सफेद मूसली एक वानस्पतिक पौधा है, जिसका उपयोग खांसी, अस्थमा, बवासीर, चर्मरोगों, पीलियो आदि बीमारियों के उपचार में किया जाता है. इसकी जड़ों को भी कई तरह दवाइयों में उपयोग किया जाता है. इसकी औसत ऊंचाई 1.5 फुट तक हो सकती है. इसके पत्तों का आकार किसी सितारे की तरह होता है. चलिए आपको इसकी खेती के बारे में बताते हैं.
मिट्टी
इसकी खेती के लिए वैसे तो लगभग हर तरह की मिट्टी उपयुक्त है, लेकिन दोमट एवं रेतीली मिट्टी में परिणाम अधिक बेहतर आते हैं. गीली मिट्टी या लाल मिट्टी पर भी इसकी खेती बेहतर हो सकती है. भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से असाम, महाराष्ट्र, आंध्र-प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में होती है.
खेत की तैयारी
इसकी खेती से पहले भूमि को समतल करना जरूरी है. बिजाई से पहले ज़मीन तैयार करने के लिए 2-3 बार गहरी जुताई करें. इसकी बिजाई के लिए जून से अगस्त तक महीना उपयुक्त है. बिजाई के समय पौधों में 10x12 इंच का फासला रखें.
सिंचाई
मूसली बरसात के समय की फसल है, इसलिए नियमित वर्षा के समय सिंचाई की जरूरत नहीं है, लेकिन अनियमित मानसून जैसे हालात में 10-12 दिनों में एक सिंचाई की जरूरत होती है. अक्टूबर के बाद 20-21 दिनों पर हल्की सिंचाई करनी चाहिए.
कटाई
बिजाई के लगभग 3 महीनों बाद इस फसल से फल प्राप्त होने लग जाते हैं. इसकी कटाई सितम्बर-अक्तूबर महीने में करनी चाहिए. पत्तो का पीला पड़ना और सूखना कटाई का संदेश है. कटाई के बाद इसकी गांठों को सुखाया जाता है. सफेद गांठों को खुले हवा एक सप्ताह तक सुखाना चाहिए.
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