन औषधीय पौधों के बारे में बताएंगे, जिनके जरिए किसान भाई अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं -
अकरकरा की खेती
अकरकरा एक औषधीय पौधा है. इस पौधे की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेद में दवा बनाने के लिए किया जाता है. इसके बीज और डंठल भी अत्यंत उपयोगी हैं. अकरकरा का उपयोग दंत मंजन बनाने से लेकर दर्द निवारक दवाओं और तेल के निर्माण में भी किया जाता है. इसके पौधे शीतोष्ण जलवायु में जल्दी विकसित होते हैं.
कहाँ होती है अकरकरा की खेती
महाराष्ट्र हरियाणा गुजरात मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों में इसकी खेती बहुतायत से की जाती है.
अश्वगंधा की खेती
अश्वगंधा एक बहु उपयोगी झाड़ीदार पौधा है. आप सोच रहे होंगे कि इसे अश्वगंधा क्यों कहते हैं?.... तो किसान भाइयों इसे अश्वगंधा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसकी जड़ से अश्व जैसी यानी घोड़े जैसी गंध का आभास होता है.
अश्वगंधा का हर भाग है उपयोगी
अश्वगंधा की जड़, पत्तियां, फल और बीज सभी का औषधीय महत्व है. आजकल इसका उपयोग बहुत बढ़ गया है और इसीलिए किसान भाइयों के लिए इसकी खेती के जरिए अधिक लाभ कमाने की संभावनाएं बहुत ज्यादा है.
इसकी महत्ता इतनी बढ़ गई है कि इसे व्यवसायिक फसल का रूप दे दिया गया है और इसे कैश क्रॉप कहां जाने लगा है. अश्वगंधा को बलवर्धक, स्मरण शक्तिदायी, तनावरोधक और कैंसररोधक माना जाता है. यह वजन कम करने में भी अत्यंत सहायक है. इसके उत्पादन में लागत अत्यंत कम आती है, इसलिए किसान कई गुना लाभ कमा सकते हैं. अश्वगंधा की बुवाई के लिए यह उपयुक्त समय है. जुलाई से सितंबर तक अश्वगंधा की बुवाई की जा सकती है.
सहजन की खेती
सहजन को आजकल ड्रमस्टिक के नाम से जाना जाता है. इसकी खासियत यह है कि एक बार बुवाई के बाद 4 साल तक बुवाई की जरूरत नहीं पड़ती. यह विटामिन्स, एंटीऑक्सीडेंट्स और अमीनो एसिड का भंडार है.
आयुर्वेद में इसके पत्ते, छाल और जड़ सभी महत्व रखते हैं. करीब 5000 साल पहले ही सहजन को महत्वपूर्ण औषधि के रूप में मान्यता दी जा चुकी थी. आधुनिक विज्ञान ने भी इसकी खूबियों को स्वीकार किया है. इसकी खेती दक्षिण भारत में बहुतायत से की जाती है.