एक असफल आदमी अपनी असफलता के लिए हजारों बहाने बना सकता है. हज़ारो बहानें आपको गिना सकता है, ओर कईं बार हम भी अपनी ज़िंदगी में यही करते हैं कई बहानें देते रहते हैं.
लेकिन आज मैं आपको एक सच्ची कहानी बताने जा रहा हूँ, ये एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसकी जिंदगी मे आम लोगो से कई अधिक बाधाएं थी, जिसकी जिंदगी मे आम लोगो से कईं ज्यादा तकलीफ़ें थी. लेकिन उसने अपनी सारी बाधाओं और अपनी सारी तकलीफ़ों को दूर कर दुनिया में अपना नाम रौशन किया.
तो मैं जिस लड़की की कहानी आपको सुनाने जा रहा हूँ वो थी - विलमा रुडॉल्फ.
विलमा रुडॉल्फ का जन्म 1939 मे अमेरिका के टेनेसी राज्य में एक अश्वेत परिवार मे हुआ था. पिता माली थे ओर मां लोगों के घरों में काम किया करती थी.
विलमा का असमय ही जन्म हो गया जिसकी वजह से वह बचपन से ही बीमार रहने लगी. ढाई वर्ष की उम्र मे विलमा को पोलियो हो गया और धीरे-धीरे उसे अपने पैर महसूस होना बंद हो गये और वो अब चल नहीं सकती थी.
लेकिन विलमा की माँ ने हिम्मत नही हारी. उनकी माँ उसे प्रेरित करती रही. उन्होंने काम करना बंद कर दिया ओर विलमा का इलाज़ शुरू कर दिया. 5 वर्ष की उम्र मे डॉक्टर ने विलमा के विषय में कहा कि विलमा कभी भी अपने पैरो पर नहीं चल पाएगी. विलमा छोटे बच्चों को खेलते देख माँ से कहती कि मै भी खेलना चाहती हूँ और उसकी मां उसे हमेशा प्रेरित करती कि तुम ज़रूर दौड़ोगी.
11 साल की उम्र मे विलमा को पहली बार अपनी व्हीलचेयर से उतर कर बास्केटबॉल खेलते देख उनके डॉक्टर आश्चर्यचकित रह गए. डॉक्टर ने विलमा से दौड़ने को कहा. कुछ दूर दौड़ने के बाद वो गिर गई. डॉक्टर ने कहा बेटा तुम ज़रूर दौड़ोगी और बहुत तेज़ दौड़ोगी.
विलमा ने यह बात अपने दिल मे गांठ की तरह बांध ली और विलमा ने कहा कि मैं दुनिया मे सबसे तेज दौड़कर दिखाऊंगी. विलमा के इस जज़्बे को सभी ने सपोर्ट किया और इसमें उनकी मां ने उनका पूरा साथ दिया. उनके स्कूल ने भी उनके जज़्बे का पूरा साथ दिया और उन्होने पहली बार रेस मे हिस्सा लिया. वह आखिरी स्थान पर रही. यह बात हम जैसे लोगों के साथ होती तो हम टूट जाते. लेकिन विलमा का आत्मविश्वास बिल्कुल भी कम नही हुआ. उनके अंदर और मोटिवेशन और जुनून आया.
वो दिन भी आ ही गया जब 1960 रोम ओलंपिक मे अमेरिका का प्रतिनिधित्व करते हुए विलमा ने 100 मीटर, 200 मीटर और 400 मीटर तीनों प्रतियोगिताओं में पहला स्थान प्राप्त किया और पहली अश्वेत महिला बनी जिसने गोल्ड मेडल जीता.
क्या अब भी आपको जीवन में अपनी बाधाएं बड़ी दिखती हैं ?
एक इंसान का जज़्बा, उसका जुनून और आत्मविसवास उसे कहीं भी लेजा सकता है.
इंसान के अंदर इतनी ताकत होती है कि वह जो सोच ले, वह कर सकता है.