देश में किसानों की हालत को सुधारने के लिए केंद्र सरकार कई अहम फैसले कर रही है. इसी कड़ी में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू की. यह योजना साल 2016 में रबी के मौसम से लागू हई. इसके तहत किसान को आर्थिक सुरक्षा दी जाती है. अगर किसी किसान की फसल प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, तूफान, बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि आदि से बर्बाद हो जाती है, तो सरकार किसान को आर्थिक सुरक्षा देगी. इस योजना के तहत प्रीमियम राशि सभी खरीफ फसलों के लिए करीब 2 प्रतिशत, रबी फसलों के लिए करीब 1.5 प्रतिशत, हॉर्टिकल्चर फसलों के लिए करीब 5 प्रतिशत तय की गई है, जबकि शेष प्रीमियम राशि के भुगतान के लिए राज्य और केंद्र सरकार को बराबर का योगदान देना होगा. ध्यान दें कि सभी किसान इस योजना का लाभ उठा सकते है. जिन किसानों ने कर्ज लिया है उनके लिए यह योजना अनिवार्य है, जबकि अन्य किसानों अपनी इच्छा के अनुसार लाभ उठा सकते है.
योजना से तीन राज्यों ने तोड़ा नाता
आपको बता दें कि इस स्कीम से तीन राज्यों ने नाता तोड़ लिया है. जिनमें पश्चिम बंगाल, बिहार और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू करने से मना कर दिया. वैसे बिहार सबसे पहला राज्य है जिसने इस योजना से दूरी बनाई है, क्योंकि बिहार ने साल 2018 में ही इस योजना से नाता तोड़ लिया था. बिहार सरकार ने अलग से फसल बीमा योजना शुरू की है. इन राज्यों का कहना है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों की तुलना में बीमा कंपनियों को ज्यादा फायदा हुआ. इसके अलावा चार बीमा कंपनियां भी बाहर निकल गई हैं. जिनमें आईसीआईसीआई लोम्बार्ड, टाटा एआईजी, चोलामंडलम एमएस और श्रीराम जनरल इंश्योरेंस शामिल हैं.
जानिए कृषि बीमा का इतिहास
आपको बता दें कि भारत में कृषि बीमा का इतिहास बहुत पुराना है. ऐसा कहा जाता है कि मैसूर स्टेट साल 1915 में वर्षा आधारित बीमा योजना चलाई, जोकि किसानों को सूखे की मार से बचाने के लिए थी. जिसको देश का पहला कृषि बीमा कहा गया. इसके बाद मध्य प्रदेश के देवास में साल 1943 में कृषि बीमा आया. अगर आजाद भारत की बात करें, तो पहली बार कृषि बीमा साल 1973 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों में शुरू हुआ. इससे साल 1985 से 1986 तक भारत सरकार ने पूरे देश के लिए लागू की. बताया जाता है कि इन योजनाओं में प्रीमियम दरें ज्यादा होती थीं और सभी योजनाएं क्षेत्र आधारित हुआ करती थीं, लेकिन यह क्षेत्र इतने बड़े हुआ करते थे कि किसानों को लाभ नहीं मिल पाता था.
नई योजना पुरानी योजनाओं से क्यों अलग है?
नई फसल बीमा को इसलिए अलग समझा जा रहा है, क्योंकि पहले की सभी योजनाओं में सरकारें अपनी हिस्सेदारी ‘दावों के निपटारे’ में दिया करती थीं, जोकि कभी समय पर नहीं होता था, लेकिन इस योजना के तहत राज्य और केंद्र सरकार को प्रीमियम में हिस्सा देना होगा.
नई योजना में बीमित राशि की गणना कैसे होगी
नई योजना में बीमित राशि की गणना ‘स्केल ऑफ फाइनेंस’ के आधार पर की जाएगी. इसको जिलाधिकारी की अध्यक्षता वाली एक समिति करेगी. जिसमें बैंक अधिकारी, नाबार्ड के सदस्य, कृषि अधिकारी समेत कुछ प्रगतिशील किसान सदस्य हिस्सा लेंगे. आपको बता दें कि बीमित राशि की गणना जिले में सड़कों की स्थिति, यातायात के साधन, जमीन की उर्वरता, उपज की कीमत, सिंचाई व्यवस्था, उर्वरता, बीज और श्रम लागत को ध्यान में रखकर होगी.
इसे राज्य सरकारें क्यों लागू नहीं करना चाहती?
कई राज्यों की सरकारें फसल बीमा योजना को लागू करने से पीछे हट रहीं हैं, क्योंकि इसमें प्रीमियम पहले जमा करना है, जिससे राज्यों पर बोझ काफी बढ़ा जाएगा है. अगर बिहार की बात करं, तो इस राज्य को रबी सीजन में कृषि बजट का लगभग 25 प्रतिशत भाग बीमा प्रीमियम पर खर्च करना पड़ेगा. तो वहीं मध्य प्रदेश सरकार को लगभग 60 प्रतिशत, राजस्थान को लगभग 37 प्रतिशत भाग कृषि बजट से देना होगा. यही मुख्य वजह है कि कई राज्यों ने इसको लागू नहीं किया.