ऑक्सीटोसिन अर्थात पशुओं का दूध निकालने के लिए लगाये जाने वाला इंजेक्शन–ऑक्सीटोसिन एक हर्मोने है. जो पिट्यूटरी ग्रंथि के अंतिम भाग में स्थापित व संग्रहित होता है.
1. ऑक्सीटोसिन के कारण गर्भ संकुचित होता है परिणाम स्वरूप मूत्राशय सिकुडता है और स्तन से दूध निकलता है. यह प्रसव के दूसरे चरण में योगदान करता है.
2. प्राक्रतिक ऑक्सीटोसिन की मात्रा संतुलित होने के कारण यह केवल स्तनपान के दौरान दूध को स्तनों से अलग करता है तथा प्रसव पीड़ा को प्रोत्साहित करता है.
3. पशु को लगाया जाने वाला ऑक्सीटोसिन दूध वाले अपने पशुओं का दूध निकलने के लिए एक दिन में दो बार सुबह व शाम को उपयोग करते हैं.
4. लालची दूध वालो में ये गलत धारणा है की इससे दूध का उत्पादन अधिक होता है जब की यह तो केवल दूध को तेजी से बहार निकलता है.
5. यह गाय की प्रजनन प्रणाली को नष्ट कर देता है व गाय तीन में ही बाँझ हो जाती है.
भारत सरकार ने इसको बंद कर दिया है. इसको पशु कूरुता रोकथाम अधिनियम 1960 की धारा 12 और खाद औषधि अदमिश्रण निवारण अधिनियम 1960 के तहत प्रतिबंधित कर दिया है. अब आवश्यक है प्रभावी स्थानीय परिवर्तन तथा जन जागरण की.
ऑक्सीटोसिन हार्मोन का कार्य
1. गर्भाशय का संकुचन
2. दूध का उत्पादन
3. यौन प्रतिकिया
4. किडनी पर बुरा प्रभाव
5. प्रोस्टेट ग्रंथि
6. बहेतर सम्बंध बनाने में
ऑक्सीटोसिन हार्मोन का उपयोग
ऑक्सीटोसिन हार्मोन का सिंथेटिक दवाओं में प्रयोग में लाया जाता है जोकि बढ़िया साबित भी हो रहा है. ऑक्सीटोसिन को नसों में इन्त्रवेंस के द्वारा, इन्त्रमुस्कुलर इंजेक्शन के द्वारा या कई बार मसूड़ों के माध्यम से दिया जाता है.
1. लेबर की पुष्टि करने के लिए.
2. प्रसवोतर रक्त्रासव की रोकथाम– प्रसव के तुरंत बाद रक्त रसाव को रोकने के लिए ऑक्सीटोसिन को प्रयोग किया जाता है.
3. गर्भपात के बाद गर्भाशय की सफाई– गर्भपात के दौरान गर्भाशय में कुछ अवशेष रह जाते हैं, जोकि संक्रमण का कारण बन सकता है, गर्भाशय की सफाई की लिया इसका प्रयोग किया जाता है.
4. ब्रेस्ट में किसी भी प्रकार की रूकावट को सहज करना–स्तन से दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं आता है, इस तरह की स्तिथि में नाक के माध्यम से ऑक्सीटोसिन ब्रैस्ट से दूध निकालने में मदद करता है.
ऑक्सीटोसिन के हानिकारक दुष्प्रभाव
1. बच्चों के मस्तिस्क को ऑक्सीजन की आपूर्ति कम कर देता है .
2. महिलाओं में हार्मोन के विकास पर प्रभाव डालता है जिससे नाबालिग लडकिया जल्दी बालिग हो जाती है.
3. नवजात शिशु को पीलिया होने का कारण बनता है.
4. स्तनपान में व्यवधान उत्पन्न करता है.
5. दिल की धड़कन तेज, कम व असामान्य कर देता है.
6. बच्चे के जन्म के बाद लम्बे समय तक खून बहता है .
7. सिरदर्द, भ्रम, गली गलोच, गंभीर उलटी, समन्वय की कमी, दौरा, बेहोशी, स्वास में तकलीफ या सासों बंद कर देता है.
8. उच्च रक्तचाप प्रभाव, धुंधली दृष्टि, कान में घंटी बजना, चिंता, भ्रम, सीने में दर्द के लिए खतरनाक है.
9. मेटाबोलिक दुष्प्रभाव जिसके तहत वाटर पोइजिंग के चलते कॉमा व दौरा में चले जाते हैं.
10. उबकाई और उल्टी हो जाती है.
11. स्वास दुष्प्रभाव में फेफड़े का फुलाव हो जाता है.
12. भ्रूण में होने वाली मौत भी जाती हैं.
सामान्य दुष्प्रभाव –
1. मतली, उबकाई, उल्टी
2. नाक में जलन, नाक बहना, सनस दर्द या जलन
3. स्मृति समस्या
4. नेत्र दुष्प्रभाव के तहत नवजात रेटिना हेमरज हो जाता है.
5. मनो रोग दुष्प्रभाव के तहत उच्च खुराक लेने पर रोगी में स्मृति और उन्माद हो जाता है.
लेखक: गुलाब सिंह, योगिता बाली, मीनू
कृषि विज्ञान केंद्र, भिवानी
चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार
ईमेल- yogabal..10@gma.l.com