Desi Cow Breeds: भारत में डेयरी व्यवसाय कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है, और यह देश के ग्रामीण इलाकों में लाखों लोगों की आजीविका का प्रमुख स्रोत है. यह न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाता है, बल्कि महिलाओं को रोजगार और आत्मनिर्भरता के कई अवसर प्रदान करता है. डेयरी उद्योग ने ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने में मदद मिल रही है. यही वजह है कि हाल ही में, इसी दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए, भारत के केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने 'श्वेत क्रांति 2.0' की शुरुआत की, जो डेयरी उद्योग को एक नई दिशा देने का उद्देश्य रखती है.
इस पहल के तहत, दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं के सशक्तिकरण और कुपोषण के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है. यह पहल ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए एक नई क्रांति की तरह देखी जा रही है. ऐसे में यदि आप एक डेयरी किसान हैं और अपनी आमदनी में वृद्धि हेतु अधिक दूध देने वाली देसी नस्लों की गायों की तलाश कर रहे हैं, तो आप इन 10 बेहतरीन देसी नस्लों की गायों (Desi Cow Breeds) का पालन कर सकते हैं, जो दुग्ध उत्पादन में अव्वल मानी जाती हैं:-
राठी गाय (Rathi Cow)
राठी नस्ल की गाय, जिसे 'राजस्थान की कामधेनु' के नाम से भी जाना जाता है, देश की प्रमुख दुधारू नस्लों में से एक है. यह गाय किसी भी जलवायु में आसानी से ढल जाती है और प्रतिदिन 7 से 12 लीटर तक दूध देती है. अगर इसे अच्छी देखभाल और पोषण दिया जाए, तो यह गाय प्रतिदिन 18 लीटर तक दूध देने में सक्षम है. यह राजस्थान के बीकानेर और गंगानगर जिलों में विशेष रूप से पाई जाती है.
रेड सिंधी गाय (Red Sindhi Cow)
रेड सिंधी गाय को 'लाल सिंधी' के नाम से भी जाना जाता है. यह नस्ल विशेष रूप से अपने उच्च दुग्ध उत्पादन के लिए जानी जाती है. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के अनुसार, यह गाय एक ब्यांत में औसतन 1,840 लीटर दूध देती है, और प्रतिदिन 12 से 20 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है. यह गाय विशेष रूप से कर्नाटक, महाराष्ट्र, और तमिलनाडु में पाई जाती है.
हरियाणवी गाय (Hariana Cow)
हरियाणवी नस्ल की गाय, जो मुख्य रूप से हरियाणा के रोहतक, हिसार, और करनाल जिलों में पाई जाती है, अपनी सहनशीलता और उच्च दूध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है. यह गाय खान-पान में कमी के बावजूद 8 से 10 लीटर प्रतिदिन दूध देती है. इसके अलावा, इस नस्ल के बैल अच्छे भार वाहक होते हैं और खेती के काम में भी इस्तेमाल किए जाते हैं.
थारपारकर गाय (Tharparkar Cow)
थारपारकर नस्ल की गाय, जो राजस्थान के थार क्षेत्र में पाई जाती है, अपने उच्च दूध उत्पादन और कठिन मौसम सहने की क्षमता के लिए जानी जाती है. यह गाय प्रतिदिन 12 से 16 लीटर दूध देती है और एक ब्यांत में औसतन 1,749 लीटर तक दूध देती है. इसकी विशेषता यह है कि यह अत्यधिक गर्मी और सर्दी दोनों में दूध देती है.
बेलाही गाय (Belahi Cow)
बेलाही गाय को 'मोरनी' या 'देसी' भी कहा जाता है. यह छोटी नस्ल की गाय छोटे किसानों के लिए बेहद लाभकारी है क्योंकि यह कम खर्च में भी अच्छा दूध उत्पादन करती है. यह गाय औसतन 1,014 लीटर तक दूध देती है, जबकि अधिकतम 2,092 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है. यह ज्यादातर हरियाणा के अंबाला और यमुनानगर में पाई जाती है.
श्वेत कपिला गाय (Shwet Kapila Cow)
यह गाय गोवा के उत्तर और दक्षिण जिलों में पाई जाती है और अपनी दूध उत्पादन क्षमता के लिए जानी जाती है. यह नस्ल एक ब्यान्त में औसतन 510 लीटर दूध देती है. इसके दूध की गुणवत्ता उच्च मानी जाती है, और यह गाय दुग्ध उत्पादन के अलावा गोबर और जैविक खाद के लिए भी उपयोगी मानी जाती है.
गिर गाय (Gir Cow)
गिर गाय गुजरात की एक महत्वपूर्ण नस्ल है और इसकी ऊंचाई 5-6 फुट तक होती है. यह गाय प्रतिदिन 12 से 20 लीटर दूध देती है और इसके दूध की गुणवत्ता उत्कृष्ट होती है. इसे गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर पाला जाता है.
मालवी गाय (Malvi Cow)
मालवी नस्ल की गाय अपनी सुंदरता और दूध देने की क्षमता के लिए जानी जाती है. यह गाय एक ब्यांत में लगभग 916 किलोग्राम दूध देती है. यह मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में विशेष रूप से पाई जाती है और छोटे किसानों के लिए एक आदर्श विकल्प मानी जाती है.
साहिवाल गाय (Sahiwal Cow)
साहिवाल गाय उत्तरी भारत में सबसे ज्यादा पाली जाने वाली नस्लों में से एक है. यह गाय प्रतिदिन 10 से 20 लीटर तक दूध देती है और इसकी देखभाल सही तरीके से करने पर यह 40-50 लीटर तक भी दूध दे सकती है. इसकी उत्पत्ति पाकिस्तान के साहीवाल जिले में मानी जाती है, लेकिन अब यह पूरे भारत में पाई जाती है.
गंगातीरी गाय (Gangatiri Cow)
गंगातीरी गाय विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ जिलों में पाई जाती है. यह नस्ल प्रतिदिन 8 से 16 लीटर तक दूध देती है और इसके दूध की गुणवत्ता बहुत अच्छी मानी जाती है. यह गाय खासकर कुपोषण को दूर करने और आर्थिक रूप से किसानों की स्थिति सुधारने में मदद करती है.
मालूम हो कि इन नस्लों की गायें देश के विभिन्न हिस्सों में आसानी से पाली जा सकती हैं और इन्हें स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित किया जा सकता है. इन गायों से अधिक दूध प्राप्त कर किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं और आत्मनिर्भर बन सकते हैं.