देश के अधिकतर लोग औषधीय पौधों की फसल को पारंपरिक खेती के लिए अपना रहे हैं. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कोरोना महामारी के दौरान लोगों ने आयुर्वेदिक चीज़ों का सेवन किया और अपने स्वास्थय को सुरक्षित रखा और इसकी मांग देश समेत विश्व के कोने-कोने में होने लगी. भारत में आयुर्वेद पौराणिक काल से ही चला आ रहा है, जो कि पूरे विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणाली है. इसी कड़ी में आज हम ऐसे ही 5 औषधीय फसलों की जानकारी देने जा रहे हैं जिससे किसान कम वक्त पर बंपर मुनाफा कमा सकते हैं. खास बात यह है कि सरकार की तरफ से इनकी खेती के लिए सब्सिडी भी दी जा रही है.
औषधीय फसलों का महत्व
भारत में औषधीय फसलों का महत्व बहुत ही अधिक है. औषधीय पौधों से आयुर्वेदिक दवाइयां बनाई जाती हैं. साथ में इनका उपयोग जड़ी-बूटी के तौर पर भी किय जाता है. माना जाता है कि आयुर्वेद में हर बीमारी का इलाज है,
अकरकरा
अकरकरा एक औषधीय पौधा है. बीते सैंकड़ो वर्षों से अकरकरा का इस्तेमाल आयुर्वेद के लिए किया जा रहा है. इसके डंठल व बीज की मांग बाजार में बहुत अधिक रहती है. अकरकरा का उपयोग दंतमंजन, तेल व दर्द निवारक दवाइयां बनाने में किया जाता है. इसकी खेती में मेहनत बहुत कम तथा उत्पादन बहुत अधिक मिलता है. अकरकरा की खेती भारत में मुख्यत: मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा में की जाती है. खास बात यह कि इसके पौधों पर मौसम का अधिक प्रभाव देखने को नहीं मिलता है.
अश्वगंधा
अश्वगंधा को स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक माना जाता है. इसका पौधा देखने में झाड़ीदार होता है. इसके पौधों की जड़ों से घोड़े की गंध आती है और घोड़े को अश्व कहा जाता है. इसलिए इस पौधे का नाम अश्वगंधा है. अश्वगंधा के पत्ते, जड़, बीज व फल को औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. अश्वगंधा को भोजन, चाय में सेवन में लाया जाता है. इसकी खेती किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रही है, किसान इससे कई गुना लाभ कमा रहे हैं, तभी तो इसे कैश क्रॉप के नाम से जाना जाता है. अश्व गंधा के सेवन से शरीर में घोड़े जैसी फूर्ती, बल व शक्ति आती है. इसके अलावा यह कैंसर जैसी घातक बीमारियों से लड़ने में भी कारगर है और साथ ही तनाव कम करता है.
देखा जाए तो अश्वगंधा की खेती में बेहद कम लागत आती है तथा लागत से 3 गुना अधिक लाभ मिलता है. किसानों के लिए पारंपरिक खेती के बढ़ते नुकसान को देखते हुए अश्वगंधा की खेती लाभदायक साबित हो सकती है.
सहजन
सहजन में विटामिन्स का भंडार होता है. साथ ही इसमें एंटी ऑक्सीडेंट और कई लाभकारी गुण पाए जाते हैं. इसलिए इसकी मांग पूरे वर्ष रहती है. सहजन की फसल की खास बात यह है कि एक बार बुवाई के बाद पूरे 4 साल तक इससे अच्छा उत्पादन मिलता रहता है. 1 एकड़ भूमि से किसान सहजन की फसल से लगभग 10 महीने बाद 1 लाख रुपए की कमाई कर सकता है. सहजन को सब्जी के तौर पर खाया जाता है, साथ ही दवा के तौर पर भी इस्तेमाल में लाया जाता है. इसकी जड़, पत्ते, छाल आदि का इस्तेमाल आयुर्वेद के लिहाज से किया जाता है. इसकी खेती मुख्यत: दक्षिणी भारत के हिस्सों तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में की जाती है.
लेमनग्रास
लेमनग्रास खुद में एक औषधीय पौधा है. इसकी गंध नींबू की तरह होती है. लेमनग्रास में सिंट्राल व विटामिन ए की मात्रा बहुत अधिक होती है. लेमनग्रास से तेल बनाया जाता है जिसकी बाजार में मांग बहुत अधिक है. इसके अलावा इसका उपयोग दवा बनाने में भी किया जाता है और कुछ लोग इसकी चाय बनाकर भी पीते हैं. लेमनग्रास की खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं क्योंकि इस पर मौसम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और लेमन ग्रास को मवेशी भी नहीं खाते हैं. भारत सरकार किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य से नेश्नल एरोमा मिशन के तहत औषधीय और सगंध पौधों को बढ़ावा दे रही है, जिसमें लेमनग्रास भी शामिल है. लेमनग्रास का पौधा बुवाई के 70 से 80 दिनों में तैयार हो जाता है.
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सतावर/ शतावरी
सतावर एक औषधीय पौधा है, जिसे कई प्रकार की दवा बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है. वक्त के साथ इसकी मांग व कीमत में बढ़ोतरी हुई है. सतावर की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इसके पौधे 1 साल के भीतर तैयार हो जाते हैं तथा किसान 1 एकड़ भूमि से लगभग 5 से 6 लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं. सतावर की खेती किसानों के लिए अधिक फायदेमंद इसलिए भी साबित हो रही है, क्योंकि इसमें कीट पतंग बहुत कम लगते हैं, तो वहीं इसके पौधे कांटेदार होते हैं जिस वजह से इसे जानवर भी नहीं खाते हैं. बता दें कि भारत में सतावर की खेती उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व मध्य प्रदेश में की जाती है.