प्राचीन काल से ही औषधीय पौधे हमारे शरीर को गंभीर बीमारियों से बचाने का काम कर रहे हैं. आज के समय में भी नीम, अश्वगंधा, एलोवेरा, तुलसी, पुदीना और मेथी आदि जैसे पौधों को कई आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. यह पौधे कैंसर, लिवर, डायबिटीज और पेट आदि से संबंधित बीमारियों को दूर करने की क्षमता रखते हैं. वहीं, इन बड़ी-बड़ी बीमारियों से बचाने वाले औषधीय पौधे कभी खुद भी रोगों का शिकार हो जाते हैं. तो आइए जानें वह किन रोगों का शिकार होते हैं व कैसे उनका बचाव किया जा सकता है.
इन रोगों से ग्रसित होते हैं पौधे
औषधीय पौधे कभी कभी म्लानि रोग, सड़न रोग, पत्र लांक्षण, चूर्णिल फफूंद इत्यादि रोगों से पीड़ित हो जाते हैं. जिनसे बचाव के लिए जैविक प्रबंधन की आवश्यकता होती है. वहीं, रासायनिक दवाओं से उनके रोगों को दूर नहीं किया जा सकता है. क्योंकि इससे उनके अंदर मौजूद औषधीय गुण पर खराब प्रभाव पड़ता है.
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म्लानि रोग
म्लानि रोग की वजह से औषधीय पौधे मुरझाकर सूखने लगते हैं. इसके प्रकोप से पौधों की जड़ें काली हो जाती हैं. पुदीना, गुलदाउदी, भांग, धतूरा आदि में इस तरह का रोग देखा गया है. इससे बचाव के लिए फसल चक्र का उपाय अपनाना चाहिए. वहीं, गर्मी में खेत की जुताई करके खुला छोड़ देना उचित रहता है. इसके अलावा, खेत में प्रचुर मात्रा में गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कम्पोस्ट और खली का इस्तेमाल करना चाहिए.
दाग धब्बे व चूर्णिल फफूंद रोग
कई बार पत्तियों पर दाग-धब्बे दिखते लगते हैं. सर्पगंधा, इसबगोल, तुलसी और मेंहदी के पौधों में इस तरह का रोग आम है. इसे पत्रलांक्षण रोग कहते हैं. इसमें पत्तियां सूखने लगती हैं. वहीं, चूर्णिल फफूंद रोग से पत्तियों पर सफेद पाउडर बिखर जाता है. इन दोनों बीमारियों से बचाव के लिए एक लीटर पानी में तीन से पांच मिलीमीटर नीम की जैविक कवनकाशी घोलकर पत्तों पर छिड़काव की जाती है. यह बीमारी की प्रारंभिक दौर में ही करना जरुरी है. बाद में ऐसा करने से कोई फायदा नहीं होता है. इस रोक का प्रकोप पौधों पर ना पड़े, इसके लिए बुवाई करने के समय से ही छोटी छोटी बातों का खास तरीके से ध्यान रखना होता है.