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Updated on: 19 April, 2021 12:00 AM IST
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भारत में डेयरी फार्मिंग आज एक लाभदायक व्यवसाय बन चुका है. देश में युवा वर्ग डेयरी फार्मिंग के व्यवसाय की ओर आकर्षित हो रहा हैं, इसका मुख्य कारण इस व्यवसाय  का अत्यन्त लाभकारी होना है. साथ ही इस व्यवसाय  हेतु राज्य एवं केंद्र सरकारें ऋण और सब्सिडी के माध्यम से मदद भी कर रही है. कोई भी व्यक्ति थोड़ा ज्ञान प्राप्त करके डेयरी फार्म के व्यवसाय को शुरू कर सकता है.

इस लेख का मुख्य उदेश्य किसान भाइयों को यह जानकारी देना है कि डेयरी फार्म के रोजगार को कैसे लाभकारी बनाया जा सकता है. सबसे पहले किसान भाइयों को यह जानना जरूरी है कि  डेयरी व्यवसाय एक बड़ा ही चुनौतीपूर्ण और मेहनत वाला कार्य है. क्योंकि इसमें आपको चैबीसों घन्टे उपलब्ध रहकर विभिन्न प्रकार के कार्यों पर ध्यान रखना पड़ता हैं. परन्तु यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें मेहनत करके और कार्यो पर ठीक से नजर रखते हुए कम पूंजी लगाकर भी अधिक लाभ कमाया जा सकता है.          

किसी डेयरी फार्म व्यवसाय की सफलता मुख्यतः इस बात पर निर्भर करती है कि इसके लिए योजना कितनी अच्छी प्रकार से बनाई गयी है. योजना में यह निश्चित हो जाना चाहिए कि  कितने पशुओं से डेयरी फार्म शुरू करना है, दूध और अन्य उत्पादों का विपणन कहां और किस प्रकार करेंगे, कितने कर्मचारियों की आवश्यक्ता पड़ेगी, कितने बजट की आवश्यक्ता होगी, कितना लाभ कमाना चाहते हैं इत्यादि. डेयरी फार्मिंग व्यवसाय में आगे बढने से पहले आवश्यक है कि आप विशेषज्ञों तथा इस व्यवसाय में पहले से जुड़े हुए अनुभवी लोगों से परामर्श कर आवश्यक जानकारी और ज्ञान प्राप्त कर लें.

जब भी हम डेयरी फार्म को फायदेमन्द बनाने की बात करते हैं तो डेयरी फार्म चलाने के लिए 5 महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में जानना अति आवश्यक हो जाता है, जैसे उत्पादन एवं उत्पाद प्रबन्धन, पोषण प्रबन्धन, प्रजनन प्रबन्धन, स्वास्थ्य प्रबन्धन तथा मानव संसाधन प्रबन्धन. अब हम विभिन्न पहलुओं को एक-एक कर के विस्तार से बात करते हैं. 

उत्पादन एवं उत्पाद प्रबन्धन ( प्रोडक्सन एंड प्रोडक्ट मैनेजमेंट)

सबसे पहले हम उत्पादन एवं उत्पाद प्रबन्धन को विस्तार से समझते हैं. यहाँ पर जो भी बातें बताई जा रही हैं वह एक आधुनिक डेरी फार्म पर प्रयोग की जाने वाली उन्नत प्रजाति की गायों के लिए हैं. जब भी हम उत्पादन प्रबन्धन की बात करते हैं तो इसमें हमारा सीधे-सीधे यह नियम होना चाहिए कि कम से कम 60 प्रतिशत पशु हर वक्त दूध देने की अवस्था में हों. बाकी जानवर चाहे ड्राई अवस्था में हों या किसी भी अन्य अवस्था में हों. इसके अलावा एक थम्ब रूल यह भी होना चाहिए कि यदि हम 100 रूपये पशु आहार पर खर्च करते हैं, तो अवश्य ही हमें 150 रूपये का दूध मिलना चाहिए. क्योंकि जब हम पूरे फार्म की बात कर रहे होते हैं तो फार्म पर जो भी मूल रूप से फायदा होना होता है.

