किसान कठोर परिश्रम के बाद अनाज को पैदा करता है और भाण्डारण के दौरान उपज का काफी हिस्सा इसमें लगने वाले कीटों के द्वारा नष्ट कर दिया जाता है. भण्डार कीटों में 19 प्रकार के कीट हानि पहुंचाते हैं. इसलिए देश को खाद्यान्न में आत्मनिर्भऱ बनाने के लिए भण्डारण के वक्त नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को पहचान कर उनको नियंत्रण करना आवश्यक है. भण्डार गृह में लगने वाले कीट अनाज की मात्रा को खत्म कर देते हैं. औऱ इसके साथ-साथ उनके पौष्टिक गुणों को भी नष्ट कर देते हैं. इस लेख में कीटों द्वारा क्षति की प्रकृति के बारे में बताया गया है.
भण्डार गृह के मुख्य कीट (Main pests of warehouse)
1. सुरसुरी (Red Rust Floor Beetle)
इसे आटे की सुरसुरी भी कहा जाता है. यह कीट भारत में हर जगह पाया जाता है. यह कीट पूर्ण दानों को नुकसान नहीं पहुंचाता यह केवल कटे हुए दानों या अन्य कीटों के द्वारा ग्रसित दानों को ही नुकसान पहुंचाता है.
जब इस कीट की संख्या अधिक हो जाती है तो आटा पीले रंग का हो जाता है और इसमें फफूंद विकसित हो जाता है तथा एक प्रकार की अप्रिय गंध आने लगती है और आटा खाने योग्य नही रहता. इस कीट के प्रौढ. और सूण्डी दोनों ही हानि पहुंचाते हैं. प्रौढ. कीट छोटे लाल भूरे रंग के होते हैं. ये कीट आटा या सूजी आदी को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं.
2. चावल का घुन (Rice Weevil)
इस कीट की सूण्डी तथा प्रौढ. दोनो ही नुकसान पहुंचाते हैं. परन्तु सूण्डी ज्यादा नुकसान पहुंचाती है. प्रौढ कीट भूरे रंग का लम्बा व बेलनाकार होता है. इसके सिर के आगे लम्बी सूण्ड निकली रहती है मादा कीट दाने में एक छोटा छिद्र बनाकर उसमें अन्डा देती है जिसमें से सूण्डी निकलने के बाद दाने के अन्दर के समस्त भाग को खा जाती है. इस कीट का प्रकोप होने से दाने खोखले हो जाते है और खाने योग्य नही रहते हैं. यह कीट चावल के अलावा गेहूं, मक्का आदि को भी नुकसान पहुंचाता है.
3. लधु धान्य बेधक (Lesser Grain Borer)
इस कीट की सूण्डी और प्रौढ दोनो ही नुकसान पहुंचाते हैं. इसकी सूण्डी लगभग 3 मि.मी. लम्बी, गंदे से सफेद रंग की होती है. और हल्के भूरे रंग का सिर होता है. प्रौढ कीट छोटा बेलनाकार गहरा भूरा अथवा काले रंग के शरीर वाला होता है तथा इसका धड़ नीचे की तरफ होता है. प्रौढ़ दाने में टेढ़े-मेंढ़े छेद करके उन्हे पाऊडर में बदल देते है जिसकी वजह से केवल भूसा और आटा ही शेष रह जाता है. ये कीट खाते कम है, नुकसान ज्यादा पहुंचाते हैं. सूण्डी दाने के स्टार्च को खाती है और केवल छिलके को ही छोड़ती है. इस कीट का आक्रमण गेहूं, चावल, ज्वार, मक्का, बाजरा में अधिक होता है.
4. गेहूं का खपरा (Khapra Beetle)
इस कीट की सूण्डी ही अकेली नुकसान पहुंचाती है. यह कीट सामान्यतः वर्ष भर नुकसान पहुंचाते हैं. परन्तु अधिक नुकसान जुलाई से अक्टूबर महीने में करते हैं. इसकी सूण्डी दाने के भ्रूण वाले भागों को खाती है. ये दाने के अन्दर प्रवेश नहीं करते, बाहर वाले भाग में ही नुकसान करते हैं. इसका प्रौढ़ स्लेटी भूरे रंग का होता है. इसका शरीर अंडाकार, सिर छोटा और सिकुड़ने वाला होता है. यह भी गेहूं, चावल, मक्का, ज्वार, जौ आदि को नुकसान पहुंचाते हैं.
5. दालो का घुन (Pulse Beetle)
इस कीट को ढ़ोरा, घुन भी कहा जाता है. इस कीट का प्रकोप खेत और भण्डार गृह दोनों जगह होता है इस कीट की सूण्डी नुकसान पहुंचाती है. जब फसल खेत में होती है तब ही इसका प्रकोप शुरु हो जाता है. मादा फलियों के ऊपर अण्डे देती है. अण्डे से सूण्डी निकलती है तो यह फली में छेद करके प्रवेश कर जाती है तथा दानों को खाती रहती है.
जिस जगह से सूण्डी दानों में घुसती है वह बन्द हो जाता है तथा दाना बाहर से स्वस्थ दिखता है इस तरह से ग्रसित दानें भण्डार गृह में आ जाते हैं. ये कीट भण्डार गृह में दरारों में छिपे रहते हैं. जब दालें भण्डार गृह में रखी जाती है उस समय मादा उन पर अण्डे देती हैं जो दानों की सतह पर चिपके हुए नजर आते हैं. इसका प्रकोप जुलाई से सितम्बर दो महीनों में ज्यादा होता है. प्रौढ कीट का रंग भूरा होता है. इनका शरीर आगे से नुकीला तथा पीछे की तरफ चौड़ा होता है.
रूमी रावल, तरूण वर्मा एवं आदेश कुमार1, कीट विज्ञान विभाग,
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार।
कृषि विज्ञान केन्द्र, भरारी, झॉसी