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Updated on: 20 September, 2021 12:00 AM IST
Dairy Farms

गाय का ब्याना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो आम तौर पर पशुओं में बिना किसी मदद के होती है. हालांकि, यदि गाय को ब्यांत के दौरान किसी प्रकार की कठिनाई हो रही हो, तो उस समय सख़्त निगरानी की आवश्यकता है. जो गायें पहली बार ब्याती हैं (जिन्हें हैफ़र्ज़ भी कहते हैं), उन्हें वयस्क गायों की तुलना में अधिक समस्या होती है, और इसलिए ब्यांत के समय उन्हें अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है.

ब्यांत के बाद, गाय एवं बछड़े की देखभाल एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है. जिन कारकों पर ध्यान दिया जाना चाहिए, उनमें मुख्यतः पोषण, ब्यांत के दौरान सहायता, कोलॉस्ट्रम प्रबंधन, रोग परीक्षण एवं निगरानी और दवाओं का उपयोग शामिल है. यह लेख ब्यांत के दौरान ध्यान देने वाली सभी आवश्यक बुनियादी व्यवस्थाओं तथा प्रबंधन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कराएगा.

बिछौना तथा बाड़ा (गौशाला)

ब्यांत के समय के लिए भूमितल का स्थान कम से कम १७५ वर्ग फ़ुट प्रति गाय के अनुपात से होना चाहिए. फ़र्श पर रेत, मिट्टी एवं भूसे का ६-१० इंच ऊँचा बिछौना तैयार करना चाहिए. पशुओं को किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाने के लिए फ़र्श पर बिछी सामग्री को सूखा रखने के लिए बार-बार बदलते रहना चाहिए. बाड़े को उचित रूप से हवादार होना चाहिए तथा पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था होनी चाहिए.

प्रारंभिक प्रबंधन

एक बार जब बछड़े का जन्म हो जाए, तो गर्भनाल को बछड़े के शरीर से २ से ५ सेंटीमीटर की दूरी पर बांधा जाना चाहिए एवं संक्रमण से बचाव के लिए नाभि पर टिंचर आयोडीन या बोरिक एसिड लगाना चाहिए.

आम तौर पर जन्म के तुरंत बाद, गाय स्वयं अपने बछड़े की नाक एवं मुंह में मौजूद म्यूकस या चिपचिपे पदार्थ को हटाने के लिए चाटती है, ताकि बछड़ा ठीक से सांस ले सके. पर यदि किसी कारणवश गाय अपने बछड़े को चाट कर साफ़ करने में असमर्थ हो या देरी कर रही हो, तो सहायक द्वारा बछड़े की नाक के आसपास के क्षेत्र को हाथ से साफ़ किया जाना चाहिए. यह बछड़े को सुचारु रूप से सांस लेने में मदद करता है.

यदि गाय बछड़े को नहीं चाटती, या मौसम ठंडा हो, तो नवजात बछड़े को सूखे कपड़े या बोरे से रगड़ कर सुखाया जाना चाहिए. कभी-कभी बछड़े को सांस लेने में भी सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है, जिसे बछड़े की छाती को हाथों से निरंतर दबाकर एवं छोड़ कर किया जा सकता है.

प्राकृतिक रूप में, गाय को १२ से २४ घंटों के भीतर प्लसेंटा या नाल को निष्कासित करना चाहिए. यदि इस अवधि के भीतर नाल निष्कासित नहीं हो पाती है, तो अवश्य ही एक पशु चिकित्सक से परामर्श किया जाना चाहिए. जब तक नाल पूरी तरह से निकल नहीं जाती तथा योनि स्राव बंद नहीं हो जाता, तब तक गाय की भूख एवं शारीरिक तापमान (संदर्भ सीमा, ३७°से - ३९°से) की बारीकी से निगरानी की जानी चाहिए.

गाय के थन को क्लोरीन युक्त पानी से अच्छी तरह से धोने एवं पूरे क्षेत्र को सुखाने के पश्चात, बछड़े को कोलॉस्ट्रम युक्त पहला दूध पीने के लिए छोड़ देना चाहिए, जो बछड़े को कृत्रिम रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है. इसे ब्यांत के १ घंटे के भीतर ही पिलाया जाना चाहिए, अन्यथा, कम उम्र में ही बछड़ा बहुत कमजोर हो जाता है.

गाय का चारा या फ़ीड

एक हाल ही की बियाई हुई गाय की पोषक तत्वों की आवश्यकता एक बिनबियाई गाय की तुलना में लगभग दोगुनी होती है. इसलिए यह अति आवश्यक है कि, दुग्ध उत्पादन को बनाए रखने के लिए तथा गाये को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने के लिए उसे ऊर्जा एवं प्रोटीन युक्त आहार देना जरूरी है. ब्यांत के तुरंत बाद, गाय को पर्याप्त मात्रा में गुनगुना पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए. ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बाईपास वसा (१०० - २०० ग्राम/दिन/पशु) को भी चारे में मिलाया जा सकता है. यह उद्देश्य होना चाहिए कि गाय को निगेटिव एनर्जी बैलेंस से बचाया जाए.

