दोस्तों आज की दुनिया में सभी अच्छा और ज्यादा पैसा कमाना चाहते है। चाहे वो व्यापारी हो या एक आम आदमी। किसान भी अपने परिवार का अच्छी तरह से पालन पोषण करने के लिए दिन रात कड़ी मेहनत करता है। ताकि ज्यादा पैसा और मुनाफा ले सके। लेकिन यदि वह परंपरागत और पुराने तरीके से खेती करेगा तो आज के युग में पिछड़ जायेगा। इसलिए उसे हर उस नये तरीके और खेती को अपनाना पड़ेगा जिससे उसकी आय बढ़ सके। कम खर्च में अधिक मुनाफ़ा कमाने के लिए भारत में कुछ वर्षो में औषधीय फसलो की तरफ किसानों का रुख बढ़ा है। और इस तरह की खेती कर कई सारे किसान माला माल भी हुए है। और इन औषधीय पोधों की खेती कारण बेकार पड़ी बंजर और पहाड़ी इलाकों में भी खेती करना सम्भव हो पाया है।
आज हम आपको कुछ ऐसी औषधियों के बारे में बताएंगे जिनकी खेती से आप लाखों रूपये कमा सकते हैं.
स्टेविया की खेती : स्टीविया एक लोकप्रिय और लाभदायक औषधीय पौधा है। यह पौधा अपनी पत्तियों की मिठास के कारण जाना जाता है। इतना मिटा होने के बाद भी इसमें शर्करा की मात्रा नही होती है। यह एक शून्य कैलोरी उत्पाद है। यह मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिका में अधिक पाया जाता है। यह मधुमेह वाले रोगियों के लिए काफी लाभदायक माना जाता है। यह रोगी के शरीर में इंसुलिन बनाने में मदद करता है। इसकी बढ़ती माँग को देखकर विश्व के कई देशों जैसे जापान,अमेरिका,ताइवान,कोरिया,आदि में इसकी व्यावसायिक तौर पर इसकी खेती की जा रही है।
भारत में भी मध्यप्रदेश,महाराष्ट्र,गुजरात,झारखंड आदि कई सारे राज्यों में इसकी खेती की शुरुआत हो चुकी है। स्टीविया की खेती के लिए अर्द्ध आर्द्र और अर्द्ध उष्ण जलवायु उपयुक्त रहती है। भारत में इसकी खेती पूरे साल में कभी भी कर सकते है। बस जिस क्षेत्र का तापमान शून्य डिग्री से नीचे जाता हो वहाँ इसकी खेती नही करना चाहिए।
इसकी अच्छी पैदावार के लिए दोमट जमीन जो 6ph से 7ph के अंदर होनी चाहिए एवं उचित जल निकास वाली होना चाहिए। यह फसल सूखा सहन नही कर सकती इसलिए इसकी सिंचाई 10 दिनों के अंतराल में करना चाहिए। साल भर में इसकी 3 से 4 कटाई होती है उस कटाई में 60 से 90 क्विंटल तक सूखे पत्ते प्राप्त किये जा सकते है।
यदि हम इनके अन्तर्राष्ट्रीय भाव की बात करे तो 300 से 400 रूपये प्रति किलो ग्राम है। लेकिन भारत में उचित बाजार नही होने पर हम इसका अनुमानित भाव 80 रूपये किलो मान ले तो 60 क्विंटल उत्पादन होने पर 4 से 5 लाख़ रूपये तक की आय प्रति एकड़ हो जाती है। इसकी खेती कॉन्ट्रैक्ट बेस पर ही करना चाहिए ताकि फसल बेचने संबंधित कोई दिक्कत नही आए।
आर्टीमीशिया की खेती : आर्टीमीशिया एक बहुत गुणकारी औषधीय पौधा है। इसका उपयोग मलेरिया की दवाई इंजेक्शन और टेबलेट्स बनाने में होता है। इसकी खेती चाइना,तंज़ानिया,केन्या आदि देशों में बड़े पैमाने पर की जा रही है। इसकी बढ़ती मांग को देखकर भारत में सीमैप (cimap) ने वर्ष 2005 से इसकी खेती करवाना और ट्रेनिंग देने की शुरूआत की है। इसकी खेती करने के लिए नम्बर दिसम्बर में नर्सरी तैयार करना पड़ती है। और फ़रवरी के माह में इसको खेत में लगाना पड़ता है।
इस फसल को बहुत काम खाद् पानी की जरूरत पढ़ती है। इससे को वर्ष में 3 बार उपज प्राप्त कर सकते है। प्रति बीघे में ढाई से साढे तीन क्विंटल पत्तियां निकलती है। इन पत्तियों को कंपनी 30 से 35 रूपये किलो तक खरीदते है। जिससे किसान को प्रति बीघा 9000 से 10000 तक का फ़ायदा होता है। और अगर हम इसकी लागत को देखे तो मात्र 15 से 20 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से आती है। इसके बीज कॉन्ट्रैक्ट कंपनी मुफ्त में उपलब्ध करवाती है। बीज के लिए किसान सीमैप लखनऊ या इफका लेब मध्यप्रदेश से सम्पर्क करे।
