कड़कनाथ (Kadaknath) मुर्गी की प्रजाति मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले की एक खास पहचान बन गई है. यहां के कट्ठीवाड़ा और आलीरापुर के घने जंगलों से निकलकर मुर्गी की इस खास ब्रीड ने देश-विदेश में अपनी एक अलग छाप छोड़ी है. आदिवासियों के बीच कालामासी के नाम से विख्यात कड़कनाथ (Kadaknath) का मांस खाने में बेहद स्वादिष्ट, पौष्टिक और आसानी से पचने वाला होता है.
मुर्गे के इस ख़ास ब्रीड की कलंगी, चोंच, चमड़ी, टांगे, नाखुन के साथ-साथ मांस भी एकदम काला होता है. कड़कनाथ के मांस में मेलानिन पिगमेंट (Melanin Pigment) की अधिकता होती है, इस कारण यह डायबिटीज और हार्ट पेशेंट के उत्तम आहार माना जाता है. संख्या में बेहद कम एवं आनुवांशिक विकृतियों के कारण एक समय कड़कनाथ का अस्तित्व खतरे में आ गया था. लेकिन झाबुआ के कृषि विज्ञान केंद्र के पिछले 10 सालों के प्रयासों के बाद आज देशभर में इसका पालन किया जा रहा है. वहीं, यह लघु और सीमान्त किसानों की आजीविका का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है.
भारत के अलावा चीन और इंडोनेशिया में भी पाया जाता है
कृषि जागरण से बात करते हुए हुए झाबुआ कृषि विज्ञान केंद्र के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. आई.एस. तोमर ने बताया, '' मुर्गी की यह ख़ास ब्रीड यहां के आदिवासी अंचल में पहले से पाली जाती रही है. भारत के अलावा चीन और इंडोनेशिया में कालामासी मुर्गे की नस्ल पाई जाती है.
उन्होंने बताया कि 2009-10 में इस ब्रीड के संरक्षण और संवर्धन पर झाबुआ कृषि विज्ञान केंद्र ने काम करना शुरू किया है. जिसके बाद इसके विशिष्ठ गुणों के बारे में पता चला. इससे पहले आदिवासी लोग इसका पालन करते थे. लेकिन उनका कहना था कि इसके चूजे अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह पाते हैं. वहीं विभिन्न विकृतियों के कारण बच्चों की मौत हो जाती है. इसके बाद संस्थान ने इस ख़ास ब्रीड पर काम शुरू किया. संस्थान की दस सालों की मेहनत के चलते आज यह ब्रीड न सिर्फ झाबुआ जिले बल्कि देश-विदेश तक प्रसिद्ध हो गई है.''
सी-फूड की तरह पौष्टिक होता है कड़कनाथ
डॉ. तोमर का कहना है, ''कड़कनाथ में अन्य नस्लों के मुर्गों की तुलना में अधिक मात्रा में प्रोटीन तत्व पाए जाते हैं. जहां अन्य नस्लों में 18 से 20 फीसदी प्रोटीन पाया जाता है, वहीं कड़कनाथ में 25 से 27 प्रतिशत तक प्रोटीन पाया जाता है. वहीं इसमें फैट और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बेहद कम पाई जाती है, इस वजह से यह आसानी से पच जाता है. दूसरी नस्लों में 13 से 25 प्रतिशत फैट पाया जाता है, जबकि कड़कनाथ में केवल 0.73 से 1.03 फीसदी ही फैट होता है. वहीं कड़कनाथ में सी फूड की तरह ओमेगा 3 फैटी एसिड पाया जाता है. जो हेल्थ के काफी फायदेमंद होता है. जबकि दूसरे मांस के स्त्रोत में ओमेगा 3 फैटी एसिड नहीं पाया जाता है. कड़कनाथ का सूप स्वास्थ्य के लिहाज काफी फायदेमंद होता है.''
