Maize Farming: रबी सीजन में इन विधियों के साथ करें मक्का की खेती, मिलेगी 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार! पौधों की बीमारियों को प्राकृतिक रूप से प्रबंधित करने के लिए अपनाएं ये विधि, पढ़ें पूरी डिटेल अगले 48 घंटों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में घने कोहरे का अलर्ट, इन राज्यों में जमकर बरसेंगे बादल! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 26 December, 2017 12:00 AM IST

लहसुन एक महत्त्वपूर्ण व पौष्टिक कंदीय सब्जी है. इस का प्रयोग आमतौर पर मसाले के रूप में कियाजाता है. लहसुन दूसरी कंदीय सब्जियों के मुकाबले अधिक पौष्टिक गुणों वाली सब्जी है. यह पेट के रोग, आँखों की जलन, कण के दर्द और गले की खराश वगैरह के इलाज में कारगर होता है. हरियाणा की जलवायु लहसुन की खेती हेतु अच्छी है.

लहसुन की उन्नत किस्में

जी 1

 इस किस्म के लहसुन की गांठे सफेद, सुगठित व मध्यम के आकार की होती हैं. हर गांठ में 15-20 कलियाँ पाई जाती हैं. यह किस्म बिजाई के 160 – 180 दिनों में पक कर तैयार होती है. इस की पैदावार 40 से 45 क्विंटल प्रति एकड़ है.

एजी 17

 यह किस्म हरियाणा के लिए अधिक माकूल है. इस की गांठे सफेद व सुगठित होती है. गांठ का वजन 25-30 ग्राम होता है. हर गांठ में 15-20 कलियाँ पाई जाती हैं. यह किस्म बिजाई के 160-170 दिनों में पक कर तैयार होती है. पैदावार लगभग 50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.

मिट्टी और जलवायु

वैसे लहसुन की खेती कई किस्म की जमीन में की जा सकती है, फिर भी अच्छी जल निकास व्यवस्था वाली रेतीली दोमट मिट्टी जिस में जैविक पदार्थों की मात्रा अधिकं हो तथा जिस का पीएच मान 6 से 7 के बीच हो, इस के लिए सब से अच्छी हैं. लहसुन की अधिक उपज और गुणवत्ता  के लिए मध्यम ठंडी जलवायु अच्छी होती है.

बिजाई का समय

लहसुन की बिजाई का सही समय सितंबर के आखिरी हफ्ते से अक्टूबर तक होता है.

बीज की मात्रा

 लहसुन की अधिक उपज के लिए डेढ़ से 2 क्विंटल स्वस्थ कलियाँ प्रति एकड़ लगती हैं. कलियों का व्यास 8-10 मिली मीटर होना चाहिए.

बिजाई की विधि

 बिजाई के लिए क्यारियों में कतारों दूरी 15 सेंटीमीटर व कतारों में कलियों का नुकीला भाग ऊपर की ओर होना चाहिए और बिजाई के बाद कलियों को 2 सेंटीमीटर मोटी मिट्टी की तह से ढक दें.

खाद व उर्वरक

खेत की तैयारी के समय 20 टन गोबर की सड़ी हुई खाद देने के अलावा 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश रोपाई से पहले आखिरी जुताई के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएँ. 20 किलोग्राम नाइट्रोजन बिजाई के 30-40 दिनों के बाद दें.

सिंचाई

 लहसुन की गांठों के अच्छे विकास के लिए सर्दियों में 10-15 दिनों के अंतर पर और गर्मियों में 5-7 दिनों के अंतर पर सिंचाई होनी चाहिए.

अन्य कृषि क्रियाएँ व खरपतवार नियंत्रण

 लहसुन की जड़ें कम गहराई तक जाती हैं. लिहाजा खरपतवार की रोकथाम हेतु 2-3 बार खुरपी से उथली निराई गुड़ाई करें. इस के अलावा फ्लूक्लोरालिन 400-500 ग्राम (बासालिन 45 फीसदी, 0.9-1.1 लीटर) का 250 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई से पहले छिड़काव करें या पेंडीमैथालीन 400-500 ग्राम (स्टोम्प 30 फीसदी, 1.3-1.7 लीटर) का 250 लीटर पानी में घोल बना कर बिजाई के 8-10 दिनों बाद जब पौधे सुव्यवस्थित हो जाएँ और खरपतवार निकलने लगे, तब प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें.

गांठो की खुदाई

फसल पकने के समय जमीन में अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए, वर्ना पत्तियाँ फिर से बढ़ने लगती हैं और कलियाँ का अंकुरण हो जाता है. इस से इस का भंडारण प्रभावित हो सकता है.

पौधों की पत्तियों में पीलापन आने व सूखना शुरू होने पर सिंचाई बंद कर दें. इस के कुछ दिनों बाद लहसुन की खुदाई करें. फिर गांठों को 3 से 4 दिनों तक छाया में सुखाने के बाद पत्तियों को 2-3 सेंटीमीटर छोड़ कर काट दें या 25-30 गांठों की पत्तियों को बांध कर गूछियों बना लें.

भंडारण

लहसुन का भंडारण गूच्छीयों के रूप में या टाट की बोरियों में या लकड़ी की पेटियों में रख कर सकते हैं. भंडारण कक्ष सूखा व हवादार होना चाहिए. शीतगृह में इस का भंडारण 0 से 0.2 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान व 65 से 75 फीसदी आर्द्रता पर 3-4 महीने तक कर सकते हैं.

पैदावार

 इस की औसतन उपज 4-8 टन प्रति हेक्टेयर ली जा सकती है.

बीमारियाँ व लक्षण

 आमतौर पर लहसुन की फसल में बैगनी धब्बा का प्रकोप हो जाता है. इस के असर से पत्तियों परजामुनी या गहरे भूरे धब्बे बनने लगते हैं. इन धब्बों के ज्यादा फैलाव से पत्तियाँ नीचे गिरने लगती हैं. इस बीमारी का असर ज्यादा तापमान और ज्यादा आर्द्रता में बढ़ता जाता है. इस बीमारी की रोकथाम के लिए इंडोफिल एम् 45 या कॉपर अक्सिक्लोराइड 400-500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से ले कर 200-500 लीटर पानी में घोल कर और किसी चपकने वाले पदार्थ (सैलवेट 99, 10 ग्राम, ट्रीटान 50 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर ) के साथ मिला कर 10-15 दिनों के अन्तराल पर छिड़कें.

English Summary: Advanced farming of garlic
Published on: 25 December 2017, 11:50 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now