वह आने वाली जेनेरेशन (बछिया या बछड़ो) के रूप में होता है. दूध की कीमत से हमें मुख्य रूप से फार्म के खर्चो को पूरा करना होता है, जैसे आहार, दवाइयाँ, लेबर खर्च, बिजली खर्च इत्यादि. इसलिए हमारा विशेष ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि उत्पादन लागत से कम नहीं होनी चाहिए और पशुओं की संख्या लगातार बढती रहे. इसके अलावा उत्पादन में जब हम 100 जानवरों की बात करते हैं तो, दूध-उत्पादन लगभग 900-1000 लीटर रोजाना होना चाहिए. यदि इससे नीचे दूध का उत्पादन जाता है तो हमारा प्रौफिट मार्जिन काफी कम हो जाता हैं और रोजमर्रा के खर्चो का प्रबन्ध करना भी मुश्किल हो जायेगा. और जैसे ही हम 1000 लीटर से उपर उत्पादन लेना शुरू कर देते हैं तो लाभ दूध-उत्पादन से भी बढना शुरू हो जाता है.

गोबर-प्रबंधनः डेयरी फार्म पर रोजाना एक बहुत बड़ी मात्रा में गोबर का उत्पादन होता है. इसका उपयोग खेतों में प्राकृतिक उर्वरक के रूप में किया जा सकता है. फसल-उत्पादन में इसका प्रयोग किया जा सकता है. इसकी केंचुआ खाद बनाकर भी बेचा जा सकता है. साथ ही गोबर गैस प्लांट स्थापित कर उत्पादित गैस का प्रयोग विभिन्न कार्यों में किया जा सकता है.

पोषण-प्रबन्धन (न्यूट्रीशन मैनेजमेंट)

किसी भी डेयरी फार्म के लिए पोषण प्रबन्धन बहुत जरूरी है. क्योंकि पोल्टी फार्म की ही तरह डेयरी फार्म के भी लगभग 65-70 प्रतिशत तक खर्चे आहार से सम्बधित होते हैं. यदि हम संतुलित आहार खिलाते हैं तो फार्म पर आने वाली 90 प्रतिशत से अधिक चुनौतियों का आसानी से  सामना कर सकते हैं. आहार से सम्बन्धित मुख्यतः यह नियम है कि पशुओं को उनकी अवस्था, उत्पादन तथा प्रजनन के अनुसार ही आहार खिलाना चाहिए. पशुओं को संतुलित आहार ही देना चाहिए, नातो उसे हमें कम पोषण पर रखना है और नाही अधिक पोषण देना चाहिए. यदि हम पशुओं को जरूरत से अधिक दाना खिलाते हैं तो हम सीधे-सीधे पैसे वर्बाद कर रहे हैं. और पशुओं को उसका कोई फायदा भी नहीं होता है. इसी तरह जब हम दाना कम दे रहे होते हैं, तो उस केस में भी हम पशुओं से पूरा उत्पादन नहीं ले पाते और नाही प्रजनन (रिप्रोडक्शन) को व्यवस्थित ढंग से कर पाते हैं.

यह अच्छा रहेगा कि अलग-अलग प्रकार के पशुओं को उनकी आवश्यक्ता एवं अवस्था के अनुसार अलग-अलग समूह बनाकर दाना-मिश्रण खिलाऐं. उदाहरण के लिए जैसे जिन पशुओं ने हाल ही में बच्चे जने हैं उनका (शुरू के 100 दिन) एक अलग समूह बनना चाहिए. दूसरा समूह जो पशु दूध देने की मध्य-स्थिति में हों (100-200 दिन) और उसी प्रकार दूध देने की अन्तिम स्थिति (200-305 दिन) वाले पशुओं को भी अलग समूह बनाकर दाना खिलाना चाहिए. इसके अतिरिक्त अन्य पशुओं को भी अलग-अलग समूह में आवश्यक्तानुसार दाना-मिश्रण खिलायें. इसके साथ-साथ इस बात की जानकारी भी किसान भाइयों को मालूम होनी चाहिए कि पोषण के मामले में कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थितियां होती है जिनमें पशुओं का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए. वे महत्वपूर्ण स्थितियां हैं, बच्चा होने से 21 दिन पहले की स्थिति तथा 21 दिन बाद की स्थिति तक उनके पोषण तथा रखरखाव पर विशेष ध्यान देना चाहिए. क्योंकि यदि इन दोनों स्थितियों में जानवरों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया तो पशुओं को सबसे अधिक नुकसान होने की सम्भावना होती है.

