प्रदेश के आदिवासियों को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए प्रदेश की कमलनाथ सरकार एक एकड़ जमीन देने की तैयारी कर रही है. इस भूमि पर आदिवासी किसान हर्बल खेती करेंगे और मेडिशन प्लांट लगांएगे. सरकार पौधों से लेकर उत्पाद को खरीदने तक को लेकर बैंक की गांरटी भी लेगी. आदिवासियों को भूमि के आवंटन हेतु जमीनों की पड़ताल शुरू कर दी गई है. इसके लिए लाभार्थियों का चयन पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर ही किया जाएगा. दरअसल, परंपरागत रूप से खेती करने वाले आदिवासी औषधीय पौधों के बारे में बेहतर तरीके से जानते है. वह इनका इस्तेमाल दवा के रूप में करते है. इसीलिए इस हुनर को निखारने के लिए आदिवासी क्षेत्र में सरकार हर्बल खेती को बढ़ावा देने जा रही है. सरकार उसे जमीन को विकसित किए जाने में आने वाले खर्च को वहन करेगी. इन आदिवासी किसानों को सीधे लघुवनोपज संघ समितियों से जोड़ा जाएगा.
इनकी खेती होगी
आदिवासी किसानों को अश्वगंधा, तुलसी, ऐलोवेरा की खेती पर अनुदान देने का कार्य किया जाएगा. परंपरागत खेती से इतर हटकर औषधीय खेती से जोड़ने के लिए यह योजना शुरू करने का कार्य किया गया है. किसानों की आय में इजाफा करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाएगा. इनके अलावा अतीश, कुठ, कुटकी, करंजा, कपिकाजु और शंखपुष्पी जैसे पौधों से आदिवासियों की जिंदगी बदल सकती है.
गेंहू के मुकाबले 10 गुना कमाई
किसान जब भी गेहूं या धान की खेती करते है तो महज 30 हजार प्रति एकड़ से कम कमाई होती है. लेकिन हर्बल खेती से औसतन साल में तीन लाख रूपए कमाए जा सकते है. हर्बल पौधों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाईयों और पर्सनल केयर उत्पाद बनाने में होता है. आकलन की बात करें तो देश में हर्बल का कारोबार करीब 50 हजार करोड़ रूपये का है, जिससे सालाना 15 फीसदी दर से वृद्धि हो रही है. जड़ी बूटी और सुगंधित पौधों के लिए प्रति एकड़ बुआई का रकबा अभी भी इसके मुकाबले कम है.
आदिवासियों को मुख्य धारा में लाना लक्ष्य
आदिवासियों को मुख्य धारा में लाने के लिए उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम बनाया जा रहा है. इसी कड़ी में उनको वन भि देकर हर्बल खेती को करवाने का प्रयास दिया जा रहा है. वह उनके उत्पाद को खरीदने की भी गारंटी देंगे. मंत्री का कहना है कि इस प्रस्ताव को जल्द ही कैबिनेट में रखा जाएगा.