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Updated on: 21 March, 2023 12:00 AM IST
औषधीय फसलों की खेती

दुनिया में हर्बल उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है. विभिन्न क्षेत्रों में किसान परंपरागत खेती के अलावा औषधीय और जड़ी-बूटियों की तरफ भी अपना रुख अपना रहे हैं. इस बात में कोई शक नहीं है कि आने वाला समय हर्बल उत्पादों का ही होगा. सरकार की तरफ से भी पारंपरिक फसलों की जगह अन्य विकल्पों पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकारें आयुर्वेद में दवाई बनाने में उपयोग होने वाली औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहित कर रही हैं.

औषधिय पौधे की खेती

अकरकरा की खेती

अकरकरा की खेती औषधीय पौधे के रूप में की जाती है. इन पौधे की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवा बनाने में होता है. आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल पिछले 400 साल से हो रहा है. यह कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है. इसके बीज और डंठल की मांग बहुत ज्यादा रहती है. इसका उपयोग दंतमंजन बनाने से लेकर दर्द निवारक दवाओं और तेल के निर्माण में होता है. अकरकरा की खेती कम मेहनत और अधिक लाभ देने वाली पैदावार हैं. अकरकरा की खेती 6 से 8 महीने की होती है. भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से मध्य भारत के राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र में होती है.

अश्वगंधा की खेती

यह एक झाड़ीदार पौधा होता है, इसकी जड़ से अश्व की गंध आती है, जतिस कारण इसे अश्वगंधा के नाम से जाना जाता है. इसका उपयोग तनाव और चिंता को दूर करने में किया जाता है. इसकी जड़, पत्ती, फल और बीज औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है.

किसानों के लिए अश्वगंधा की खेती काफी लाभकारी होती है. किसान इसकी खेती से कई गुना अधिक कमाई कर सकते हैं, जिस कारण इसे कैश कॉर्प भी कहा जाता है. अश्वगंधा को बलवर्धक, स्फूर्तिदायक, स्मरणशक्ति वर्धक, तनाव रोधी, कैंसररोधी माना जाता है.

सहजन की खेती

सहजन में कई तरह के मल्टी विटामिन्स और एंटी ऑक्सीजडेंट गुण और एमिनो एसिड पाए जाते हैं. इसकी मांग हमेशा बनी रहती है. कम लागत में तैयार होने वाली इस फसल की खासियत यह है कि इसकी एक बार बुवाई के बाद चार साल तक बुवाई नहीं करनी पड़ती है. सहजन की खेती लगाने के 10 महीने बाद एक एकड़ भूमि में किसान एक लाख रुपए तक की कमाई आराम से कर सकते हैं. इसका उपयोग सब्जी और दवा बनाने में होता है. देश के अपेक्षाकृत प्रगतिशील दक्षिणी भारत के राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में इसकी खेती होती है.

लेमनग्रास की खेती

लेमनग्रास को आम भाषा में नींबू घास भी कहा जाता है. भारतीय लेमनग्रास के तेल में विटामिन ए और सिंट्राल की प्रचुरता होती है. लेमनग्रास से निकलने वाले तेल की बाजार में काफी मांग है. लेमन ग्रास से निकले तेल को कॉस्मेटिक्स, साबुन और तेल और दवा बनाने वाली कंपनियां खरीद लेती हैं, यही वजह है कि किसानों का इस फसल की ओर रूझान भी बढ़ता जा रहा है.

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सतावर की खेती

सतावर को शतावरी के नाम से भी जाना जाता है. सतावर एक औषधीय फसल है, इसका प्रयोग कई प्रकार की दवाइयों को बनाने में होता है. बीते कुछ वर्षों में इस पौधे की मांग बढ़ी है और इसकी कीमत में भी वृद्धि हुई है. किसान इसकी खेती से काफी अच्छी कमाई करते हैं.

English Summary: Earned lakhs by cultivating this medicinal crops in summer
Published on: 21 March 2023, 02:16 IST

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