पोषण-प्रबन्धन में कुछ बातों का ध्यान रखते हुए हम काफी पैसा बचा सकते हैं. यदि आप अपने जानवरों को साइलेज दे रहे है और साथ ही दाना (कन्संट्रेट) खिला रहे हैं तो साइलेज के उचित प्रबन्धन से आप खर्चे को काफी हद तक नियंत्रण कर सकते हैं. यदि आपकी अपनी जमीन है, और आप खुद से चारा उगा रहे हैं, तो स्वयं ही साइलेज बनाइये. क्योंकि यह साइलेज आपको काफी सस्ता पड़ेगा. ध्यान रखें कि साइअलेज की अच्छी गुणवत्ता के लिए ड्राई-मैटर लगभग 30-32 प्रतिशत, पीएच 4.2 तथा टाक्सिन रहित होना चाहिये.  लेकिन यदि अपनी जमीन उपलब्ध नहीं है तो हमेशा कोशिश करें कि सीजन पर ही चारा खरीद कर साइलेज बनायें. क्योंकि जैसे-जैसे सीजन खत्म होता जाता है, चारे के रेट भी बढते जाते हैं. यदि हम बचत की बात करें तो अपनी साइलेज बनाकर चारे के खर्चे में प्रति माह काफी बचत कर सकते हैं.

अब हम बात करते हैं दाना-मिश्रण की. यदि आपके पास 20 से अधिक जानवरों का समूह है, तो स्वयं ही दाना-मिश्रण बनाना चाहिए. ताकि विभिन्न ग्रुप के जानवरों को उनकी आवश्यक्ता के अनुसार अलग-अलग गुणवत्ता का दाना-मिश्रण बनाकर दिया जा सके. अच्छी गुणवत्ता का दाना-मिश्रण बनाने के लिए उसमें क्रूड प्रोटीन की मात्रा 21-22 प्रतिशत के लगभग हानी चाहिए. क्योंकि अच्छी गुणवत्ता का दाना मिश्रण काफी महंगा है, इसलिए इसे केवल 60 प्रतिशत पशुओं को जो मिल्किग में हैं, को ही देना चाहिए. क्योंकि हम उनसे सीधे-सीधे उत्पादन ले रहे होते हैं. प्रजनन की चुनौतियां भी उनके साथ ज्यादा होती हैं. बाकी 40 प्रतिशत पशु जो कम उत्पादन में हैं या उत्पादन के अलावा किसी अन्य स्थिति से गुजर रहे हैं, उनके लिए जो दाना-मिश्रण इस्तेमाल करेंगे उसमें सस्ते अवयव डालकर उसे सस्ता बना सकते हैं. क्योंकि, उनके लिए दाना-मिश्रण की गुणवत्ता में कुछ समझौता करते हुए भी हम इन पशुओं की उर्जा और प्रोटीन की आवश्यक्ता को पूरा कर सकते हैं.

जो भी अब तक बातें बताई गई हैं, उसमें हमने कहीं भी गुणवत्ता से समझौता नहीं किया है. सिर्फ प्रबन्धन के आधार पर ही केवल आहार में खर्चो की बचत कर रहे हैं. इसके बाद कुछ शूक्ष्म-अवयवों की भी आवश्यक्ता होती है, जैसे खनिज-लवण, टाक्सिन बाइन्डर, ईस्ट आदि. यदि आप खनिज-लवण खरीदना चाहते हैं, तो इसके लिए प्रबन्धन का थम्ब रूल यह कहता है कि आप 4-5 कम्पनियों के रेट लेकर उनके खनिज-लवण का कम्पोजीसन, प्रति जानवर खुराक के आधार पर पहले उनकी तुलना करें और उसके बाद ही सही खनिज-लवण का चुनाव करें. इसके अलावा परिणाम के आधार पर भी विश्लेषण करते रहना चाहिए. क्योंकि कभी-कभी कम्पनी द्वारा जो चीजें बताई जाती हैं, हो सकता है कि वे उस तरह से ना हों. कुल मिलाकर हमें कीमत के साथ गुणवत्ता पर समझौता नहीं करना चाहिए. टाक्सिन बाइन्डर भी जरूरी होते हैं, ताकि टाक्सिन की समस्या ना आऐ.

प्रजनन प्रबन्धन (रिप्रोडक्सन मैनेजमेंट)

यदि हम पोषण (न्यूटीशन) की तरफ ठीक से ध्यान देते है और पशु आहार संतुलित है तो फार्म पर प्रजनज की समस्यायें लगभग 80 प्रतिशत तक कम हो जाती हैं. आहार संतुलित है तो जानवर ठीक से हीट में आऐंगे तथा गर्भित होंगे. प्रजनन हेतु भले ही खर्च ज्यादा नहीं आता है लेकिन यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया है. क्योंकि यह डेयरी फार्म का वह अंग है जिससे हमें पूरे डेयरी फार्म का असली मुनाफा प्राप्त करना होता है. जैसे पहले भी बताया जा चुका है कि, दूध उत्पादन से विशेषतौर पर फार्म के खर्चों की पूर्ति करनी होती है और हमारा असली मुनाफा, प्रजनन से जो अगली पीढी के जानवर मिलते हैं, वही है.