कड़कनाथ की प्रमुख प्रजातियां
कड़कनाथ चिकन देखने में बेहद बेहद आर्कषक होता है. इसकी तीन प्रजातियां पाई जाती है, जिन्हें जेट ब्लैक, पैन्सिल्ड और गोल्डन के नाम से जाना जाता है. इन तीनों प्रजातियों में सबसे ज्यादा संख्या जेट ब्लैक की होती है. वहीं गोल्डन प्रजाति के कड़कनाथ बेहद कम संख्या में मिलते हैं. एक वयस्क नर कड़कनाथ का वजन 1.80 से 2.00 किलोग्राम तथा वयस्क मादा का वजन 1.25 से 1.50 किलोग्राम तक होता है. एक साल में कड़कनाथ मादा 60 से 80 अंडे देने में सक्षम है. अंडे का आकार मध्यम, देखने में हल्के भूरे गुलाबी होता है, जिसका वजन 30-35 ग्राम तक होता है.
कड़कनाथ पालन के लिए आवास प्रबंधन कैसे करें?
- कड़कनाथ शांत वातावरण में रहना पसंद करता है, इसलिए इसका आवास गांव, कस्बें या शहर से दूर होना चाहिए. आवास में पानी और बिजली की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए.
- पहाड़ी के ऊपर या पहाड़ी के तलछटी में इसके आवास का निर्माण नहीं करना चाहिए. आवास निर्माण करवाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मुर्गियों को पर्याप्त रोशनी मिलती रहे. लेकिन जरूरत से ज्यादा प्रकाश आवास के अंदर नहीं पहुंचना चाहिए. इसके लिए आवास की लंबाई पूर्व दिशा से पश्चिम की तरफ होनी चाहिए.
- आवास की ऊंचाई 12 से 15 फीट, खिड़की से फर्श की ऊंचाई 2 फीट, पैराफिट दीवार की ऊंचाई 1 से 1.5 फीट, आवास की चौड़ाई 20-25 फीट उपयुक्त होती है. ध्यान रहे शेड के आसपास पेड़ पौधे नहीं होना चाहिए. पानी के निकासी की उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए.
चूजे कहां से प्राप्त करें
डॉ. तोमर ने बताया कि ''कड़कनाथ के चूजे कृषि विज्ञान केंद्र (झाबुआ) से प्राप्त कर सकते हैं. एक दिन के चूजे 75 रुपए, 7 दिन के चूजे 80 रुपए और 15 दिन के चूजे 90 रुपए में मिलते हैं. वहीं वयस्क मुर्गी 700 तथा वयस्क मुर्गा 800 रुपए में मिलता है.''
कड़कनाथ कुक्कुट प्रबंधन में किन बातों का ध्यान रखें
मुर्गीपालन कम समय में अच्छा मुनाफा देने वाला व्यवसाय है, लेकिन कुक्कुट प्रबंधन में की गई लापरवाही के कारण आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में कुक्कुट प्रबंधन के दौरान इस बात का जरूर ध्यान रखें कि आवास की जितनी क्षमता है उतने ही चूजों का पालन करें. क्षमता से अधिक चूजों के पालन से कई तरह की बीमारियां शेड में दस्तक दे देती है. दरअसल, जरूरत से अधिक चुजों के पालन से शेड में बुरादा गीला हो जाता है, जिससे अमोनिया का निर्माण होता है. जो चूजों में सांस सें संबंधी बीमारियां उत्पन्न करते हैं. साथ चूजों पर काक्सीडियोसिस परजीवी और ई. कोलाई बैक्टीरिया हमला कर देते हैं. वहीं कुक्कुट आपस में पीकिंग यानी एक दूसरे को नोचना शुरू कर देते हैं.
कड़कनाथ चूजों को लाने से पहले की तैयारी
- शेड में मौजूद पुराना बुरादा और मुर्गे-मुर्गियों के पंखों को अच्छी तरह से साफ करके आवास से दूर फेंकना चाहिए.
- शेड की छतें, दीवारें, फर्श को ब्लीचिंग पाउडर की मदद से अच्छी तरह साफ करना चाहिए. वहीं जाली को फलेगमन की मदद से निर्जमिकृत कर लेना चाहिए.
- आवास को अच्छी तरह से साफ करने के बाद 24 घंटे के लिए खुला छोड़ दें. इसके बाद चूने और काॅपर सल्फेट के मिश्रण को फर्श पर अच्छी तरह से बिखेर दें. वहीं पानी आदि के लिए उपयोग किए जाने वाले ड्रम और टैंकों को अच्छी तरह से धोने के बाद चूने से पुताई कर लेना चाहिए.