लेमन ग्रास की खेती : गर्म जलवायु वाले देश सिंगापुर, इंडोनेशिया, अर्जेंटीना, चाइना, ताइवान, भारत, श्रीलंका में उगाया जाने वाला हर्बल पौधा है। इसकी पत्तियों का उपयोग लेमन ट्री बनाने में होता है। इससे निकलने वाले तेल का उपयोग कई तरीके के सौदर्य प्रसाधन एवं खाद्य में निम्बू की खुशबू (फ्लेवर) लाने के लिए होता है।
भारत में सीमैप CIMAP के जरिए इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। किसान को पौधे देने के साथ साथ प्रशिक्षण और तेल निकालने से ले कर मार्केटिंग तक की जानकारी उपलब्ध करवाता है। इसकी खेती करने के लिए पहाड़ी क्षेत्र उपयुक्त रहता है। जैसे की राजस्थान के बांसवाड़ा,डूंगरपुर,प्रतापगढ़ आदि लैमन ग्रास का पौधा साल भर में तीन बार उपज देता है। हर कटाई करने के बाद इसकी सिंचाई करने से उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। लेमन ग्रास की खेती करने के लिए सर्व प्रथम अप्रैल मई माह में इसकी नर्सरी तैयार की जाती है। प्रति हेक्टेयर 10 किलो बीज काफी होता है।
जुलाई अगस्त में पौधे खेत में लगाने के लायक हो जाते है। इसके पोधों को क्यारी में 45 से 60 सेमी की दूरी पर लगाए जाते है। प्रति एकड़ में लगभग 2000 पौधे लगाए जा सकते है। इस फसल को बहुत ही काम सिंचाई की जरूरत होती है। काम वर्षा होने पर इसकी सिंचाई आवश्यकता अनुसार कर सकते है। लेमन ग्रास की पहली कटाई 120 दिनों के बाद शुरू हो जाती है। उसके बाद दूसरी और तीसरी कटाई 50 से 70 दिनों के अंतराल में होती है। लेमन ग्रास के छोटे छोटे टुकड़े कर आसवन विधि से तेल निकाला जाता है। प्रति एकड़ में लगभग 100 किलो ग्राम तेल का उत्पादन होता है। जिसकी बाजार में कीमत 700 रूपये किलो से लेकर 900 रूपये किलो ग्राम तक होती है।
शतावर की खेती : शतावरी को कई नामो से जाना जाता है जैसे शतावरी सतसुता लेकिन इसका वैज्ञानिक नाम एस्येरेगस रेसीमोसा है। इस औषधि का उपयोग शक्ति बढ़ाने, दूध बढ़ाने ,दर्द निवारण एवं पथरी संबंधित रोगों के इलाज़ के लिए किया जाता है। सतावर की खेती करने के लिए 10 से 50 डिग्री सेल्सियस उत्तम माना जाता है। इसके लिए खेत को जुलाई अगस्त माह में 2-3 बार अच्छी जुताई कर लेना चाहिए। अंतिम जुताई (अगस्त) के समय 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद् प्रति एकड़ मिला लेना चाहिए। फिर 10 मीटर की क्यारी बना कर बीजो की बुआई करना चाहिए। बुआई के लिए प्रति एकड़ 5 किलो बीज की आवश्यकता होती है।
बाजार में सतावर के बीज का मूल्य 1000 किलो ग्राम तक रहता है। बीज को बोने एक सप्ताह बाद हलकी सिंचाई करे। दूसरी सिंचाई जब पौधे बड़े हो जाये उसके बाद करना चाहिए। सतावर को बहुत ही काम सिंचाई की जरूरत होती है। जब पौधे के पत्ते पिले पड़ जाये तो इसकी खुदाई कर के रसदार जड़ों को निकाल ले। गीली जड़ों का उत्पादन प्रति एकड़ 300 से 350 क्विंटल तक होता है। खेत से निकली जड़ों को अच्छे से सफाई कर के तेज़ धूप में रखना होती है। जब जड़े सुख जाती है तो उनका वजन घटकर 40 से 50 क्विंटल तक रह जाता है।
बाजार में इन जड़ों की कीमत 250 से 300 प्रति किलो तक रहता है। सतावर की बिक्री दिल्ली,लखनऊ,कानपुर,बनारस में बड़े पैमाने पर होती है। सतावर के बीज उद्यानिकी विभाग,सीमैप और निजी दुकानों पर आसानी से मिल है।
