नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद करेंगे कृषि जागरण के 'मिलियनेयर फार्मर ऑफ इंडिया अवार्ड्स' के दूसरे संस्करण की जूरी की अध्यक्षता Millets Varieties: बाजरे की इन टॉप 3 किस्मों से मिलती है अच्छी पैदावार, जानें नाम और अन्य विशेषताएं Guar Varieties: किसानों की पहली पसंद बनीं ग्वार की ये 3 किस्में, उपज जानकर आप हो जाएंगे हैरान! आम को लग गई है लू, तो अपनाएं ये उपाय, मिलेंगे बढ़िया ताजा आम एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! Organic Fertilizer: खुद से ही तैयार करें गोबर से बनी जैविक खाद, कम समय में मिलेगा ज्यादा उत्पादन
Updated on: 9 December, 2019 12:00 AM IST

शतावरी एक कंदिल जड़ सहित बहुवर्षीय पौधा है. इसकी जड़े ताजी चिकनी होती है, लेकिन सूखने पर अधोमुखी झुर्रियां विकसित हो जाती है. यह एक बहुवर्षीय बढ़ने वाला पौधा है जिसके फूल जुलाई से अगस्त तक प्राय: खिलते है. इसकी खेती हेतु 600 - 1000 मिमी या इससे कम वार्षिक औसत वर्षा जरूरी होती है.

बुवाई हेतु मिट्टी और जलवायु

बुलाई - दोमट से चिकनी - दोमट, 6 -8  पीएच सहित.
अधिक उत्पादन के कारण बीज बेहतर होते है जो खेती में कम अंकुरण की क्षति पूर्ति करते है.
बीज मार्च से जुलाई तक एकत्र किये जा सकते है.

नर्सरी तकनीकी

पौध उगाना :

बीजों को खाद की अच्छी मात्रा से युक्त भलीभांति तैयार और उभरी नर्सरी क्यारियों में जून के पहले सप्ताह में बोया जाता है. क्यारियां आदर्शरूप से 10 मी. से 1 मी. के आकर में  होनी चाहिए. बीज पंक्ति में 5 -5 सेमी  की दूरी में बोये जाते है और बालू की एक पतली परत से ढके जाते है.  अंकुरों को उगाने के लिए एक हेक्टेयर फसल  के लिए लगभग 7 किग्रा बीजों की जरूरत होती है. शीघ्र और अधिक अंकुरण प्रतिशत को प्राप्त करने के लिए बीजावरण को मुलायम बनाने हेतु पानी या गोमूत्र में पहले से भिगोने की आवश्यकता होती है. बीज बोने  के 20 दिन के बाद अंकुरण प्रारम्भ होता है और 30 दिनों में पूरा हो जाता है.

खेत में रोपाई

भूमि की तैयारी और उर्वरक प्रयोग :

भूमि को गहरे हल से जोतना चाहिए और फिर उसे समतल करना चाहिए.
भूमि में मेड़ और कुंड़ लगभग 45 सेमी की दूरी पर बनाये जाते है.
लगभग 10  टन  खाद को रोपण से एक माह पहले मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाते है.
एक तिहाई नाइट्रोजन और फॉस्फेट तथा पोटाश की पूर्ण खुराक रोपाई से पहले पंक्तियों में 10 -12 सेमी तक की गहराई में डालनी  चाहिए.    

रोपाई :

पौध बीज बोने के 45  दिनों बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाती है तथा जुलाई में मानसून के प्रारम्भ में खेत में रोपे जा सकते है.

अंतर फसल प्रणाली :

शतावरी सामान्यता : एकफसल  के रूप में उगायी  जाती है लेकिन इसको कम प्रकाश वाले बागों में फलों के पेड़ों के साथ भी उगाया जा सकता है. पौधों को सहारे की आवश्यकता होती है. अत : खम्भे या झाड़ियां सहारे का काम करती है. 

निराई-गुड़ाई:

बची हुई दो तिहाई नाइट्रोजन को दो बराबर मात्राओं में सितम्बर और फरवरी  के अंत में मेड़ों पर प्रयोग किया जाता है. उर्वरक पंक्तियों के बीच में छितराया जाता है और मिट्टी  में मिलाया जाता है तथा उसके बाद सिंचाई की जाती है. खेत को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए निराई व गुड़ाई क्रियायें  जरूरी है.

सिंचाई :

पौध को खेत में जमाने के लिए रोपाई के तुरंत बाद एक बार सिंचाई अवश्य करनी चाहिए.
दूसरी सिंचाई 7 दिनों बाद की जाती है. यदि 15 से अधिक दिनों तक कोई वर्षा या सूखे का दौर  रहता है तो एक और बार सिंचाई करनी चाहिए.

रोग व कीट नियंत्रण :

कोई गंभीर कीट परजीवी या रोग इस फसल में नहीं देखा गया है. 

इस पर सब्सिडी :

इसकी खेती करने वाले किसानों को राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की ओर  से 30 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है.

ये भी पढ़े: जटामांसी की उन्नत खेती ऐसे करें, मिलेगी 75 प्रतिशत सब्सिडी

English Summary: Shatavari farming: This is how to cultivate asparagus, you will get this much subsidy
Published on: 09 December 2019, 02:09 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now