प्रजनन की प्रक्रिया अच्छी होगी, तो अगली पीढी में बच्चे ज्यादा आएंगे और पशु सही समय पर गर्भधारण करके बच्चा देगा, तो दोबारा अपने दूध को अधिकतम पर लेके जायेगा. इसलिए इस अवस्था में यह जरूरी है कि पशु के गर्मी में आने का सही प्रकार पता करें,  और देखें कि वह कब अच्छी गर्मी में आता है. भले ही यह विल्कुल भी खर्चीला कार्य नहीं है, लेकिन यह एक ऐसी  प्रक्रिया है जो हर महीने हमारे अच्छे-खासे रूपये बचा सकता है. क्योंकि, एक बार अगर हीट छूट गयी तो जानवर अगली बार 21 दिन बाद फिर हीट में आयेगा. इसका अर्थ यह हुआ कि 21 दिन हमने उसे दाना-चारा भी खिलाया और 21 दिन उसके अगले लैक्टेशन के भी बर्बाद किये.  प्रजनज का हमेशा यह टार्गेट रखा जाता है, कि जब भी कोई जानवर बच्चा देता है तो उसके 60-90 दिन तक उसे अवश्य गर्भधारण कर लेना चाहिए.

प्रजनन में यह भी बात ध्यान में रखनी होती है कि प्राकृतिक रूप से पशु यदि हीट में नहीं आ रहे हैं तो अलग-अलग प्रकार के उपलब्ध तरीकों का स्तेमाल करके उसे हीट में लाया जा सकता है. इसमें खर्चा तो होगा परन्तु यदि इसे पूरे फार्म से जोड़कर देखा जाय तो यह कीमत एक प्रतिशत के लगभग भी नहीं होगी. इसमें उपलब्ध प्रोटोकाल को फालो करते हुए जानवर की स्टेज और उत्पादन के अनुसार विभिन्न हार्मोन्स का इस्तेमाल करके जानवर को हीट में ला सकते हैं. प्रजनन का वसूल यह रखना चाहिए कि पूरे सालभर लगभग 50 प्रतिशत पशु गर्भित हों, क्योंकि यह इस बात की गारंटी होती है कि हमारा हर्ड साइज बढ रहा है. और इस प्रकार से हमें पूरे साल भर दूध का उत्पादन भी मिलता रहेगा. प्रजनन के साथ-साथ हमें बछियों का भी मैनेजमेंट उतनी ही अच्छी प्रकार से करना होता है जिससे 18 महीने की उम्र तक वह भी गर्भ धारणकर लें.

पशुओं की उचित नस्ल का चयन

व्यावसायिक डेरी फार्म के लिए एसी नस्लों का चयन किया जाना चाहिए जो दूध उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता में अच्छे हों. अच्छे जानवरों के चयन हेतु जानवरों के माता-पिता के रिकार्ड की आवश्यक्ता होती है, लेकिन क्षेत्रीय बाजार में उस तरह के रिकार्ड नहीं मिलते, इसीलिए अच्छे पशुओं का चुनाव करने में हमें सबसे ज्यादा निर्भरता पशुओं के शारीरिक गुणों के साथ-साथ पशुओं के अपने सामने दूध का उत्पादन देखने से ही होती है. जानवरों के चयन में पशु-विशेषज्ञ की मदद लें. बाजार की मांग के अनुसार, यदि आप उच्च वसा वाले गुणवत्ता के दूध बेचना चाहते हैं या दूध के उत्पाद बनाना चाहते हैं तो भैंस, जर्सी या साहीवाल नस्लों का चयन करना बेहतर है.

स्वास्थ्य प्रबन्धन (हेल्थ मेनेजमेंट)

हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि जानवर कम से कम बीमार पड़ें. क्योंकि यदि जानवर बीमार पड़ेगा तो निश्चित रूप से उसके प्रोडक्सन पर असर पड़ेगा, और साथ ही उसकी दवाइयों  का खर्चा भी उठाना पड़ेगा. इसलिए उचित यह रहता है कि बीमारियों की रोकथाम के जितने भी उपाय हैं उन्हे अपनाकर जानवरों को बीमार होने से बचायें. इससे हम जानवर की सेहत को भी ठीक रख रहे हैं और पैसे भी बचा रहे हैं. इसके लिए जिन बीमारियों की वैक्सीन उपलब्ध हैं उनको समय-समय पर अवश्य ही लगवा लेना चाहिए.