तुलसी की खेती : तुलसी का पौधा प्राचीन समय से ही हर घर के लगया जाता रहा है। तुलसी का पौधा जितना पूजनीय है उससे कई ज्यादा उसमे औषधीय गुण होते है। तुलसी की खेती अब व्यावसायिक रूप में होने लगी है। तुलसी के पत्ते तेल और बीज को बेचा जाता है। तुलसी काम पानी और काम लागत में ज्यादा फ़ायदा देने वाली औषधीय फसल है।
भारत में कई सारी राज्य सरकारें तुलसी की खेती करने पर अनुदान भी उपलब्ध करवा रही है। तुलसी के बीज निजी दुकानों और आपके जिले के उधानिकी विभाग में भी आसानी से उपलब्ध हो जाते है। तुलसी के बीज बेचने के लिए मध्यप्रदेश की नीमच मंडी बेस्ट है। नीमच मंडी में सैंकड़ो प्रकार की औषधियों की खरीदी होती है।
एलोवेरा की खेती : ग्वारपाठा, घृतकुमारी या एलोवेरा जिसका वानस्पतिक नाम एलोवेरा बारबन्डसिस हैं तथा लिलिऐसी परिवार का सदस्य है। इसका उत्पत्ति स्थान उत्तरी अफ्रीका माना जाता है। एलोवेरा को विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है, हिन्दी में ग्वारपाठा, घृतकुमारी, घीकुंवार, संस्कृत में कुमारी, अंग्रेजी में एलोय कहा जाता है।
एलोवेरा में कई औषधीय गुण पाये जाते हैं, जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उपचार में आयुर्वेदिक एंव युनानी पद्धति में प्रयोग किया जाता है जैसे पेट के कीड़ों, पेट दर्द, वात विकार, चर्म रोग, जलने पर, नेत्र रोग, चेहरे की चमक बढ़ाने वाली त्वचा क्रीम, शेम्पू एवं सौन्दर्य प्रसाधन तथा सामान्य शक्तिवर्धक टॉनिक के रूप में उपयोगी है। इसके औषधीय गुणों के कारण इसे बगीचों में तथा घर के आस पास लगाया जाता है।
पहले इस पौधे का उत्पादन व्यावसायिक रूप से नहीं किया जाता था तथा यह खेतों की मेढ़ में नदी किनारे अपने आप ही उग जाता है। परन्तु अब इसकी बढ़ती मांग के कारण कृषक व्यावसायिक रूप से इसकी खेती को अपना रहे हैं, तथा समुचित लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
एलोवेरा के पौधे की सामान्य उंचाई 60-90 सेमी. होती है। इसके पत्तों की लंबाई 30-45 सेमी. तथा चौड़ाई 2.5 से 7.5 सेमी. और मोटाई 1.25 सेमी. के लगभग होती है। एलोवेरा में जड़ के ऊपर जो तना होता है उसके उपर से पत्ते निकलते हैं, शुरूआत में पत्ते सफेद रंग के होते हैं। एलोवेरा के पत्ते आगे से नुकीले एवं किनारों पर कटीले होते हैं। पौधे के बीचो बीच एक दण्ड पर लाल पुष्प लगते हैं। हमारे देश में कई स्थानों पर एलोवेरा की अलग- अलग प्रजातियां पाई जाती हैं। जिसका उपयोग कई प्रकार के रोगों के उपचार के लिये किया जाता है।
औषधीय फसलो की खेती का ट्रेनिंग कहा से ले ?
इसके जबाब में आप लोगो को बताना चाहूंगा की भारत में औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान सीमैप के जरिये इन औषधीय फसलो पर रिसर्च के साथ साथ किसानों को समय समय पर मार्गदर्शन भी देती है। यह एक सरकारी संस्था है यह संस्था जानकारी देने के लिए कई मेले,सेमिनार का आयोजन करती है जिसमे किसान सीधे विज्ञानिकों से बातचीत कर सके साथ ही कई सारी लेख सामग्री भी प्रकाशित करती है। यह संस्था पौधे देने के साथ उसकी मार्केटिंग आदि के बारे में भी जानकारी उपलब्ध करवातीं है।
सीमैप का पता - CENTRAL INSTITUTE OF MEDICINAL AND AROMATIC PLANTS
निर्देशक केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान CIMAP
कुकरैल, लखनऊ- उत्तरप्रदेश
फोन 0522-2359623
CIMAP के चार रिसर्च सेंटर- बैंगलोर, हैदराबाद, पंतनगर, पुरार में है।