आयुर्वेदिक और यूनानी दवाइयों के निर्माण के लिए सफेद मूसली बेहद उपयोगी मानी जाती है. इसमें बड़ी मात्रा कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, सेपोनिन, सोडियम, कैल्शियम, पोटेशियम, फास्फोरस और जिंक जैसे तत्व पाए जाते हैं. भारत में सफेद मूसली की खेती राजस्थान, पंजाब, यूपी, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र में प्रमुखता से की जाती है. तो आइये जानते हैं सफेद मूसली की खेती की पूरी जानकारी -
सफेद मूसली की खेती लिए जलवायु व मिट्टी (Climate and soil for the cultivation of Safed Musli)
उन क्षेत्रों में सफेद मूसली की खेती की जा सकती है जहां की जलवायु आर्द्र और 500 से 1000 मिलीलीटर बारिश हुई हो, वहीं इसकी खेती के लिए जीवांश युक्त मिट्टी जो पानी को सोखने की क्षमता रखती हो.
सफेद मूसली की खेती लिए खेत की तैयारी (Field preparation for Safed Musli cultivation)
सबसे पहले खेत की गहरी जुताई प्लाऊ से की जाती है. इसके बाद खेत को समतल बनाने के लिए कल्टीवेटर से जुताई की जाती है. इसके बाद 3 से 3.5 फीट चौड़ी और डेढ़ फीट ऊंची बेड तैयार की जाती है, वहीं पानी की निकासी के लिए नालियों का निर्माण करना चाहिए.
सफेद मूसली की खेती लिए प्रमुख किस्में (Major Varieties for Safed Musli Cultivation)
सफेद मूसली की चार किस्मों की खेती की जाती है जो इस प्रकार है- क्लोरोफाइटम लक्सम, क्लोरोफाइटम बोरिविलयनम, क्लोरोफाइटम अरुंडीनसियम तथा क्लोरोफाइटम ट्यूब्रोसम. इनमें से भारत में क्लोरोफाइटम बोरिविलयनम तथा क्लोरोफाइटम ट्यूब्रोसम किस्मों की खेती सबसे ज्यादा की जाती है.
सफेद मूसली की खेती लिए बुवाई का सही समय (Right time of sowing for Safed Musli cultivation)
खरीफ मौसम में सफेद मूसली की खेती की जाती है. इसकी बुवाई का सही समय जून-जुलाई महीना होता है. इसकी जड़ों को तैयार बेड 15 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है. जड़ों को 5 सेंटीमीटर की गहराई पर लगाना चाहिए.
सफेद मूसली की खेती लिए सिंचाई (Irrigation for Safed Musli Cultivation)
इसके अंकुरण के लिए सिंचाई बेहद आवश्यक है ऐसे में खेत की नमी के अनुसार तुरंत या फिर 5 से 6 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए. वहीं पहली निराई गुड़ाई 15 से 20 दिनों के बाद करें.
सफेद मूसली की खेती लिए कंद एकत्रीकरण (Tuber Collection for Safed Musli Cultivation)
50 से 70 दिनों बाद सफेद मूसली के फल बन जाते हैं जिन्हें सुखाया जाता है और बीजों को इकट्ठा किया जाता है, वहीं इसके पौधे की पत्तियां सुख कर पीली पड़ने लगे तब एक हल्की सिंचाई करके कंद को निकाल लेते हैं, वहीं उपज की जाये तो प्रति हेक्टेयर से लगभग 20 क्विंटल कंद प्राप्त होता है. जिससे दो से ढाई क्विंटल सफेद मूसली प्राप्त होती है.