अधिक दूध देने वाले पशुओं में अक्सर थनैला रोग (मेस्टाइटिस) की समस्या आती है. इससे बचने के लिए दूध निकालने से पहले तथा बाद में पोटेशियम परमैग्नेट के घोल से थनों को अच्छी प्रकार से साफ कर लेना चाहिए तथा उनके बैठने के स्थान को साफ-सुथरा रखें. अधिक दूध देने वाले पशुओं मे कैल्सियम की कमी अक्सर देखने को मिलती है. इसके लिए रेगुलर डाइट में खनिज लवण एवं कैल्सियम का इस्तेमाल करें. सप्ताह में एक बार जानवरों के खुरों को नीला-थोता (काॅपरसल्फेट) के घोल में डुबायें.

मानव संसाधन प्रबन्धन (हयूमन रिसोर्स मैनेजमेंट)

यह एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है कि हमें कैसे अपने कर्मचारियों या श्रमिकों से कैसे कार्य लेना है. हमें यह समझना होगा कि स्टाफ के लोग जो डेयरी फार्म में काम कर रहे होते हैं वे एक प्रकार के चलते-फिरते कैमरे की तरह होते हैं. यदि हम उनसे एक परिवार के सदस्य की तरह अच्छा ब्यवहार रखते हैं वे हमें पूरी जानकारी दे सकते हैं जिससे हमें हर चीज का प्रबन्धन करने में आसानी हो जायेगी. उदाहरण के लिए यदि हम श्रमिक को बतायें कि हीट का पता लगाना क्यों जरूरी है तो बाकी कार्य करते हुए भी वे हमें बता सकते हैं कि किस वक्त पशु की हीट शुरू हुई है. इसी प्रकार पशु कितना दूध दे रहा है, चारे में कुछ खराबी तो नहीं है आदि. वे बारीकी से हर बात पर ध्यान रखते हुए यह बता सकते हैं कि कहाॅ पर क्या आवश्यक्ता है.

आधारभूत सुविधायें

अच्छी किस्म के पशुओं के लिए आवश्यक है कि उनके लिए पशु-शेड, चारा, पानी, स्वास्थ्य आदि की अच्छी ब्यवस्था हो. साथ ही साथ इन सभी पहलुओं के बारे में अच्छा ज्ञान और जानकारी होना भी आवश्यक है. कुछ परिस्थितियों में दूध की लागत पर खर्च कम करने के लिए, आहार की गुणवत्ता बढाने के साथ ही मशीनीकरण को भी अपनाना होगा.

मूल्यवर्धन

दूध के उत्पाद बनाकर, गोबर से कम्पोस्ट बनाकर या बछियाओं को बड़ा करके बेचने से पशुपालक अवश्य ही लाभ की स्थिति में होंगे. इसके लिए पशुपालकों को प्रशिक्षण लेने के साथ-साथ विभिन्न आधुनिक डेयरी फार्मों के अनुभवों से लाभ लेना चाहिए.

विपणन

डेयरी फार्मिंग का एक महत्वपूर्ण पहलू, दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए बाजार बनाना है. दूध संग्रह इकाइयों पर दूध देने से अधिक फायदा किसानों को इस स्थिति में होगा जब वे इसे सीधे गुणवत्ता चाहने वाले ग्राहकों तक सीधे पहुंचायें. इससे किसान कम समय में ही बाजार में अपनी पकड़ बना सकेंगे.

रिकार्ड

डेयरी फार्म के बारे में अभिलेखों के माध्यम से ही हम पूर्णरूप से जानकारी रख सकते हैं. अभिलेखों के द्वारा हम फार्म पर होने वाले किसी नुकसान का आंकलन अच्छी प्रकार से कर सकते हैं, तथा भविष्य में होने वाले नुकसान से बच सकते हैं.

यदि किसान भाई इस लेख में दिये गये सुझावों पर ध्यान देते हुए डेयरी फार्मिंग के व्यवसाय को चलाते हैं तो अवश्य ही अपने फार्म को मुनाफे की तरफ लेकर जायेंगे.

लेखक: डॉ. निर्मल चन्द्रा एवं डॉ. वीरेन्द्र सिंह सोलंकी
प्रधान वैज्ञानिक
आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली -110012

English Summary: Advanced management techniques beneficial to milk producers
Published on: 19 April 2021, 03:13 IST

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