- चूजों को दाना देने के लिए उपयोग किए जाने वाले बर्तनों को डिसइंफेक्टेंट से साफ करके स्प्रे करें. वहीं फर्श पर दो दिन पहले ही 2 इंच मोटी बुरादे की तह बना लेना चाहिए. वहीं चूजों के लिए दाने के रूप में मक्के का दलिया (चिक माइज़) देना चाहिए. वहीं बुरादे की तह पर अखबार बिछा देना चाहिए.
- चूजों के आने से पहले तापमान को अनुकूल बनाने के लिए ब्रुडर चालू कर देना चाहिए. सारी तैयारी के बाद आवास को बंद करके फ्यूमिगेशन (धूमन) की मदद से धुंआ करना चाहिए. इससे शेड में मौजूद सूक्ष्म जीव खत्म हो जाते हैं.
- शेड में अलग-अलग मौसम के हिसाब से परदों को उपयोग करना चाहिए. जैसे गर्मी में पतले, बारिश में प्लास्टिक और ठंड में मोटे परदों का उपयोग किया जा सकता है.
- मुर्गी फार्म की सभी तैयारी पूरी होने के बाद कम से कम 5 से 10 दिनों के लिए फॉर्म को खुला छोड़ दें.
कड़कनाथ चूजों के आने के बाद का प्रबंधन
यदि चूजों को सुबह मंगाया है तो चिक्स बॉक्स को खोलकर चूजों को बाहर निकालकर दाना खिलाना चाहिए. वहीं यदि शाम के समय लेकर आए है तो चूजों को चिक्स बॉक्स में ही रहने दें. हालांकि गर्मी के दिनों में लाए है तो चूजों को बाहर निकाल देना चाहिए. चूजों को मक्का का दलिया और इलेक्ट्राॅल युक्त पानी पिलाना चाहिए.
कड़कनाथ चुजों को 7 दिनों तक रखरखाव
पहले दिन-पहले दिन ब्रुडर का तापमान 90 से 96 डिग्री सेल्सियस तक रखें. चूजों को दाने और पानी का अभ्यास कराएं. एक हजार चूजों के लिए 8 से 10 किलो चिक मेज बुरादे पर बिछाए पेपर बुरक दें.
दूसरे दिन-दूसरे दिन से चूजों को चिक फीड देना शुरू कर देना चाहिए. दाने के अलावा पानी में चूजों को इलेक्ट्रॉल, केयर सी, एडी 3 ईसी और बी काम्पलेक्स देना चाहिए.
तीसरे दिन-दिन में एक बार पानी में प्रोबायोटिक्स, विटामिन, ई. केयर सी देना चाहिए. वहीं पानी में एंटीबायोटिक दवा देना शुरू करें. सभी चूजों को पीने के पानी की पर्याप्त व्यवस्था करना चाहिए.
चौथे दिन-चूजों को टहलने में आराम मिल सकें इसके लिए ब्रुडर की ऊंचाई बड़ा देना चाहिए.
पांचवे दिन-प्रीबायोटिक्स, विटामिन पानी में नियमित रूप से देना चाहिए.
छठे दिन-चिक मेज के लिए बिछाए गए पेपर को हटा दें. ब्रुडर की ऊंचाई बढ़ाकर उजाले के लिए अतिरिक्त बल्ब लगा दें.
सातवें दिन-सातवें दिन चूजों को लसोटा का टीका देना चाहिए. पानी में इलेक्ट्राल और ई. केयर सी दिन में एक बार जरूर देना चाहिए.
ब्रुडिंग के जरिए सही तापमान कैसे दें
शेड में चूजों के लिए पहले सप्ताह 35 से 37 डिग्री सेल्सियस तापमान रखना आवश्यक है. इसके बाद तापमान इतना होना चाहिए कि चूजें चिक गार्ड के अंदर आसानी से घूम फिर सकें. तापमान को 21 से 23 डिग्री सेल्सियस तक रखा जा सकता है. गर्मी के दिनों में चूजों के लिए गर्मी से बचाने के लिए पंखें लगाना चाहिए. खिड़कियों से गर्म लू न आए इसलिए बोरे या धान की पुआल से ढंक देना चाहिए. वहीं, सर्दी के दिनों ठंड से बचाने के लिए सिंगड़ी या हीटर का उपयोग किया जा सकता है.