बछड़े को खिलाना या फ़ीड देना

बछड़ों में एक बड़ा एबोमैसम (जठरांत) तथा एक छोटा रूमेन (प्रथम अमाशय) होता है, जो अभी तक पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुआ होता है. एक वयस्क गाय में यह विपरीत होता है: रुमेन बड़ा तथा एबोमैसम छोटा होता है. चारा एवं निर्धारित फ़ीड को पचाने के लिए एक विकसित रुमेन की आवश्यकता होती है. इसी कारणवश नवजात बछड़ा जन्म के बाद, पहले कुछ हफ्तों तक चारा नहीं पचा पाता. इसीलिए बछड़े को सही मात्रा में चारा देना अति आवश्यक है, तथा यह उसकी वृद्धि का एक महत्वपूर्ण घटक है. पहले ३ महीनों में बछड़ों को खिलाने या फ़ीड देने की मात्रा निम्नलिखित तालिका-१ में दी गई है.

 

तालिका-१. बछड़ों के लिए प्रस्तावित फ़ीड की मात्रा

आयु (हफ़्ते)

दूध (लीटर)

स्टार्टर बछड़ों की प्रारंभिक फ़ीड (ग्राम)

चारा (ग्राम)

४.० – ५.०

– 

४.० – ५.०

५०

३.० – ३.५

१००      

३५०

३.०

३००

५००

२.५

४००

५५०

६  

२.५

५५०

७००

२.०

६५०

७५०

१.०

८००

९००

१०००

११००

१०

१३००

१२००

११

१४००

१५००

१२

१६००

१८००

१३

१८००

२०००

स्रोत: राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, २०१७

जितनी जल्दी बछड़ा जुगाली करने योग्य हो जाता है, उसको पालने की लागत उतनी ही कम हो जाती है. तालिका-२ स्टार्टर बछड़ों एवं ग्रोवर बछड़ों के लिए भारतीय मानक ब्यूरो की सलाह को रेखांकित करती है. स्टार्टर, बछड़ों को जन्म के पहले तीन माह खिलाना चाहिए, तथा ग्रोवर, बछड़ों को ३ माह से ९ माह की उम्र तक खिलाया जाना चाहिए.

तालिका-. भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा स्टार्टर बछड़ों एवं ग्रोवर बछड़ों के लिए प्रस्तावित विनिर्देश

विशेष लक्षण

स्टार्टर बछड़ों के लिए

ग्रोवर बछड़ों के लिए

नमी, अधिकतम %

१०

१०

क्रूड प्रोटीन, न्यूनतम %

२३ – २६

२२ – २५

ईथर का अर्क, न्यूनतम %

क्रूड फ़ाइबर, अधिकतम %

१०

एसिड-अघुलनशील ऐश (भस्म),

अधिकतम %

२.५

३.५

डीवर्मिंग एवं टीकाकरण

प्रतिस्थापन किये गए हैफ़र्ज़ तथा पहली बार ब्याई गाय के बछड़े की डीवर्मिंग उनके विकास एवं शरीर की स्थिति को बढ़ाती है. डीवर्मिंग के परिणामस्वरूप, हैफ़र्ज़ के वजन में वृद्धि (१३-१८ किलोग्राम) देखी जा सकती है तथा डीवरमर को, उपयोग एवं आवश्यकता के आधार पर चुना जा सकता है. कई डीवरमर न केवल उन कीड़ों से छुटकारा पाने में मदद करते हैं, जो पहले से ही बछड़े के शरीर में मौजूद हैं, बल्कि उन कीड़ों को भी मार देते हैं जो आगे आने वाले ४ से ६ हफ्तों में बछड़े को दोबारा संक्रमित कर सकते है.

जन्म के बाद पहले सप्ताह से ही डीवर्मिंग शुरू की जानी चाहिए. वैसे तो सभी मवेशियों के बछड़ों में, निओनेटल ऐस्कैरिएसिस (नवजात बछड़ों में होने वाली बीमारी) को नियंत्रित करने के लिए, पाइपरजीन एडिपेट की १० ग्राम की एक खुराक जन्म के पहले सप्ताह में देने की सलाह दी जाती है, पर विशेष रूप से भैंस के बछड़ों के लिए यह अति आवश्यक है. जन्म के पहले ६ माह तक, डीवर्मिंग हर माह की जानी चाहिए, तथा उसके बाद ३ माह में एक बार. बछड़ों का टीकाकरण हर पशुसमूह स्वास्थ्य कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. बछड़ों के लिए, ब्लैक क्वॉर्टर, फ़ुट-एंड-माउथ रोग, ऐन्थ्रैक्स, ब्रुसेला एवं हैमोरैजिक सेप्टिसीमिया जैसे रोगों से बचाव के लिए टीका लगाने की आवश्यकता होती है.

लेखक: डॉ. ज़फर अहमद (सीनिअर मैनेजर- मार्केटिंग) एवं डॉ. अभिषेक सिंह सेंगर (प्रोडक्ट मैनेजर) हिमालया वेलनेस कम्पनी, बेंगलुरू- 562162

English Summary: Required management for post-calving in dairy farms
Published on: 20 September 2021, 03:33 IST

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