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Updated on: 27 May, 2020 12:00 AM IST
Brahmi

ब्राह्मी की खेती किसानों को बड़ा मुनाफा दे सकती है. इसकी खेती गर्म और नमी वाले इलाकों में की जाती है. ब्राह्मी का पौधा इतना लाभकारी है कि इसका अंग-अंग व्यापार की नजर से महत्वपूर्ण है.

इसकी बीज, जड़ें, पत्ते, गांठों आदि की बाजार में विशेष मांग है. ब्राह्मी का उपयोग कई तरह की बीमारियों जैसे- अनीमिया, दमा, मूत्र वर्धक, कैंसर, रसौली और मिरगी के उपचार में किया जाता है. चलिए आपको इसकी खेती के बारे में बताते हैं.

ब्राह्मी बूटी

ब्राह्मी को वार्षिक जड़ी बूटी की श्रेणी में रखा गया है. इसकी लम्बाई 2-3 फीट तक हो सकती है. इसकी जड़ें गांठों में फैली होती हैं और इसके फूलों का रंग सफेद, पीला या नीला हो सकता है.

मिट्टी

इसकी खेती के लिए लगभग हर तरह की मिट्टी उपयुक्त है. वैसे सैलाबी दलदली मिट्टी में इसकी पैदावार सबसे अच्छी हो सकती है. दलदली इलाकों, नहरों और अन्य जल स्त्रोतों के आस-पास इसकी खेती से अच्छी उपज हो सकती है.

ज़मीन की तैयारी

ब्राह्मी की खेती के लिए सबसे पहले खेतों की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी और समतल बना लें. खेतों को जोतने के लिए हैरों या देशी हल का प्रयोग कर सकते हैं. ज़मीन को प्लाटों में बदलने के बाद तुरंत सिंचाई कर दें.

बिजाई

इसकी बिजाई का काम जून या जुलाई महीने में करें. बिजाई के लिए पनीरी वाले पौधों का रोपण् 20x20 सैं.मी. के फासले पर करना सही है.

सिंचाई

वर्षा ऋतु में इसको अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती, लेकिन गर्मियों में हर दूसरे सप्ताह और सर्दियों में हर तीसरे सप्ताह इसकी सिंचाई करनी चाहिए.

फसल कटाई

इसकी कटाई अक्तूबर-नवंबर महीने में करनी चाहिए. एक साल में 2-3 कटाई करना सही है.

कटाई के बाद इन्हें छांव में सुखाना चाहिए. इस सूखी हुई सामग्री को आप बाजार में बहुत सारे उत्पादों के लिए बेच सकते हैं.

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English Summary: Waterhyssop farming and profit know more about the Waterhyssop farming complete process
Published on: 27 May 2020, 02:17 IST

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