भारत के ज़्यादातर राज्यों में मानसून लगभग पहुंच चुका है और इसी के साथ किसान भी खरीफ फसल की बुवाई की तैयारी में जुट गए हैं. लेकिन ज़्यादातर किसान धान, मक्का, कपास, सोयाबीन जैसी पारंपरिक फसलों की बुवाई में लगे हुए हैं. इसी के साथ कई किसान ऐसे भी हैं जो परंपरागत फसलों की बुवाई के साथ औषधीय फसलों की खेती करके अपनी आय बढ़ा रहे हैं.
आपको बता दें कि यह समय औषधीय फसलों की खेती के लिए भी काफी अच्छा मना जाता है और इस समय में अगर आप पारंपरिक फसलों के बजाय औषधीय फसलों की खेती करेंगे तो अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. औषधीय फसलों की खास बात ये है कि इन फसलों की खेती में लागत कम आती है और मुनाफा अधिक होता है. इसके अलावा इन औषधीय फसलों की खेती को सरकार की ओर से प्रोत्साहन भी जा रहा है.
औषधीय फसलें कुछ इस प्रकार हैं:
सतावर की खेती करें(satavar Farming)
औषधीय फसलों में सबसे पहले हमारे सामने नाम सतावर का आता है. आपको बता दें कि सतावर की फसल का अपना एक विशिष्ट स्थान है क्योंकि इसकी मांग बाजार में बहुत है इसलिए आप इसकी खेती के ज़रिए अच्छा खासा पैसा कमा सकतें हैं. ये एक ऐसी फसल है जो कम लागत में अधिक कमाई दे सकती है. इस फसल के लिए लैटेराइट, लाल दोमट मिट्टी जिसमें उचित जल निकासी सुविधा हो तो ये अच्छी रहती है. इसकी फसल 18 महीने में तैयार होती है और इसकी जड़ें होती हैं जो कि मुख्य रूप से दवा बनाने में काम में आती हैं. सतावर की उपज को आयुर्वेदिक दवा कंपनियों को डायरेक्ट बेचा जा सकता है.
कौंच की खेती करें( kaunch Farming)
कौंच का पौधा एक आयुर्वेदिक औषधि है इसका हर एक अंग किसी न किसी रूप में औषधि के लिए प्रयोग किया जाता है. कौंच का उपयोग च्यवनप्राश, धातु पौष्टिक चूर्ण तथा शक्तिवर्धक औषधि बनाने में भी किया जाता है. कौंच की फसल को बीज के ज़रिए बोया जाता है और बारिश से पहले इसकी खेती सबसे उपयुक्त मानी जाती है. यह एक बेल के रूप में होने वाली फसल है जिसके लिए15 जून से 15 जुलाई तक का समय सबसे अनुकूल है.
ब्राह्मी की खेती करें(Brahmi Farming)
ब्राह्मी को आयुर्वेद में ब्रेन बूस्टर यानी कि आपके दिमाग को तेज करने वाली बताया गया है. इसका प्रयोग बाल बढ़ाने वाले तेलों के अलावा स्मरण शक्ति तेज करने वाली दवाओं में किया जाता है. बाजार में इसकी काफी मांग रहती है इसलिए किसान इससे काफी पैसा कम सकते हैं. ब्राह्मी की खेती उष्णकटिबंधीय(tropical) जलवायु में की जा सकती है इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान सबसे उपयुक्त होता है. ब्राह्मी के पौधे को जंगल में तालाबों, नदियों, नहरों और जलाशयों के किनारे उगाया जाता है. भारत में लगभग सभी राज्यों में इसकी खेती की जाती है. इस फसल को लगाने के बाद किसानों को तीन से चार साल बाद उपज मिलती है.
एलोवेरा की खेती करें(Aloe vera Framing)
एलोवेरा एक ऐसी औषधि जिसकी खेती बड़ी आसानी से की जा सकती है क्योंकि यह कहीं भी आसानी से जीवित रह लेता है.मार्केट में एलोवेरा का जूस और इससे बने उत्पादों की काफी डिमांड है कई कंपनियां तो एलोवेरा की कॉन्ट्रैक्ट खेती भी करवाती हैं इसलिए किसान इसे व्यवसाय के रूप में भी देख सकते हैं. इसकी की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. एलोवेरा के पौधे जुलाई-अगस्त में लगाना अच्छा रहता है. एलोवेरा की खेती सर्दियों के महीनों को छोड़कर पूरे साल की जा सकती है.
लेमनग्रास की खेती करें(Lemongrass Farming)
लेमनग्रास को हम सभी ने देखा या सुना होगा लेकिन हमे ये नहीं पता है कि इसकी खेती से भी पैसा कमाया जा सकता है. जी हां.. इसकी खेती से भी आप लाखों कम सकते हैं क्योंकि बाज़ार में इसकी काफी मांग है. यह एक पतली-लंबी घास वाला औषधीय पौधा है जिसकी पत्तियों और तेल से दवाइयां बनाई जाती हैं. इसकी पत्तियों को हाथ में लेकर मसलने पर नींबू जैसी महक आती हैं इसलिए इसका नाम लेमनग्रास रखा गया है. इसकी पत्तियों से बनने वाले पाउडर से हर्बल चाय बनाई जाती है और इसके अलावा लेमन ग्रास का उपयोग सुगंध वाला तेल बनाने में भी किया जाता है. लेमन ग्रास की खासियत यह है कि इसकी रोपाई एक बार करने के बाद पांच साल तक फसल ली जा सकती है. इसमें सिंचाई को छोडक़र किसी प्रकार की कोई लागत नहीं लगती है.एक वर्ष में लेमन ग्रास की चार से पांच कटाई की जाती है जिससे 35 से 40 क्विंटल तक प्रति बीघा उत्पादन मिल जाता है. एक बीघा की लेमन ग्रास से एक वर्ष में 27 से 28 लीटर तेल प्राप्त होता है. इसका औसतन भाव 1350 रुपए प्रति लीटर रहता है.