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Updated on: 14 January, 2021 12:00 AM IST

आपको जानकर थोड़ी हैरानी हो सकती है, लेकिन भारत के कुछ क्षेत्रों में लाल चींटी को औषधीय भोजन के रूप में खाया जाता है. कुछ आदिवासी समुदायों में तो इन चींटियों का सेवन दाल और चटनी के रूप में भी किया जाता है. विशेषकर छत्तीसगढ़ में इन चींटियों को मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों के उपचार के रूप में देखा जाता है.

आजीविका का है साधन

आम तौर पर मीठे फलों के पेड़ों पर अपना घर बनाने वाली इन चींटियों की बहुत मांग है. यही कारण है यहां लोग इन्हें बाकायदा आजीविका के साधन के रूप में पालते हैं. इन चींटियों की चटनी साप्ताहिक बाजारों में अच्छे दामों पर बेची जाती है, जिसे चापड़ा के नाम से जाना जाता है. चापड़ा सेहत के लिए अतयंत लाभकारी है, ऐसा हम नहीं बल्कि खुद आयुष मंत्रालय कह चुका है.

प्राचीन काल से है उपचार का हिस्सा

प्राचीन काल से ही इन चींटियों का उपयोग वैद्य-हकीम बुखार आदि के उपचार में करते आएं हैं. किसी मधुमक्खी या कीड़े के काटने पर लाल चींटियों से उसी स्थान पर कटवाया जाता है, ये एक आयुर्वेदिक प्रणाली है, जिससे डंक का जहर उतर जाता है.

कैसे बनती है चटनी

चटनी बनाने के लिए आम, अमरूद, अनार आदि को पीसकर उसमें नमक, मिर्च, मसाले और इन चींटियों को मिलाया जाता है. इसे कुछ दिनों तक धूप में सूखाया जाता है. चींटियों के अंदर क्योंकि फॉर्मिक एसिड होता है, इसलिए इससे बनने वाली चटनी चटपटी लगती है. इसकी बाजार में अच्छी मांग भी है. छत्तीसगढ़ के बस्तर बाजार में तो ये 200 से 300 रूपए किलो तक बिकते हैं.

आयुष मंत्रालय ने बताया था कोरोना के उपचार में असरदार

वैसे आपको ये बात आश्चर्यचकित कर सकती है कि इन चींटियों से बनने वाली चटनी को आयुष मंत्रालय ने कोरोना वायरस के खिलाफ हथियार के रूप में देखा था. जी हां, मंत्रालय ने ये कहा था कि कोरोना वायरस के इलाज में लाल चींटियों से बनने वाली चटनी असरदार है.

English Summary: heavy demand of red ant sauce in this place people love to eat know more about ayurvedic sauce
Published on: 14 January 2021, 06:51 IST

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