नई तकनीक और आधुनिक कृषि संसाधनों की वजह से कृषि क्षेत्र में अपार संभावनाएं है. वहीं देश के प्रगतिशील किसान भी परंपरागत खेती से हटकर आधुनिक खेती कर रहे हैं. सरकार भी किसानों की आय को दोगुना करने के लिए औषधीय, बागवानी और आधुनिक खेती के लिए प्रेरित कर रही है.
जहां परंपरागत खेती में किसान अपनी लागत भी नहीं निकाल पाते हैं वहीं दूसरी तरफ ब्राह्मी की खेती (Brahmi Farming) से किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है. गौरतलब है कि ब्राह्मी एक औषधीय पौधा है और आयुर्वेद के लिहाज से बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है. एक तरफ यह ब्रेन बूस्टर कहा जाता है तो दूसरी तरफ अनेक दवाइयों के निर्माण में ब्राह्मी का उपयोग किया जाता है.
इन राज्यों में होती है खेती (Farming is done in these states)
औषधीय गुणों से भरपूर ब्राह्मी की खेती भारत के अलावा यूरोप, आस्ट्रेलिया, उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के कई देेेशों में होती है. उष्णकटिबंधीय जलवायु में ब्राह्मी की खेती अच्छी होती है. सामान्य तापमान इसकी खेती के लिए उत्तम माना जाता है.
विभिन्न जलस्त्रोतों जैसे नहर, नदी के किनारे ब्राह्मी आसानी से उग आता है. देश के लगभग सभी राज्यों में ब्राह्मी की खेती की जाती है. गौरतलब है कि आयुर्वेद में ब्राह्मी के उपयोग को देखते हुए इसकी अच्छी खासी मांग है. ऐसे में ब्राह्मी की खेती किसानों के लिए मोटी कमाई का जरिया बन सकता है. वहीं इसकी मांग को ध्यान में रखते हुए सरकार भी किसानों को प्रोत्साहित कर रही है.
एक बार बोये, तीन-चार फसलें लें (Sow once, get three or four crops)
धान की तरह ही पहले इसकी नर्सरी तैयार की जाती है. इसके बाद पौधों की रोपाई की जाती है. ब्राह्मी की रोपाई आमतौर पर मेड़ बनाकर की जाती है. इसके लिए मेड़ से मेड़ की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर रखना चाहिए. वहीं पौधे से पौधे की दूरी आधा फीट उचित होती है. जिससे इसकी पैदावार अच्छी होती है.
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रोपाई के बाद सिंचाई और निराई गुड़ाई सही समय पर करना चाहिए. ब्राह्मी की पहली फसल रोपाई के चार महीने कटाई के लिए तैयार हो जाती है. एक बार रोपाई करने के बाद किसान इससे तीन से चार फसल ले सकते हैं. इसकी जड़ो और पत्तियों को बेचकर मोटी कमाई की जा सकती है.