भारतीय कृषि में पशुपालन के अन्तर्गत बकरी व भेड़ पालन की महत्वपूर्ण भूमिका है जो मुख्यतः सीमांत किसान व लघु कृषकों के आजीविका के साथ निकटता से जुड़ी हुई है. समय के साथ यह व्यवसाय अपने प्रमुख उत्पादों जैसे दूध, मांस, रेशों, खाल आदि के बढ़ते मांग को देखते हुए निरंतर विस्तार की ओर अग्रसर है, जिसके अन्तर्गत मुख्यतः बहुउपयोगी नस्लों के संवर्धन द्वारा इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के प्रयास हैं.
भारत बकरी व भेड़ अनुवांशिक संसाधनों का एक समृद्ध भंडार है जो वर्तमान में 34 बकरी की नस्लें और 44 भेड़ की नस्लों के रुप मे पहचाना जाता है. अन्य नस्लें जिनका पंजीकरण नहीं हो पाया है उनकी राष्ट्रीय पशु अंनुवाशिक संस्थान, भारत सरकार के मघ्यम से अपने भौगौलिक क्षेत्रों में पहचान कर पंजीकरण का कार्य भी किया जा रहा है, जिससे भविष्य में इन नस्लों को उनकी उपयोगिता के अनुसार बढ़ावा दिया जाये और किसानों की आजीविका से जोड़ा जाये. भारत में बकरी व भेड़ की नस्लों को क्षेत्र की जलवायु व नस्ल की उपयोगिता के अनुसार वर्गीकृत किया गया है. भारतीय क्षेत्र व जलवायु के अनुसार विभाजित भेड़ व बकरी की प्रमुख नस्लें निम्न हैः
जलवायु |
क्षेत्र |
भेड़ |
बकरी |
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ठंडा |
हिमालयन व हिमांचल |
गद्दी, चांगथांगी, गुरेज, पूंछी, भकरवाल, कश्मीरमेरिनो। |
गद्दी, चांगधांगी, चेगू, भकरवाल |
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शुष्क |
उत्तरभारत, मध्य भारत, राजस्थान, गुजरात |
चोकला, नाली, मारवाड़ी, मगरा, जैसलमेरी, पूगल, मालपुरा, सोनाडी, पतानवाडी, मुजफ्फरनगरी, जालोनी |
fसरोही, मारवाड़ी, बीटल, जखराना, बारबरी, जमुनापारी, मेहसाना, गोहिलवादी, कच्छी, सूरती |
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समुद्रतटीय व उष्णकटिबंधीय |
दक्षिणभारत |
डेकनी, नेलोर, बेलारी, हसन, मण्डया, मद्देरी, नीलगिरी, किलाकारसल, रामनादव्हाईट |
सांगमनेरी, उस्मानावादी, कनी अडू, मालाबारी |
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उष्ण तथा आद्र्र |
पश्चिमबंगाल, उ़ड़ीसा, बिहार, असम |
छोटानागपुरी, गंजम, बोनपाला, गैरोल, शाहबादी |
गंजम, ब्लैकबंगाल |
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बकरी की प्रमुख नस्लें
जमुनापारी
यह बड़े आकार की दुकाजी नस्ल की बकरी है जिससे अधिक मा़त्रा में दूध प्राप्त कर सकते हैं. इसका रंग सफेद होता है तथा इसकी नाक उभरी हुई होती है, जिसे ’रोमन नोज’ कहते है. इस पर पिछले पैरों पर बालों के गुच्छे होते है. व्यस्क नर का भार 44-46 कि0ग्रा0 तथा व्यस्क मादा 35-38 कि0ग्र0 की होती है. भारत मे इसका प्रयोग नस्ल सुधार कार्यक्रमों में भी किया जाता है.
बारबरी
ये मध्यम आकार की बकरी होती है जिसका रंग सफेद होता है, जिस पर भूरे रंग के छोटे व बडे़ धब्बे पाये जाते हैं. इसके कान छोटे, टयूब समान होते है जो आगे से नुकीले होते है. सींग मध्यम आकार की आगे या पीछे से मुडी हुई होती है. यह नस्ल बिना चराई के, एक स्थान पर बांधकर भी सफलतापूर्वक पाला जा सकता है. यह औसतन एक ब्यात में 2-3 बच्चे देती है.
बीटल
यह नस्ल भूरे या काले रंग की होती है जिस पर सफेद धब्बे होते है. इसका कान पान के पत्ते के आकार का लंबा, चौड़ा तथा लटका हुआ होता है. यह जमुनापारी बकरी के समान बड़े आकार की होती है. दूध उत्पादन के लिए यह नस्ल अच्छी मानी जाती है.
ब्लैक बंगाल
यह बकरी छोटे आकार की होती है जिसका रंग काला होता है. प्रत्येक ब्यात में 3-4 बच्च्े देकर इस नस्ल को भी तेजी से बढ़ाया जा सकता है. ब्लैक बंगाल के मांस व खाल बकरी की अन्य नस्लों की तुलना में उच्चतम कोटि का होता है, जिससे इसकी देश के अन्य क्षेत्रों में भी बहुत अधिक मांग होती है.
सिरोही
इसका रंग भूरा होता है तथा इस पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पाये जाते हैं. इस नस्ल के गले के नीचे कलंगी होती है जिससे इस नस्ल की पहचान की जाती है. यह नस्ल दूध व मांस हेतु पाली जाती है.
चेगू
यह मध्यम आकार की बकरी है. इसका रंग सामान्यतः सफेदी लिऐ हुए भैरा लाल होता है. इनका सींग ऊपर की ओर उठे हुए धुमावदार होते है. इन बकरीयों से मुलायम रेशा प्राप्त किया जाता है. इससे पश्मीना कहते है.
भेड़ की प्रमुख नस्लें
चोकला
मह मध्यम आकार की हल्के भूरे रंग की नस्ल है जिसका मुंह गहरे भूरे रंग का होता है. इसके कान छोटे, टयूब समान होते है तथा नर व मादा सींग रहित होते है. इस नस्ल द्वारा उत्पादित ऊन राजस्थान में सर्वश्रेष्ठ गुण्वत्ता की मानी जाती है. इसे भारत की मेरिनों भी कहा जाता है. इसके ऊन का प्रयोग कालीन या चटाई बनाने में किया जाता है.
मारवाड़ी
यह मध्यम आकार की नस्ल है जिसके मुंह का भाग काला होता है. कान बहुत छोटे, ट्यूब के समान होते है तथा इससे प्राप्त ऊन सफेद रंग का होता है. इस भेड़ की नस्ल में सर्वाधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है.
मागरा
इस नस्ल की पहचान इसके मुंह के भाग से की जाती है, जो सफेद रंग का होता है तथा आँखों के चारों ओर हल्के भूरे रंग के धब्बे पाये जाते है. कान छोटे होते है और सींग नही होते है. इसकी ऊन की कालीन (चटाई) बनाई जाती है.
जैसलमेरी
यह राजस्थान की सर्वाधिक ऊन देने वाली भेड़ है. मुंह का भाग काला या गहरा भूरा होता है तथा नाक उभरी (रोमन नोज) हुई होती है.कान लम्बे, लटके हुए होते है जो चरते वक्त जमीन को छूते है. सबसे लंबी ऊन भी जैसलमेरी भेड़ से प्राप्त होती है.
मुजफ्फरनगरी
यह मध्यम से बड़े आकार की होती है तथा चेहरा व शरीर सफेद रंग का होता है. कान बड़े और लटके हुए होते है. इसकी पूंछ अन्य नस्लों की तुलना में काफी लंबी होती है और पैरो के निचले भाग तक पहुंचती है. पूरे शरीर के अलावा पेट पर व पांवों पर ऊन नही होते हैं. इसके ऊन का प्रयोग कालीन बनाने में किया जाता है.
नीलगिरी
यह मध्यम आकार की नस्ल है जिसके मुंह का भाग सफेद और नाक उभरी हुई होती है. कान बड़े और लटके हुए होते है. इस नस्ल से प्राप्त ऊन का प्रयोग कपड़ों की बुनाई में किया जाता है.
कश्मीर मेरिनो
इस नस्ल को भारत की कुछ सर्वश्रेष्ठ नस्लों की मेरिनो नस्ल से गर्भित करा कर तैयार किया गया है जिसमें मेरिनों की अनुवांंशकता 50-75 प्रतिशत तक हो सकती है. इस नस्ल से प्राप्त ऊन मुलायम प्रकार का होता है जिससे उच्च गुणवत्ता के पोषाक तैयार किये जाते हैं.
हिसारडेल
यह नस्ल भी उपर की भांति विकसित की गई है जिसका उपयोग ऊनी कपड़े बनाने में किया जाता है.
लेखक
अहमद फहीम, राजबीर सिंह, अरबिंद सिंह एवं राजपाल दिवाकर1
पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौ. विश्वविद्यालय
सहायक प्राध्यापक, पशुसूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय
आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या